विविध जनश्रुतियों एवं कपोल कल्पित तथा मनगढ़न्त कथाओं के आधार पर नित नई कहानियाँ खड़ी होती रहती हैं। इनमें से कुछ तो सत्य होती हैं। किन्तु कुछ का तो कोई आधार ही नहीं होता है। यही बात इलाहाबाद में प्रयागराज क्षेत्र के संगम तट पर स्थित पुराण प्रसिद्ध लेटे हुए हनुमान जी के विषय में हैं। यह मंदिर धरती का एक मात्र मंदिर है जिसका विवरण पुराणों में विषद रूप से प्राप्त होता है।
यही एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान जी के लेटे हुए रूप का विवरण मिलता है। अब आजकल तो अनेक मंदिर बन गए हैं। जहाँ हनुमान जी को लेटा हुआ दर्शाया गया है। सम्भवतः महाराष्ट्र के औरंगाबाद के समीप म्हैस्मल में बना लेटे हुए हनुमान जी का विशाल मंदिर भी इसी श्रेणी में आता है। अस्तु जो भी हो, पुराणों में एक ही लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर का विवरण प्राप्त होता है। और वह प्रयाग क्षेत्र के संगम तट पर स्थित इलाहाबाद के बड़े हनुमान जी का मंदिर ही है।
जो प्रचलित कथा इस लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर के विषय में प्राप्त होती है, वह यह है कि एक बार एक व्यापारी हनुमान जी की भव्य मूर्ति लेकर जलमार्ग से चला आ रहा था। वह हनुमान जी का परम भक्त था। जब वह अपनी नाव लिए प्रयाग के समीप पहुँचा तो उसकी नाव धीरे-धीरे भारी होने लगी तथा संगम के नजदीक पहुँच कर यमुना जी के जल में डूब गई। कालान्तर में कुछ समय बाद जब यमुना जी के जल की धारा ने कुछ राह बदली। तो वह मूर्ति दिखाई पड़ी। उस समय मुसलमान शासक अकबर का शासन चल रहा था। उसने हिन्दुओं का दिल जीतने तथा अन्दर से इस इच्छा से कि यदि वास्तव में हनुमान जी इतने प्रभावशाली हैं तो वह मेरी रक्षा करेगें।
यह सोचकर उनकी स्थापना अपने किले के समीप ही करवा दी। किन्तु यह निराधार ही लगता है। क्योंकि पुराणों की रचना वेदव्यास ने की थी। जिनका काल द्वापर युग में आता है। इसके विपरीत अकबर का शासन चौदहवीं शताब्दी में आता है। अकबर के शासन के बहुत पहले पुराणों की रचना हो चुकी थी। अतः यह कथा अवश्य ही कपोल कल्पित, मनगढ़न्त या एक समुदाय विशेष के तुष्टिकरण का मायावी जाल ही हो सकता है।
जो सबसे ज्यादा तार्किक, प्रामाणिक एवं प्रासंगिक कथा इसके विषय में जनश्रुतियों के आधार पर प्राप्त होती है, वह यह है कि रामावतार में अर्थात त्रेतायुग में जब हनुमानजी अपने गुरु सूर्यदेव से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करके विदा होते समय गुरुदक्षिणा की बात चली। भगवान सूर्य ने हनुमान जी से कहा कि जब समय आएगा तो वे दक्षिणा माँग लेंगे। हनुमान जी मान गए। किन्तु फिर भी तत्काल में हनुमान जी के बहुत जोर देने पर भगवान सूर्य ने कहा कि मेरे वंश में अवतरित अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपने भाई लक्ष्मण एवं पत्नी सीता के साथ प्रारब्ध के भोग के कारण वनवास को प्राप्त हुए हैं। वन में उन्हें कोई कठिनाई न हो या कोई राक्षस उनको कष्ट न पहुँचाएँ इसका ध्यान रखना।
सूर्यदेव की बात सुनकर हनुमान जी अयोध्या की तरफ प्रस्थान हो गए। भगवान सोचे कि यदि हनुमान ही सब राक्षसों का संहार कर डालेंगे तो मेरे अवतार का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। अतः उन्होंने माया को प्रेरित किया कि हनुमान को घोर निद्रा में डाल दो। भगवान का आदेश प्राप्त कर माया उधर चली जिस तरफ से हनुमान जी आ रहे थे। इधर हनुमान जी जब चलते हुए गंगा के तट पर पहुँचे तब तक भगवान सूर्य अस्त हो गए। हनुमान जी ने माता गंगा को प्रणाम किया। तथा रात में नदी नहीं लाँघते, यह सोचकर गंगा के तट पर ही रात व्यतीत करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी के हृदय में अपने गुरु की आज्ञा पालन का संदेश घुमड़ रहा था। अतः उन्हें नींद भी नहीं आ रही थी। अतः वह आसन लगाकर ध्यानस्थ हो विचार मग्न हो गए। इधर माया ने जब उन्हें ध्यानस्थ देखा तो वह डर गई। क्योंकि यदि प्रातः काल हो गया तो हनुमान जी अयोध्या पहुँच जाएँगे तथा प्रण के दृढ़निश्चयी हनुमान जी अपना कार्य प्रारम्भ कर देंगे। अचानक हनुमान जी का ध्यान टूटा।
उन्होंने सोचा क्यों न रात सत्संग में बिताई जाए। यह सोच कर वह ऋषि भारद्वाज के आश्रम की तरफ चल पड़े। अब माया और भी निराश हो गई। हनुमान जी भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुँचे। वहाँ वेद पुराण का व्याख्यान चल रहा था। हनुमान जी वहीं बैठकर कथा सुनने लगे। कथा में भारद्वाज ऋषि ने बताया कि कल यहाँ पर जगत के स्वामी तथा अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित भगवान राम गंगा को पार कर पहुँचने वाले हैं। हनुमान जी प्रसन्न हो गए।
अभी उन्होंने गंगा पार कर अयोध्या जाने का विचार त्याग दिया। तथा वहीं संगम के तट पर ही रह कर भगवान राम की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया। रात्रिकालीन आवश्यक कार्यों को पूरा कर हनुमान जी वहीं संगम के तट पर लेट गए। और उन्हें नींद आ गई। इधर माया को अवसर मिला। और उसने हनुमान जी को धर दबोचा। हनुमान जी घोर निद्रा में चले गए। इधर भगवान राम गंगा पार कर प्रयाग पहुँचे। उन्होंने हनुमान जी को सोते हुए देखा। तथा उनको यह वरदान दिया कि इस सोए हुए हनुमान की मूर्ति के जो दर्शन करेगा। उसे बिना किसी प्रयास के मेरी कृपा प्राप्त होगी। उस व्यक्ति को किसी तरह के भूत-प्रेत या धोखा, षडयंत्र आदि का शिकार नहीं होना पड़ेगा। उसके सारे शत्रु स्वतः ही परास्त हो जाएँगे।
इस तरह हनुमान जी को अमोघ वरदान देकर भगवान राम भारद्वाज ऋषि के आश्रम तथा अक्षयवट का दर्शन करते हुए आगे बढ़ गए। यह वरदान आज अक्षरशः सत्य हो रहा है। इस पुराण प्रसिद्ध सिद्ध हनुमान मंदिर का दर्शन निश्चित ही समस्त बाधा, कष्ट, अरिष्ट आदि को शान्त करता है। इधर प्रातःकाल जब गंगा देवी ने देखा कि एक प्राणी उनकी तरफ ही पाँव फैलाकर सो रहा है। तो उन्होंने अपने आपको अपमानित महसूस करते हुए हनुमान जी को डूबो दिया।
सूर्यदेव ने जब प्रातःकाल अपने शिष्य हनुमान की यह दशा देखी तो उन्होंने गंगा को शाप दिया कि ‘तुम्हारा हृदय मैला है जो अज्ञानवश तूने एक सीधे-सादे प्राणी को दण्ड दिया। तेरा सम्मान करते हुए हनुमान ने रात में तुम्हारे ऊपर से होकर गुजरना अच्छा नहीं समझा और तुम दुर्बुद्धि उसे शाप दे बैठी। जा आज से तू प्राणियों के मरे शरीर एवं गन्दगी ढोने वाली हो जाओ।’ गंगा नदी के दूषित होने से संसार के समस्त देव संबंधी एवं शुभ कार्य बाधित होने लगे। तब समस्त देवताओं ने मिलकर भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना की। तब भगवान सूर्यदेव ने कहा कि ‘जा गंगे! तेरे जल के ऊपर मेरी किरणों के पड़ते ही तुम्हारे जल की पवित्रता बढ़ जाएगी। तथा तुम्हारे जल से मेरा किया गया स्तवन-पूजन कोटि गुना फल देने वाला होगा।’
भगवान सूर्य के कहने पर गंगा ने कहा कि हनुमान चतुर्मास व्यतीत होते ही पुनः भगवान राम की सेवा में उपस्थित हो जाएँगे। तब तक हनुमान जी किष्किन्धा पर्वत पर सुग्रीव की सेना में लगे रहे। चतुर्मास बीतने पर भगवान राम सीता की खोज करते हुए किष्किन्धा पर्वत पर पहुँचे वहाँ पर उनकी मुलाकात भगवान राम से हुई।
अस्तु, कालान्तर में जब मुगल शासन के दौरान अकबर के समय में जब बादशाह अकबर ने उस सिद्ध तपोभूमि को अपने किले के रूप में परिवर्तित करना प्रारम्भ किया। तब उसके दीवार की ही सीध में सोए हुए हनुमान का मंदिर पड़ गया। उसने तत्कालीन हिन्दू धर्मगुरुओं एवं पंडितों को रुपए-पैसे का लोभ देकर तथा डरा-धमका कर उस सोए हनुमान जी के मंदिर को अन्यत्र स्थापित करवाने के लिए राजी किया। हनुमान जी के मूर्ति की खुदाई होने लगी। जब समूची मूर्ति की खुदाई नीचे से कर ली गई। तब उसे उठाया जाने लगा। जब लगातार कोशिश के बावजूद भी मूर्ति नहीं उठी। तब उसे भारी सामान उठाने वाली मशीन से उठाने की कोशिश की जाने लगी। ज्यों ज्यों उस मूर्ति को उठाने की कोशिश की गई। वैसे-वैसे मूर्ति और भी नीचे धसती चली गई।
अन्त में डर कर अकबर ने उस मंदिर को हटवाने का काम बन्द करा दिया। तथा डर के मारे उसने हनुमान जी की बड़ी पूजा-आराधना की। आज भी उसके उतने बड़े भव्य किले की दीवार हनुमान जी के मंदिर की तरफ टेढ़ी ही है।
एक मान्यता और है इस मंदिर के बारे में इस मान्यता के पीछे रामभक्त हनुमान के पुनर्जन्म की कथा जुड़ी हुई है। लंका विजय के बाद बजरंग बलि जब अपार कष्ट से पीडि़त होकर मरणा सन्न अवस्था मे पहुँच गए थे। तो माँ जानकी ने इसी जगह पर उन्हे अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोग्य व चिरायु रहने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेंगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा।
यहां स्थापित हनुमान की अनूठी प्रतिमा को प्रयाग का कोतवाल होने का दर्जा भी हासिल है। आम तौर पर जहां दूसरे मंदिरों मे प्रतिमाएँ सीधी खड़ी होती हैं। वही इस मन्दिर मे लेटे हुए बजरंग बली की पूजा होती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक लंका विजय के बाद भगवान् राम जब संगम स्नान कर भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने प्रयाग आए तो उनके सबसे प्रिय भक्त हनुमान इसी जगह पर शारीरिक कष्ट से पीडि़त होकर मूर्छित हो गए।
पवन पुत्र को मरणासन्न देख मां जानकी ने उन्हें अपनी सुहाग के प्रतिक सिन्दूर से नई जिंदगी दी और हमेश स्वस्थ एवं आरोग्य रहने का आशीर्वाद प्रदान किया। मां जानकी द्वारा सिन्दूर से जीवन देने की वजह से ही बजरंग बली को सिन्दूर चढ़ाये जाने की परम्परा है
संगम आने वाल हर एक श्रद्धालु यहां सिंदूर चढ़ाने और हनुमान जी के दर्शन को जरुर पहुंचता है। बजरंग बली के लेटे हुए मन्दिर मे पूजा-अर्चना के लिए यूं तो हर रोज ही देश के कोने-कोने से हजारों भक्त आते हैं लेकिन मंदिर के महंत आनंद गिरी महाराज के अनुसार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ साथ पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बल्लब भाई पटेल और चन्द्र शेखर आज़ाद जैसे तमाम विभूतियों ने अपने सर को यहां झुकाया, पूजन किया और अपने लिए और अपने देश के लिए मनोकामना मांगी। यह कहा जाता है कि यहां मांगी गई मनोकामना अक्सर पूरी होती है।
आरोग्य व अन्य कामनाओं के पूरा होने पर हर मंगलवार और शनिवार को यहां मन्नत पूरी होने का झंडा निशान चढऩे के लिए लोग जुलूस की शक्ल मे गाजे-बाजे के साथ आते हैं। मन्दिर में कदम रखते ही श्रद्धालुओं को अजीब सी सुखद अनुभूति होती है। भक्तों का मानना है कि ऐसे प्रतिमा पूरे विश्व मे कहीं मौजूद नहीं है।
इलाहाबाद में संगम के निकट स्थित यह मंदिर उत्तर भारत के मंदिरों में अद्वितीय है। मंदिर में हनुमान की विशाल मूर्ति आराम की मुद्रा में स्थापित है। यद्यपि यह एक छोटा मंदिर है फिर भी प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में भक्तगण आते हैं।
Let us tell you the story of Hanuman ji lying in Allahabad.
New stories keep arising on the basis of various legends and imaginary and fabricated stories. Some of these are true. But some have no basis at all. The same thing is about the famous lying Hanuman ji in the Puranas situated on the Sangam bank of Prayagraj area in Allahabad. This temple is the only temple on earth whose details are found in Puranas in detail.
This is the only temple where the description of the lying form of Hanuman ji is found. Now-a-days many temples have been built. Where Hanuman ji is depicted lying down. Probably the huge temple of lying Hanuman ji built in Mhaismal near Aurangabad, Maharashtra also comes in this category. Whatever may be the case, the description of the temple of only one lying down Hanuman ji is found in the Puranas. And that is the Bade Hanuman ji temple of Allahabad situated on the Sangam bank of Prayag region.
The popular story that is received about this reclining Hanuman ji’s temple is that once a merchant was walking through the waterway carrying a grand idol of Hanuman ji. He was the supreme devotee of Hanuman ji. When he reached near Prayag with his boat, his boat gradually started getting heavy and drowned in Yamuna ji’s water after reaching near Sangam. After some time, when the stream of Yamuna ji’s water changed its path. So that idol appeared. At that time the rule of Muslim ruler Akbar was going on. He did this to win the hearts of the Hindus and with the desire from inside that if Hanuman ji is really so influential then he will protect me.
Thinking of this, he got them established near his fort. But it seems baseless. Because Puranas were composed by Vedvyas. Whose time comes in Dwapar Yug. On the contrary, the reign of Akbar comes in the fourteenth century. The Puranas had been composed long before the reign of Akbar. Therefore, this story must be imaginary, fabricated or an elusive trap for the appeasement of a particular community.
The most logical, authentic and relevant story about this is obtained on the basis of public opinion, that is, in Ramavatar i.e. in Tretayug, when Hanumanji left his Guru Suryadev after completing his education and initiation, there was talk of Gurudakshina. Lord Surya told Hanuman ji that when the time would come, he would ask for Dakshina. Hanuman ji agreed. But even then, immediately on the insistence of Hanuman ji, Lord Surya said that Ram, the son of King Dasaratha of Ayodhya, incarnated in my lineage, along with his brother Laxman and wife Sita, have been sent to exile due to the enjoyment of destiny. Take care that they do not face any difficulty in the forest or that no demon harms them.
After listening to Suryadev, Hanuman ji left for Ayodhya. God thought that if only Hanuman would kill all the demons, then the purpose of my incarnation would be over. So he inspired Maya to put Hanuman in a deep sleep. After receiving the order of God, Maya went to the direction from which Hanuman ji was coming. Here, when Hanuman ji reached the banks of the Ganga while walking, Lord Sun had set. Hanuman ji bowed down to Mother Ganga. And thinking of not crossing the river at night, decided to spend the night on the banks of the Ganges.
The message of obeying his Guru was circulating in the heart of Hanuman ji. So he could not even sleep. That’s why he became meditative by applying posture and became engrossed in thoughts. Here, when Maya saw him meditating, she got scared. Because if it is early in the morning, Hanuman ji will reach Ayodhya and Hanuman ji, determined in his vow, will start his work. Suddenly Hanuman ji’s attention was broken.
He thought why not spend the night in satsang. Thinking this, he went towards the hermitage of Rishi Bhardwaj. Now Maya has become even more disappointed. Hanuman ji reached the ashram of sage Bhardwaj. There the lecture of Ved Puran was going on. Hanuman ji sat there and started listening to the story. In the story, Bharadwaj Rishi told that tomorrow Lord Rama, incarnated as the Lord of the world and the son of Ayodhya King Dasaratha, is going to reach here by crossing the Ganges. Hanuman ji became happy.
Now he gave up the idea of crossing the Ganges and going to Ayodhya. And decided to wait for Lord Ram by staying there on the bank of Sangam. After completing the necessary tasks of the night, Hanuman ji lay down on the banks of Sangam. And they fell asleep. Here Maya got an opportunity. And he caught hold of Hanuman ji. Hanuman ji went into deep sleep. Here Lord Rama crossed the Ganges and reached Prayag. He saw Hanuman ji sleeping. And gave him a boon that whoever would see the idol of this sleeping Hanuman. He will receive my grace without any effort. That person will not have to be a victim of any kind of ghost or deception, conspiracy etc. All his enemies will automatically be defeated.
In this way, after giving an infallible boon to Hanuman ji, Lord Ram went ahead after seeing the hermitage of Bhardwaj Rishi and Akshayavat. This boon is literally coming true today. The darshan of this Puran famous Siddha Hanuman temple definitely pacifies all obstacles, troubles, evils etc. Here in the morning, when Goddess Ganga saw that a creature was sleeping with its legs spread towards her. So feeling humiliated, he drowned Hanuman ji.
When Suryadev saw this condition of his disciple Hanuman in the morning, he cursed Ganga that ‘Your heart is dirty, because of ignorance you have punished a simple creature. Respecting you, Hanuman did not think it good to pass over you at night and you cursed him. Go, from today you become a carrier of dead bodies and filth of animals.’ Due to the contamination of river Ganga, all the divine and auspicious works of the world started getting interrupted. Then all the gods together worshiped Lord Surya Dev. Then Lord Suryadev said that ‘Ja Gange! The purity of your water will increase as soon as my rays fall on your water. And my praise and worship done with your water will be multi-fold fruitful.’
At the behest of Lord Surya, Ganga said that Hanuman will again be present in the service of Lord Rama as soon as Chaturmas is over. Till then Hanuman ji remained engaged in Sugriva’s army on Kishkindha mountain. After Chaturmas, Lord Rama reached Kishkindha mountain in search of Sita, where he met Lord Rama.
Astu, later on, during the time of Akbar during the Mughal rule, when Emperor Akbar started converting that Siddha Tapobhoomi into his fort. Then the temple of sleeping Hanuman fell in line with its wall. He convinced the then Hindu religious leaders and pundits to establish the temple of that sleeping Hanuman ji elsewhere by giving greed of money and intimidation. The digging of the idol of Hanuman ji started. When the entire idol was excavated from below. Then he started being picked up. When the idol did not rise even after repeated efforts. Then an attempt was made to lift him with a heavy lifting machine. As soon as an attempt was made to lift that idol. Anyway, the idol kept sinking further down.
In the end, fearing, Akbar stopped the work of removing that temple. And out of fear, he worshiped Hanuman ji a lot. Even today the wall of such a grand fort is tilted towards the temple of Hanuman ji.
There is another belief about this temple. Behind this belief, the story of the rebirth of Ram devotee Hanuman is attached. After the victory of Lanka, when Bajrang Bali had reached the point of death after suffering from immense pain. So Maa Janaki gave him her vermilion at this place and blessed him with a new life and good health and vivacity forever and said that whoever comes to Sangam Snan on this Triveni beach will get the real fruit of Sangam Snan only when he sees Hanuman ji. Will do
The unique statue of Hanuman established here also has the status of being the Kotwal of Prayag. Generally where in other temples the idols stand straight. The same Bajrang Bali is worshiped lying down in this temple. According to mythology, after the victory of Lanka, when Lord Rama came to Prayag to seek blessings from sage Bhardwaj after taking a confluence bath, his most beloved devotee Hanuman fainted at this place due to physical pain.
Seeing Pawan’s son about to die, mother Janaki gave him a new life with vermilion, the symbol of her honey, and blessed him to be healthy and healthy forever. There is a tradition of offering vermilion to Bajrang Bali because Mother Janaki gave him life with vermilion.
Every devotee who comes to Sangam reaches here to offer vermilion and have darshan of Hanuman ji. Everyday thousands of devotees come from every corner of the country to worship in the lying temple of Bajrang Bali, but according to Mahant Anand Giri Maharaj of the temple, along with the Father of the Nation Mahatma Gandhi, Pandit Nehru, Indira Gandhi, Rajiv Gandhi , Sardar Vallabhbhai Patel and Chandra Shekhar Azad, bowed their heads here, worshiped and asked for wishes for themselves and their country. It is said that wishes asked here often come true.
On fulfillment of health and other wishes, people come here in a procession with music and music to hoist the flag to mark the fulfillment of the vow here every Tuesday and Saturday. The devotees get a strange pleasant feeling as soon as they step into the temple. Devotees believe that such a statue does not exist anywhere in the whole world.
This temple located near Sangam in Allahabad is unique among the temples of North India. The huge idol of Hanuman in the temple is installed in the posture of rest. Although it is a small temple yet hundreds of devotees visit it every day.