नित्या को मिली अम्मा

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नित्या और नमन नवविवाहित जोड़ा मध्य भारत से पहुंच गया सुदूर दक्षिण भारत के महानगर में अपनी नई गृहस्थी बसाने। नमन वहां एक कंपनी में काम करता था। वहां की संस्कृति, भाषा सब अलग थी।फिर भी धीरे-धीरे उन्हें अच्छा लगने लगा। घर व्यवस्थित करने के बाद नित्या कुछ देर के लिए बाहर निकल कर इधर-उधर देख रही थी। उनके पड़ोस में रहने वाले परिवार की आंटी उसे रोज देखती लेकिन अलग भाषा के कारण बात नहीं कर पाती थी। उस दिन नित्या ने उन्हें देखा। नित्या ने यहां आने से पहले कुछ कुछ शब्दों को बोलने का अभ्यास कर लिया था जिससे बातचीत करने में ज्यादा परेशानी ना हो ।नित्या ने आंटी से बात शुरु की ।आप कैसी है आंटी ।
आंटी को नित्या की बात सुनकर अच्छा लगा। उन्होंने भी कहा हम अच्छे है ।आप लोग नए आए हैं अगर कोई भी परेशानी हो तो बताना।
इस तरह नित्या और आंटी की जान पहचान हो गयी। आंटी ने नित्या को अपने को ‘अम्मा ‘कहने को कहा की मुझे अच्छा लगेगा।वे रोज बातें करने लगे। एक दिन शाम को दोनों बात कर रहे थे तो अम्मा ने कहा कि- जा रही हूं कल की पूजा की तैयारी करूंगी ।नित्या ने उनसे पूछा कौन सी पूजा। तो अम्मा ने बताया कि कल वट पूर्णिमा की पूजा है।
नित्या ने कहा कि हम तो इसे अमावस्या के दिन करते हैं। अम्मा ने बताया कि हम लोग पूर्णिमा के दिन करते हैं। अगर तुम कल जाना चाहो तो हमारे साथ चलना ।नित्या ने ठीक है कहा। नमन के आने पर उसने यह बात नमन से बताई तो उसने भी कहा ठीक है चले जाना। नित्या सुबह उठकर नमन के ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी। और नमन के आफिस जाने के बाद अम्मा के यहां गई ।उसने देखा अम्मा ने पूरा श्रृंगार किया था ।अम्मा ने नित्या से भी कहा कि तुम भी अच्छे से तैयार होकर आ जाओ। नित्या घर आकर अच्छे से श्रृंगार करके आई तो अम्मा ने उसके बालों में गजरा लगा दिया। नित्या अम्मा के साथ पूजा करने गई। एक स्थान पर बरगद का विशाल वृक्ष था। उसकी बड़ी-बड़ी जटाएं झूल रही थी। आस पास बहुत सी महिलाएं पूजा कर रही थी। अम्मा और नित्या थोड़ी देर इंतजार करने लगे। जगह खाली हुई तो अम्मा ने पूजा का सामान वहां रखा और नित्या को भी बताने लगी की कैसे पूजा करनी है।उन्हों के कहा कि तुम भी मेरे साथ साथ करते जाना । अम्मा ने सबसे पहले जल अर्पण किया। उसके बाद कच्चे सूत को वृक्ष के चारों ओर सात बार लपेटा। नित्याभी उनके पीछे पीछे करने लगी। फिर अक्षत ,फूल ,कुमकुम आदि चढ़ाकर दिनों ने विधिवत पूजा की। सुहाग सामग्री चढ़ाई और कथा सुनी।अम्मा ने भीगे चने और गुड़ का भोग लगाया। वहां आंटी के जान पहचान की अन्य महिलाएं और उनकी बहुऐं भी आई थीं जिनसे अम्मा ने नित्या का परिचय करवाया। सबने एक दूसरे को सुहाग की चीजें और प्रसाद दिया और व्रत का महत्व बताया यह पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है । नित्या ने भी सुबह से कुछ नहीं खाया था ।जब उसने पूजा की और व्रत की महिमा सुनी तो उसने भी सोचा कि मैं भी आज व्रत कर लेती हूँ।

उसने आते समय अम्मा को यह बात बताइ।अम्मा ने खुशी-खुशी व्रत करने को कहा और कहा कि शाम को फलाहार करने हमारे यहां आना। शाम को उन्होंने दूध से बने व्यंजन बनाए थे । नित्या भी फल लेकर गयी। दोनों ने साथ में फलाहार किया ।
उस दिन अम्मा अपनी बहू और बेटी को बहुत याद कर रही थीं।नित्या से कहने लगी कि मुझे आज ऐसा लगा कि मैं उनके साथ पूजा कर रही हूं ।अम्मा ने नित्या को बहुत सुंदर साड़ी और सुहाग सामग्री के साथ देर सारा आशीर्वाद दिया।
नित्या नमन का इंतजार करने लगी। जब नमन वापस आया और उसने नित्या को इस नए रूप में देखा तो देखता रह गया और नित्या की प्रशंसा करने लगा। नित्या ने फोन में अपनी मां और सासू मां को आज की पूजा के बारे में बताया। दोनों ही सुन कर अपनी खुशी व्यक्त करने लगीं।दोनों को ही नित्या की बहुत चिंता थी कि नए जगह पर वह कैसे रह पाएगी।आज उसकी सारी बातें सुनकर और अम्मा के व्यवहार के बारे में सुनकर उनकी चिंता दूर हो गई । नित्या को एक स्नेह करने वाली अम्मा मिल गयी थीं।

स्वरचित
नीरजा नामदेव
छत्तीसगढ़

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