गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कोई भी ग्रह , जादू टोना बुरी बला भूत प्रेत और जंतर तंत्र या दुष्ट व्यक्ति उसका अनिष्ट नहीं कर सकता !बुध गुरु सोम मंगल आदि ग्रह वर देने वाले हो जाते हैं राहु केतु तुला शनि ग्रह सब तुम्हारे अनुकूल हो जाते हैं |जो मनुषय भगवान राम जी के चरणो का आश्रय लेता हैव् भजन ध्यान करते है उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता
जानकीनाथ सहाय करे तब,
कौन बिगाड़ करै नर तेरो।
सूरज मंगल सोम भृगुसुत,
बुध और गुरु वरदायक तेरो।
राहू केतू की नाँहि गम्यता,
तुला शनिश्चर होय है चेरो॥
जानकीनाथ सहाय करे……….
दुष्ट दुशासन निबल द्रौपदि,
चीर उतारण मंत्र बिचारो।
जाकी सहाय करी यदुनन्दन,
बढ़ गयो चीर को भाग घनेरों
जानकीनाथ सहाय करे……….
गर्भकाल परीक्षित राख्यों,
अश्वत्थामा को अस्त्र निवारयो।
भारत में भरुही के अंडा,
तापर गज को घंटा गेरयो॥
जानकीनाथ सहाय करे……….
जिनकी सहाय करे करुणानिधि।
उनको जग में भाग्य घनेरों।
रघुवंशी संतन सुखदायी,
तुलसीदास चरणां को चेरो॥
जानकीनाथ सहाय करे……….
श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है
भरोसो जाहि दूसरो सो करो।
मोको तो रामको नाम कलपतरु, कलिकल्यान फरो
राम राम रटु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-गत, रामनाम-मति, रामनाम अनुरागी।
ह्वै गये हैं जे होहिगे, त्रिभुवन, तेइ गनियत बड़भागी॥
भज मन रामचरन सुखदाई॥
जिन चरननकी चरनपादुका भरत रह्यो लव लाई।
सोइ चरन केवट धोइ लीने तब हरि नाव चलाई॥
सोइ चरन संत जन सेवत सदा रहत सुखदाई।
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी परसि परमपद पाई॥
तुलसीदास जी रात दिन राम नाम की माला जपते रहते थे, और अपने प्रभु श्रीराम के दर्शन की आकांक्षा लिए यहाँ वहाँ भटकते….बहुत कोशिश की पर दर्शन ना मिले अब दर्शन तो करना ही थे…..कैसे करें? इससे उससे पूछे तो किसी ने बताया कि फलानि जगह एक तांत्रिक रहता है वो बता सकता है कि श्रीराम कैसे और कहाँ मिल सकते हैं….तुलसीदास की बड़ी आशा के साथ उस तांत्रिक तक पहुँचे….पूछते हैं आदरणीय मैं श्रीराम के दर्शन करना चाहता हूँ, बड़ी आशा के साथ आपके पास आया हूँ, क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं, क्या मैं इतना पापी हूँ कि मेरे भगवान् अपने भक्त को दर्शन भी नहीं देंगे…..तांत्रिक को तुलसीदास जी पे तरस आ गया उसने कहा श्रीमान श्रीराम का पता तो सिर्फ एक ही माध्यम से पता चल सकता है….वो हैं उनके भक्त श्री हनुमान पहले आप उन्हें खोज लीजिये वे आपको श्रीराम तक पहुँचा देंगे….अब तुलसीदास जी के सामने नई आफत….अब पहले हनुमान जी को ढूंढो फिर श्रीराम को….कोई बात नहीं, तांत्रिक ने कहा आप चिंतित ना हों यहाँ चित्रकूट में एक जगह श्रीराम कथा होती है जहाँ आप हनुमान जी से मिल सकते हैं….बोले पर पहचानूँगा कैसे? कि यही हनुमान जी हैं….
तांत्रिक बोला जो प्राणी सबसे पहले आये और सबसे आखिर तक बैठा रहे समझ जाना कि यही हैं वे…अब तुलसीदास जी को तो हनुमान जी से मिलना था कैसे भी करके सो कथा होनी थी शाम को तुलसीदास जी पहुँच गए सवेरे से ही…..लगे इंतज़ार करने….कि कब आएंगे हनुमानजी….
आखिरकार एक कोढ़ी व्यक्ति आया और पीछे कोने में बैठ गया तुलसीदास जी समझ गए….धीरे धीरे और भीड़ आती गई और लोग उस कोढ़ी को दुत्कार के पीछे और पीछे धकेलते गए कि चल कोढ़ी पीछे बैठ जाके….बिचारा सरकते सरकते सबसे अंत में जा पहुँचा….तुलसीदास जी सब देख रहे थे….जैसे ही श्रीराम कथा समाप्त हुई एक इक करके सारे श्रोतागण चले गए….अब बचे मात्र दो जन तुलसीदास जी और कोढ़ी….दोनों एक दुसरे को टुकुर टुकुर ताकें बोले कछु ना….कोढ़ी सोचे की ये जाएँ तो हम भी जाएँ पर तुलसीदास जी के मन में तो पूरा प्लान था….तुलसीदास जी काफी देर बाद उठके उस कोढ़ी के पास गए और बोले कि काये बाबा जाओ ना जाते काहे नहीं हो रामकथा तो समाप्त हो गई….कोढ़ी बोला तुमसे मतलब हम काये जाएँ तुम जाओ ना….हम तो यहीं बैठेंगे….दोनों एक दुसरे को जाने को कहें पर जाने के लिए तैयार कोई ना हुआ….अब तुलसीदास जी को पक्का विश्वास हो चला था कि यही हैं वे सो सीधा पैर पकड़ लिए बोले प्रभु अब और परिक्षा ना लो आ जाओ अपने रूप में….हनुमान जी ने उन्हें अपने दर्शन दिए और तुलसीदास जी के मन की व्यथा जान कर बोले अरे वे तो रोज़ तुमाये पास आते हैं रामघाट पे चन्दन लगवाके चले जाते हैं पर तुम पहचान ही नहीं पाते तो कोई का करे?
इतने में तुलसीदास जी बोले क्या सच में मेरे प्रभु श्रीराम मुझे दर्शन देके जाते हैं और मैं उन्हें पहचान नहीं पाता हनुमान जी से विनती करते हैं कि अब कि आएं तो आप इशारा कर दीजियेगा मैं इस बार नहीं जाने दूँगा….बोले ठीक है मैं इस पेड़ पे बैठा रहूँगा जैसे ही वे आएंगे मैं आपको संकेत दे दूँगा…..तुलसीदास जी रामघाट पे तैयारी के साथ बैठ जाते हैं….एक एक करके अनेकों साधू सन्यासी आते तिलक लगवाते चले जाते पर प्रभु अब तक ना आये….तुलसीदास जी को लगा शायद अब ना आएँगे….थोड़ी देर और राह देखी पर नहीं आये सो उनकी आँख लग गई….जैसे ही आँख लगी यहाँ एक छोटा सा बच्चा साधू वेश में आया…..तिलक लेके जैसे ही जाने लगा ऊपर बैठे हनुमान जी बोल उठे…
चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़,
तुलसी दास चन्दन घिसें तिलक देत रघुवीर।।
सुनते ही तुलसीदास जी यकायक चैतन्य हुए और देखते ही उस बालक के पैर पकड़ लिए…..आँखों से गंगा जी बह गई….धार लग गई आंसुओं की बोले प्रभु बड़ा सताया अब बस और नहीं दर्शन दे दो प्रभु….श्रीराम मुस्कुराये और अपने वास्तविक रूप में उन्हें दर्शन दिए…..गले मिले और वहीं से तुलसीदास जी को श्रीराम चरित मानस लिखने की प्रेरणा हुई इसमें उनका साथ स्वयं श्री हनुमान जी महाराज ने दिया…..पूरी रामचरित मानस श्रीहनुमान जी ने ही उन्हें बताई और तुलसीदास जी ने उसे अपनी कलम दी…..ऐसा संतों का मानना है और यही कथा तुलसीदास जी के सन्दर्भ में प्रचलित प्रसंग है…
जय श्रीराम!!