धर्म रथ 2

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पिछले कई दिवसों से धर्म और धर्मशीलता के विषय पर चर्चा चिन्तन हो रहा है ये सारा चिंतन धर्म रथ के मार्मिक प्रसंग को ही समझने के लिए किया गया। धर्म रथ बहुत ही मार्मिक प्रसंग और आज हम सबसे जुड़ी समस्या से सम्बंधित प्रसंग है। धर्म रथ ऐसा रथ है जिस पर सवार नही हुआ जाता अपितु इस रथ को अपने भीतर रख कर उसके सिद्धांतो पर चलकर आज की विकट समस्या धर्म और अधर्म की लड़ाई में मनुष्य विजयी हो सकता है। धर्मशीलता के लक्षण और गुण जब हर प्रकार से साधक के भीतर आ जाते हैं तब वह इस धर्म रथ को अपने भीतर धारण करने में सफल होता है। ये धर्म रथ कैसा होता है ? किन किन साधनों से यह बना है ? कौन कौन से साधन इसके भीतर है ? ये सारा वर्णन इस धर्म रथ प्रसंग में हम करेंगे क्रमशः परमात्मा की कृपा से और गम्भीर यह प्रसंग है अतः सभी साधक जन कृपया विशेष ध्यान पूर्वक इस पूरे प्रसंग को समझने का प्रयास करें आरम्भ से अंत तक इससे बहुत सारी समस्याएं हमारे जीवन की कम होंगी। आरम्भ करते हैं भारत के इतिहास में बहुत सारे युद्ध हुए हैं अनगिनत और हर एक युद्ध का कारण लगभग एक सा ही होता है वसु या तो वसुधा इन कारणों से ही कोई भी युद्ध होता है। प्रमुख दो युद्ध जो भारत में हुए कौरव पांडवों के बीच महाभारत युद्ध राम रावण के बीच लँका का युद्ध इन दोनों युधो के मध्य भी एक सा कारण था। अर्थात महाभारत का भी केंद्र बिंदु द्रौपदी थीं कहीं न कहीं और राम रावण युद्ध का केंद्र जानकी जी थी ये हम सभी जानते हैं। इतिहास में और भी बहुत से युद्ध हुए लेकिन इन्ही दो युद्धो को हमने आज तक केवल याद ही नही रखा हुआ अपितु पूजा घर में भी इन युद्ध गाथाओं को विराजित कर लिया बड़े ही श्रद्धा से भाव से हम इनका पाठ भी करते हैं और किसी युद्ध चर्चा को तो हमने इतना आदर नहीं दिया। क्यों सन्त जन कहते है क्योंकि इन दोनों युद्धो से एक एक गीता प्रकट हुई है ज्ञान की गीता गंगा के रूप में भगवान के श्री मुख से प्रकट हुई है कुरुक्षेत्र के रणांगन में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया है ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन उससे एक युग पूर्व भगवान राम ने भी यही गीता का ज्ञान विभीषण को दिया है लँका के रणांगन में जिसे विभीषण गीता कहा जाता है धर्म रथ प्रसंग लँका कांड की यह प्रथम गीता है जो भगवान राम के श्री मुख से प्रकट हुई है विभीषण के संशय को दूर करने के लिए। क्योंकि जिस समय राम रावण युद्ध का अंतिम दौर चल रहा था लगभग लगभग अंतिम युद्ध था राम रावण के मध्य उस समय रावण को सब साधन संपन्न देख और राम जी को साधन विहीन देख विभीषण के मन मे संशय आ गया
*रावण रथी विरथ रघुबीरा, देखि विभीषण भयउ अधीरा*
*अधिक प्रीति मन भा संदेहु*
जिस समय रावण का राम जी के साथ अंतिम युद्ध था उस समय विभिषण ने देखा कि रावण के पास अजय रथ है सब प्रकार के साधन है पूरी तरह कवच कुंडल सहित सुस्सजित है रावण और दूसरी ओर भगवान राम कैसे खड़े हैं बोले    
*नाथ न रथ नही तन पद त्राणा, केहि विधि जितब वीर बलवाना*
विभीषन कहते है हे प्रभु आपके न तो चरणों मे कोई खड़ाऊ है न कोई शरीर पर कवच है न ही कोई विभिन्न साधनों से सुस्सजित रथ है आपके पास आप कौन सी विधि से ये युद्ध जीतेंगे ? विभीषन को ये तो पक्का भरोसा है कि जीतेंगे तो राम जी ही जीतने के विषय में कोई संदेह नहीं है विभिषण को लेकिन कौन सी विधि से जीतेंगे इस विषय में विभीषण को संदेह है। और ये संदेह भी क्यों हुआ सन्त जन कहते हैं अधिक प्रीति बहुत अधिक प्रेम के कारण मन भा संदेहु जैसे माँ को अपना बालक कमजोर ही दिखाई देता है माँ को लगता ही नही कि मेरा बालक कोई कठिन कार्य कर सकता है क्योंकि बहुत अधिक प्रेम से ऐसा होता है संदेह रहता है यही संदेह विभीषण को हो रहा है इसी संदेह का निवारण करते हुए भगवान ने धर्म रथ प्रसंग विस्तार पूर्वक लँका के रणांगन में खड़े होकर विभीषण को गीता के ज्ञान के रूप में सुनाया है। कौन सा और कैसा धर्म रथ है जिस पर धर्म स्वरूप परमात्मा सवार है ? इसी रथ पर प्रत्येक उस साधक को सवार होकर अधर्म से युद्ध करना चाहिए जो धर्म परायण है सन्त जन कहते हैं ये पूरी चर्चा जीव को मोह को नाश करने के लिए हुए संदेह के लिए ब्रह्म से की गई वार्ता है। बिल्कुल वही वार्ता जो द्वापर में अर्जुन और श्री कृष्ण के मध्य हुई थी श्री मद्भगवद गीता जिसे कहते हैं यदि इस विभीषण गीता धर्म रथ प्रसंग को साधक मनन करें तो बहुत सरलता से अर्जुन को सुनाई गीता भी समझ में आ सकती है।
     धर्म रथ का वर्णन करके भगवान राम ने प्रत्येक धर्म पथ पर चल रहे साधक को यह समझाया है कि धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध साधनों से नही संकल्प से जीता जाता है। मन मे यदि शुभ संकल्प है और धर्म के रथ पर साधक सवार है उसे अपने ह्रदय में धारण करते हुए तो जीत धर्म की ही होगी भले अधर्म कितना भी सुविधा और साधन संपन्न हो सामने।
चिन्तन कर ले मना..

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