एक राजाके चार पत्त्रियाँ थीं। राजाने हर एकको एक-एक काम सौंप दिया। पहलीको दूध दुहनेका काम बताया, दूसरीको रसोई पकानेका, तीसरीको बाल-बच्चे सँभालनेका और चौथीको अपनी सेवा करनेका ।
कुछ दिनों तो चारोंने ठीक-ठीक अपना-अपना काम किया। पर आगे चलकर हर एकको यह मालूम पड़ने लगा कि मैं ही क्यों रसोई पकाऊँ, राजाकी सेवा क्यों न करूँ; मैं ही दूध क्यों दुहूँ, बच्चोंको क्यों न खिलाऊँ। इस तरह एक-दूसरी आपसमें लड़ने लगीं। फलतः घरका काम भी रुक जाता।
राजा इस गृहकलहसे भीतर ही भीतर बड़ा उदास रहता। एक बार उसके यहाँ एक महात्मा आये। राजाने अर्घ्यपाद्यादिसे उनकी सम्भावना की। महात्माने राजाका उदास चेहरा देखकर कारण पूछा। राजाने सारा किस्सा कह सुनाया। महात्माने उसे आश्वासन देकर इसका उपाय कर देना स्वीकार किया।
महात्माने अन्तर्दृष्टि लगायी। झगड़ेके कारणोंका पता पा लिया और राजाको लेकर पहली रानीके यहाँ आये। उससे पूछा – ‘तुम्हें दूध दुहनेका काम दिया। गया है न?’ उसने कहा ‘हाँ।’ महात्माने बताया ‘तो सुनो, पूर्वजन्ममें तुम गाय थी। दिनभर जंगलमें चरती और शामको वहींके एक शिवालयमें आ अपने स्तनोंकी दुग्धधारसे उनपर अभिषेक करती थीं; पर बीचमें ही मृत्यु हो गयी। उस पुण्यसे रानी बनी, पर आराधना पूर्ण नहीं हुई थी इसीलिये राजाने तुम्हें दूध | दुहनेको कहा। दूध दुहकर शंकर समझ उन्हें पिलाती जाओ, इसीमें तुम्हारा कल्याण है।’
रानीने ‘तथास्तु’ कहकर नमस्कार किया।
महात्मा आगे बढ़े। दूसरी रानीके पास आकर कहा कि ‘तुम रसोई पकानेसे क्यों भागती हो। अरी, पूर्वजन्ममें तुम गरीब ब्राह्मणकी पत्नी थीं। सोमवारका व्रत करतीं और प्रतिदिन कोरा अन्न भिक्षामें माँग लातीं तथा पकाकर भगवान्को भोग लगाती थीं। उसी पुण्यसे तुम रानी बनीं। इसलिये रसोई पकाया करो और सबकी आत्मा तृप्तकर भगवान्को प्रसन्न करो।’ उसने भी ‘तथास्तु’ कहा।
महात्मा तीसरी रानीके पास गये। उससे कहा ‘पूर्व-जन्ममें तुम वानरी थीं। अच्छे-अच्छे फल तोड़कर शंकरको चढ़ाती थीं। इसीलिये रानी बनीं और बाल बच्चे हुए। इन्हें ही सँभालनेमें तुम्हारा कल्याण और शंकरकी प्रसन्नता है।’ तीसरीने भी मान लिया। महात्मा चौथी रानीके पास आये। उससे कहा
‘पूर्वजन्ममें तुम चील थीं। आकाशमें उड़तीं और दोपहर में जंगलके एक महादेवके सिरपर छाँह करके उन्हें नित्य धूपसे बचाती थीं। इसीलिये तुम्हें भगवान्ने रानी बनाकर छप्पर पलंगपर बिठाया। इसलिये तुम भी राजाको यहीं बैठकर सुख दो, उसकी सेवा करो; इसीमें तुम्हारा कल्याण है।’ उसने भी स्वीकार कर लिया।
महात्मा चले गये। चारों रानियाँ अपना-अपना कर्तव्य पूर्वजन्म प्राप्त समझकर उन-उन कामोंको बड़े प्रेमसे करने लगीं। दूसरेका काम अच्छा और अपना बुरा, यह कभी भी मनमें न लातीं। एक-दूसरेकी ईर्ष्या से बचकर बड़े प्रेमसे रहने लगीं। राजाके भी आनन्दका ठिकाना न रहा। गो0 न0 बै0 – प्राचीन कथाएँ
एक राजाके चार पत्त्रियाँ थीं। राजाने हर एकको एक-एक काम सौंप दिया। पहलीको दूध दुहनेका काम बताया, दूसरीको रसोई पकानेका, तीसरीको बाल-बच्चे सँभालनेका और चौथीको अपनी सेवा करनेका ।
कुछ दिनों तो चारोंने ठीक-ठीक अपना-अपना काम किया। पर आगे चलकर हर एकको यह मालूम पड़ने लगा कि मैं ही क्यों रसोई पकाऊँ, राजाकी सेवा क्यों न करूँ; मैं ही दूध क्यों दुहूँ, बच्चोंको क्यों न खिलाऊँ। इस तरह एक-दूसरी आपसमें लड़ने लगीं। फलतः घरका काम भी रुक जाता।
राजा इस गृहकलहसे भीतर ही भीतर बड़ा उदास रहता। एक बार उसके यहाँ एक महात्मा आये। राजाने अर्घ्यपाद्यादिसे उनकी सम्भावना की। महात्माने राजाका उदास चेहरा देखकर कारण पूछा। राजाने सारा किस्सा कह सुनाया। महात्माने उसे आश्वासन देकर इसका उपाय कर देना स्वीकार किया।
महात्माने अन्तर्दृष्टि लगायी। झगड़ेके कारणोंका पता पा लिया और राजाको लेकर पहली रानीके यहाँ आये। उससे पूछा – ‘तुम्हें दूध दुहनेका काम दिया। गया है न?’ उसने कहा ‘हाँ।’ महात्माने बताया ‘तो सुनो, पूर्वजन्ममें तुम गाय थी। दिनभर जंगलमें चरती और शामको वहींके एक शिवालयमें आ अपने स्तनोंकी दुग्धधारसे उनपर अभिषेक करती थीं; पर बीचमें ही मृत्यु हो गयी। उस पुण्यसे रानी बनी, पर आराधना पूर्ण नहीं हुई थी इसीलिये राजाने तुम्हें दूध | दुहनेको कहा। दूध दुहकर शंकर समझ उन्हें पिलाती जाओ, इसीमें तुम्हारा कल्याण है।’
रानीने ‘तथास्तु’ कहकर नमस्कार किया।
महात्मा आगे बढ़े। दूसरी रानीके पास आकर कहा कि ‘तुम रसोई पकानेसे क्यों भागती हो। अरी, पूर्वजन्ममें तुम गरीब ब्राह्मणकी पत्नी थीं। सोमवारका व्रत करतीं और प्रतिदिन कोरा अन्न भिक्षामें माँग लातीं तथा पकाकर भगवान्को भोग लगाती थीं। उसी पुण्यसे तुम रानी बनीं। इसलिये रसोई पकाया करो और सबकी आत्मा तृप्तकर भगवान्को प्रसन्न करो।’ उसने भी ‘तथास्तु’ कहा।
महात्मा तीसरी रानीके पास गये। उससे कहा ‘पूर्व-जन्ममें तुम वानरी थीं। अच्छे-अच्छे फल तोड़कर शंकरको चढ़ाती थीं। इसीलिये रानी बनीं और बाल बच्चे हुए। इन्हें ही सँभालनेमें तुम्हारा कल्याण और शंकरकी प्रसन्नता है।’ तीसरीने भी मान लिया। महात्मा चौथी रानीके पास आये। उससे कहा
‘पूर्वजन्ममें तुम चील थीं। आकाशमें उड़तीं और दोपहर में जंगलके एक महादेवके सिरपर छाँह करके उन्हें नित्य धूपसे बचाती थीं। इसीलिये तुम्हें भगवान्ने रानी बनाकर छप्पर पलंगपर बिठाया। इसलिये तुम भी राजाको यहीं बैठकर सुख दो, उसकी सेवा करो; इसीमें तुम्हारा कल्याण है।’ उसने भी स्वीकार कर लिया।
महात्मा चले गये। चारों रानियाँ अपना-अपना कर्तव्य पूर्वजन्म प्राप्त समझकर उन-उन कामोंको बड़े प्रेमसे करने लगीं। दूसरेका काम अच्छा और अपना बुरा, यह कभी भी मनमें न लातीं। एक-दूसरेकी ईर्ष्या से बचकर बड़े प्रेमसे रहने लगीं। राजाके भी आनन्दका ठिकाना न रहा। गो0 न0 बै0 – प्राचीन कथाएँ