शम्स तबरेज जय हिन्दुस्तान आये तब हिन्दूकुशके पास उनको एक महात्मा मिले। महात्माने उनको आत्मस्वरूपका उपदेश किया। तदनन्तर शम्स पंजाब गये और उस समयके प्रख्यात मौलाना रूमके यहाँ ठहरे। मौलानाके पास बड़े-बड़े लोग आते थे। उन्हें केसुनहरी स्वाहीसे लिखी हुई कुरान पढ़कर उपदेश किया करते थे। शम्सको यह अच्छा नहीं लगा। उनको लगा कि मौलाना अपने कीमती समयको वृथा खो रहे हैं। एक दिन उपदेश करनेके बाद मौलानाने कुरानकी पुस्तकको रेशमी कपड़े कर चौकीपर रखा था कि शम्सने उसे उठाकर पासके हौजमें डाल दिया। इतनी कीमती पुस्तके यो फेंके जाने से मौलाना साहेब शम्सपर बहुत क्रुद्ध हुए और उन्हें डॉटने-फटकारने लगे। तब शम्सने कुण्डमें हाथ डालकर पुस्तकको निकाल दिया। मौलानाने देखा कि पुस्तकका कपड़ा पानी में पड़नेपर भी भीगा नहीं था। वह जैसा का तैसा सूखा ही था। मौलानाको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे शम्सके पैरों पड़े और पूछने लगे कि ‘यह शक्ति आपको कैसे प्राप्त हुई? आपने कहाँसे यह सीखी ? आजसे आप मेरे गुरु और मैं आपका शिष्य मुझे बतलाइये कि मैं क्या करूँ और कैसे आगे बढ़ें ?’ शम्सने कहा कि ‘प्रथम तुम जितना जानते हो और जितना तुमने पढ़ा है, वह सब भूल जाओ। फिर प्रेम कैसे करना चाहिये यह सीखो।’ मौलानासे तो यह सब हुआ नहीं पर उस समयके लाहौरके नवाबका लड़का बदरुद्दीन (जो पीछेसे नाना या शाहकलंदर के नामसे प्रख्यात हुआ)शम्सकी आज्ञा लेकर प्रेम सीखनेके लिये निकल पड़ा। वह घूमते-फिरते आगरा पहुँचा। वहाँ जब राजमहलके नीचेसे जा रहा था, तब उसने शाहजादीको खिड़की में खड़ी देखा। उसको देखकर वह वहीं खड़ा रह गया। तीन दिन बीत गये पर वह भूखा-प्यासा खिड़कीके सामने खड़ा ही रहा। शेख सादी उसी राहसे जा रहे थे। उन्होंने उसको देखकर पूछा तो पता चला कि वह शाहजादीके साथ शादी करना चाहता है। बादशाहके कानोंतक बात पहुँची। उन्होंने प्रधानोंसे सलाह करके यह तय किया कि यदि उसका शाहजादीपर सच्चा प्रेम है तो वह किलेकी छतपरसे नीचे कूदकर दिखा दे, फिर उसके साथ शादी कर दी जायगी। बदरुद्दीनको तो प्रेम सीखना था। वह तुरंत मान गया और किलेके ऊपर जाकर नीचे कूद पड़ा। शेख सादीने पहलेसे ही नीचे उसको बचानेके लिये नरम झोली डलवा रखी थी। वह झोलीपर गिरा और बच गया। बादशाह उसकी हिम्मत देखकर खुश हो गया और अपनी लड़की की शादी उसके साथ करनेको तैयार हो गया; परंतु बदरुद्दीनको शादी तो करनी नहीं थी, उसको तो प्रेम करना – प्रेमके लिये त्याग करना-सीखना था। उसको लगा कि अब वह उत्तीर्ण हो गया। उसको प्रेम करना आ गया और वह चल पड़ा। वह शम्सके पास गया। शम्सने देखा कि इसको प्रेम करना आ गया है। तब इन्होंने कहा कि ‘जैसे उस लड़कीमें | मन लगाया था, वैसे ही मनको अन्तर्मुखी करके “रमात्मामें लगा दे तो तेरा कल्याण हो जायगा।’
शम्स तबरेज जय हिन्दुस्तान आये तब हिन्दूकुशके पास उनको एक महात्मा मिले। महात्माने उनको आत्मस्वरूपका उपदेश किया। तदनन्तर शम्स पंजाब गये और उस समयके प्रख्यात मौलाना रूमके यहाँ ठहरे। मौलानाके पास बड़े-बड़े लोग आते थे। उन्हें केसुनहरी स्वाहीसे लिखी हुई कुरान पढ़कर उपदेश किया करते थे। शम्सको यह अच्छा नहीं लगा। उनको लगा कि मौलाना अपने कीमती समयको वृथा खो रहे हैं। एक दिन उपदेश करनेके बाद मौलानाने कुरानकी पुस्तकको रेशमी कपड़े कर चौकीपर रखा था कि शम्सने उसे उठाकर पासके हौजमें डाल दिया। इतनी कीमती पुस्तके यो फेंके जाने से मौलाना साहेब शम्सपर बहुत क्रुद्ध हुए और उन्हें डॉटने-फटकारने लगे। तब शम्सने कुण्डमें हाथ डालकर पुस्तकको निकाल दिया। मौलानाने देखा कि पुस्तकका कपड़ा पानी में पड़नेपर भी भीगा नहीं था। वह जैसा का तैसा सूखा ही था। मौलानाको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे शम्सके पैरों पड़े और पूछने लगे कि ‘यह शक्ति आपको कैसे प्राप्त हुई? आपने कहाँसे यह सीखी ? आजसे आप मेरे गुरु और मैं आपका शिष्य मुझे बतलाइये कि मैं क्या करूँ और कैसे आगे बढ़ें ?’ शम्सने कहा कि ‘प्रथम तुम जितना जानते हो और जितना तुमने पढ़ा है, वह सब भूल जाओ। फिर प्रेम कैसे करना चाहिये यह सीखो।’ मौलानासे तो यह सब हुआ नहीं पर उस समयके लाहौरके नवाबका लड़का बदरुद्दीन (जो पीछेसे नाना या शाहकलंदर के नामसे प्रख्यात हुआ)शम्सकी आज्ञा लेकर प्रेम सीखनेके लिये निकल पड़ा। वह घूमते-फिरते आगरा पहुँचा। वहाँ जब राजमहलके नीचेसे जा रहा था, तब उसने शाहजादीको खिड़की में खड़ी देखा। उसको देखकर वह वहीं खड़ा रह गया। तीन दिन बीत गये पर वह भूखा-प्यासा खिड़कीके सामने खड़ा ही रहा। शेख सादी उसी राहसे जा रहे थे। उन्होंने उसको देखकर पूछा तो पता चला कि वह शाहजादीके साथ शादी करना चाहता है। बादशाहके कानोंतक बात पहुँची। उन्होंने प्रधानोंसे सलाह करके यह तय किया कि यदि उसका शाहजादीपर सच्चा प्रेम है तो वह किलेकी छतपरसे नीचे कूदकर दिखा दे, फिर उसके साथ शादी कर दी जायगी। बदरुद्दीनको तो प्रेम सीखना था। वह तुरंत मान गया और किलेके ऊपर जाकर नीचे कूद पड़ा। शेख सादीने पहलेसे ही नीचे उसको बचानेके लिये नरम झोली डलवा रखी थी। वह झोलीपर गिरा और बच गया। बादशाह उसकी हिम्मत देखकर खुश हो गया और अपनी लड़की की शादी उसके साथ करनेको तैयार हो गया; परंतु बदरुद्दीनको शादी तो करनी नहीं थी, उसको तो प्रेम करना – प्रेमके लिये त्याग करना-सीखना था। उसको लगा कि अब वह उत्तीर्ण हो गया। उसको प्रेम करना आ गया और वह चल पड़ा। वह शम्सके पास गया। शम्सने देखा कि इसको प्रेम करना आ गया है। तब इन्होंने कहा कि ‘जैसे उस लड़कीमें | मन लगाया था, वैसे ही मनको अन्तर्मुखी करके “रमात्मामें लगा दे तो तेरा कल्याण हो जायगा।’