सिकन्दरने किसी कारणसे अपनी सेनाके एक सेनापतिसे रुष्ट होकर उसे पदच्युत करके सूबेदार बना दिया। कुछ समय बीतनेपर उस सूबेदारको सिकन्दरके सम्मुख उपस्थित होना पड़ा। सिकन्दरने पूछा- ‘मैं तुमको पहलेके समान प्रसन्न देखता हूँ, बात क्या है ?’
सूबेदार बोला- ‘श्रीमान् मैं तो पहलेकी अपेक्षा भी सुखी हूँ। पहले तो सैनिक और सेनाके छोटे अधिकारी मुझसे डरते थे, मुझसे मिलनेमें संकोच करते थे; किंतु अब वे मुझसे स्नेह करते हैं। वे मेरा भरपूर सम्मान करते हैं। प्रत्येक बातमें मुझसे सम्मति लेते हैं। उनकी सेवा करनेका अवसर तोमुझे अब मिला है।’ सिकन्दरने फिर पूछा—’पदच्युत होनेमें तुम्हें अपमान नहीं प्रतीत होता ?”
सूबेदारने कहा – ‘सम्मान पदमें है या मानवतामें ? उच्च पद पाकर कोई प्रमाद करे, दूसरोंको सतावे, घूस आदि ले और गर्वमें चूर बने तो वह निन्दाके योग्य ही है। वह तो बहुत तुच्छ है। सम्मान तो है दूसरोंकी सेवा करनेमें, कर्तव्यनिष्ठ रहकर सबसे नम्र व्यवहार करनेमें और ईमानदारीमें। भले वह व्यक्ति सैनिक हो या उससे भी छोटा गाँवका चौकीदार।’ सिकन्दरने कहा- ‘मेरी भूलपर ध्यान मत देना। तुम फिर सेनापति बनाये गये।’
For some reason, Alexander got angry with one of the generals of his army and made him a subedar. After some time, that Subedar had to appear in front of Alexander. Sikandar asked – ‘I see you as happy as before, what is the matter?’
Subedar said – ‘Sir, I am happier than before. At first the soldiers and the junior officers of the army were afraid of me, hesitated to meet me; But now they love me. They respect me a lot. They take my advice in everything. Now I have got the opportunity to serve him. Alexander again asked – ‘Don’t you feel insulted in being dismissed?’
The Subedar said – ‘ Is there respect in the post or in humanity? After getting a high position, if someone is careless, harasses others, takes bribe etc. and becomes proud, then he is worthy of condemnation. That is very trivial. There is respect in serving others, in behaving conscientiously and in being honest. Whether that person is a soldier or even a small village watchman. Alexander said- ‘Don’t pay attention to my mistake. You were made the commander again.’