बाशीं नगरमें जोगा परमानन्द नामक प्रसिद्ध हरिभक्त नित्य पूजाके बाद गीताका एक-एक श्लोक कहकर पंढरिको 700 बार साष्टाङ्ग नमस्कार करता । नमस्कार किये बिना कभी उसने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। एक बार महाद्वारमें एक व्यापारी आया। रातमें पानी बरसनेसे कीचड़ हो गया था। जोगा नित्यकी तरह उस दिन भी आया और उसने नमस्कार शुरू कर दिये। उसकी देह कीचड़से सन गयी।
व्यापारी यह स्थिति देख अत्यन्त प्रभावित हुआ। पासकी दूकानसे एक बहुमूल्य पीताम्बर खरीदकर वह जोगाको देने लगा। जोगाने कहा ‘भाई! मुझपर दयाआती हो तो कोई फटा-पुराना वस्त्र दे दो। यह बहुमूल्य वस्त्र तो भगवान्को ही फबता है। इसे भगवान्को ही चढ़ाओ।’ व्यापारी नहीं माना, उसका अत्याग्रह और निष्ठा देख जोगाने पीताम्बर स्वीकार कर लिया।
दूसरे दिन जोगा पीताम्बर पहनकर नमस्कार करने लगा। उसका मन रह-रहकर पीताम्बरको कीचड़से बचानेमें ही लग जाता । फलतः मध्याह्न हो गया, पर उसके नमस्कार पूरे नहीं हुए। जोगाको यह बात ध्यानमें आते देर न लगी। पीताम्बरके कारण नित्यके नियममें विघ्न पड़ते देख वह बड़ा दुखी हुआ और सोच-विचार करता भगवान्के महाद्वारके बाहर आ अनमना-सा बैठगया। अपने कियेपर पश्चात्तापके कारण उसकी आँखोंसे अविरल अश्रुधारा बह चली।
इसी बीच एक किसान सुन्दर बैलोंकी जोड़ीपर हलकी धुरा रखे जाता दीख पड़ा। जोगा अपने अपराधके प्रायश्चित्तकी एक अद्भुत कल्पना अनायास सूझ पड़नेसे उछल पड़ा। उसने हरवाहेको रोककर कहा—’भैया! यह बहुमूल्य पीताम्बर ले लो और यह बैलोंकी जोड़ी मुझे दे दो। कृपाकर मुझे हलमें बाँध दो और बिगड़कर बैलोंको दो चाबुक जड़ो, ताकि बैल मुझे घसीटते दूर ले जायँ । फिर तुम आकर बैलोंको ले जाना।’
पीताम्बर बैलोंसे अधिक मूल्यका देख किसान लोभमें आ गया और ‘लोभमूलानि पापानि’– उसे कुछ भी करनेमें विवेक नहीं रहा। हलमें जोगाको बाँध उसनेबैलोंपर चाबुक फटकारा। बैल प्राण लेकर भाग निकले।
बहुत दूर घोर जंगलमें पहुँचकर बैल रुके। पत्थरों, कंकड़ों और काँटोंसे जोगाका सारा शरीर लहू-लुहान हो गया था । प्राण निकलना ही चाहते थे कि जोगाने अपनेको सँभालकर भगवान्की अन्तिम स्तुति आरम्भ की। भक्तकी नियमनिष्ठा पूरी हो गयी । भक्तवत्सलसे अब रहा नहीं गया। पीताम्बर पहने वनमाली बैलोंके बीच आविर्भूत हो गये और उन्होंने उसे हलके बन्धनसे मुक्त किया।
भगवान् के श्रीहस्तका स्पर्श होते ही जोगाकी सारी पीड़ा, सारे घाव हवा हो गये। नित्य-नियमका कठोर आचरण करनेवाले अपने इस भक्तको भगवान्ने सदाके लिये अपना बना लिया।
-गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 20)
A famous devotee of Hari named Joga Parmanand in Basheer Nagar used to prostrate 700 times to Pandhari by reciting each verse of the Gita after daily worship. He never took food and water without saying Namaskar. Once a businessman came to Mahadwar. It had become muddy due to rain in the night. Joga came that day as usual and started saluting. His body got covered with mud.
The merchant was very impressed to see this situation. He bought a precious pitambar from a nearby shop and started giving it to Joga. Jogane said, ‘Brother! If you have mercy on me, give me some torn clothes. This precious garment suits only God. Offer it to God only. The businessman did not agree, seeing his dedication and loyalty, Jogane Pitambar accepted him.
The next day Joga started saluting wearing Pitambar. His mind was constantly engaged in saving Pitamber from the mud. As a result, it was noon, but his salutations were not completed. It didn’t take long for Joga to realize this. He was very sad to see the disruption in the routine due to Pitambar and thoughtlessly sat outside the Mahadwar of God. Due to remorse for his actions, continuous tears flowed from his eyes.
Meanwhile, a farmer was seen putting a light axle on a pair of beautiful bullocks. Joga jumped up from a sudden idea of a wonderful idea of atonement for his crime. He stopped everyone and said – ‘Brother! Take this precious Pitambar and give me this pair of oxen. Kindly tie me to the halberd and whip the oxen with two whips, so that the oxen can drag me away. Then you come and take the bullocks.’
Seeing Pitambar worth more than the oxen, the farmer got greedy and ‘lobhamulani papani’ – he did not have the discretion to do anything. Tied Joga to the plow, he cracked the whip on the oxen. The bull ran away with his life.
The bull stopped after reaching far away in the dense forest. Joga’s whole body was covered in blood from the stones, pebbles and thorns. Wanting to die, Jogane took care of himself and started the last praise of God. The devotion of the devotee has been fulfilled. Bhaktavatsalse is no more. Vanamali dressed in Pitambar appeared among the bulls and freed him from the light bondage.
As soon as the Lord’s hand touched all the pains and wounds of Joga. God has made this devotee of his who follows strict rules and regulations forever.