विद्यालय और गुरु
किसी समय डेनमार्कके एक प्रसिद्ध मूर्तिकारसे उनके एक युवा प्रशंसकने सवाल किया-‘महोदय ! आपने इतनी अच्छी मूर्ति बनानेकी करता किस विद्यालयसे सीखी है और आपके गुरु कौन रहे हैं? मैं भी उसी विद्यालय में दाखिला ले, उसी गुरुसे विद्या ग्रहण करूंगा।’
उस युवा प्रशंसकका सवाल सुन मूर्तिकार मुसकराते हुए बोले- ‘आत्मसुधार मेरा विद्यालय है और आत्मसमीक्षा मेरा गुरु। मैंने हमेशा ही अपनी कृतियोंमें कमियाँ ढूँढ़ी और हमेशा उन्हें दूर करनेकी कोशिशमें लगा रहा। अगर तुम भी इस विद्यालयमें दाखिला ले सकते हो और ऐसा गुरु पा सकते हो, तो हो सकता है कि तुम एक दिन मुझसे भी बड़े मूर्तिकार बन जाओ।’ [ श्रीरामकिशोरजी ]
school and teacher
Once upon a time, a young admirer asked a famous Danish sculptor – ‘Sir! From which school did you learn to make such a good idol and who has been your teacher? I will also enroll in the same school, I will take education from the same teacher.’
Hearing the question of that young fan, the sculptor said with a smile – ‘Self-improvement is my school and self-criticism is my teacher. I always found faults in my creations and always tried to remove them. If you too can enroll in this school and find such a teacher, you may one day become a greater sculptor than me.’ [Shriramkishorji]