एक वृद्ध संत ने अपने जीवन की अंतिम घड़ीयों को नज़दीक देख अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा: मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे तो पूरी ज़िन्दगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बना पाओगे।
1~पहला रत्न है: “माफी” :
हमारे लिए कोई कुछ भी कहे, हमे उसकी बात को कभी अपने मन में नहीं बिठाना हैं और ना ही उसके लिए कभी किसी प्रतिकार की भावना मन में रखना हैं, बल्कि उसे माफ़ कर देना हैं।
2~दूसरा रत्न है: “भूल जाना” :~
अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद अपने मन में नहीं रखना।
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3~तीसरा रत्न है: “विश्वास” :~
हमे अपनी महेनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना हैं, क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते.. जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीँ लिखा होगा। परमपिता परमात्मा पर रखा गया विश्वास ही हमे अपने जीवन के हर संकट से बचा पाएगा और सफल करेगा।
4~चौथा रत्न है: “वैराग्य” :~
हमेशा यह याद रखे कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निशिचत ही हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ-मोह न रखे।
जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास सम्भालकर रखोगे, तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।
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