एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि मेरे समान बलवान् तथा तीव्रगामी प्राणी इस त्रिलोकीमें दूसरा नहीं। है। वे अपने पंखोंसे हवाको चीरते तथा दिशाओंको। प्रतिध्वनित करते हुए गन्धमादन पहुँचे और पुष्पचयन | करने लगे। महावीर हनुमान्जीका वहीं आवास था। वे गरुडके इस अनाचारको देखकर उनसे बोले- ‘तुम किसके लिये यह फूल ले जा रहे हो और कुबेरकी आज्ञाके बिना ही इन पुष्पोंका क्यों विध्वंस कर रहे हो।’ गरुडने उत्तर दिया, ‘हम भगवान् श्रीकृष्णके लिये इन पुष्पोंको ले जा रहे हैं। भगवान्के लिये हमें किसीकी अनुमति आवश्यक नहीं दीखती।’ गरुडकी इस बात से हनुमान्जी कुछ गरम हो गये और उनको पकड़कर अपनी काँखमें दबाकर आकाशमार्गसे द्वारकाकी ओर उड़ चले। उनकी भीषण ध्वनिसे सारे द्वारकावासी संत्रस्त हो गये। सुदर्शनचक्र हनुमान्जीकी गतिको रोकने के लिये उनके सामने जा पहुँचा। हनुमान्जीने झट उसे दूसरी काँखमें दाब लिया। भगवान् श्रीकृष्णने तो यह सब लीला ही रची थी। उन्होंने अपने पार्श्वमें स्थित रानियोंसे कहा—‘देखो, हनुमान् क्रुद्ध होकर आ रहे हैं। यहाँ यदि उन्हें इस समय सीता-रामके दर्शन न हुए तो वे द्वारकाको समुद्रमें डुबो देंगे। अतएव तुममेंसे तुरंत कोई सीताका रूप बना लो, मैं तो देखो यह राम बना।’ । इतना कहकर वे श्रीरामके स्वरूपमें परिणत होकर बैठ गये। अब जानकीजीका रूप जब बननेको हुआ, तबकोई भी न बना सकीं। अन्तमें उन्होंने श्रीराधाजीको स्मरण किया। वे आयीं और झट श्रीजानकीजीका स्वरूप बन गयीं।
इसी बीच हनुमानजी वहाँ उपस्थित हुए। वहाँ वे अपने इष्टदेव श्रीसीता-रामजीको देखकर उनके चरणोंपर गिर गये। इस समय भी वे गरुड और सुदर्शनचक्रको बड़ी सावधानीसे अपने दोनों बगलोंमें दबाये हुए थे। भगवान् श्रीकृष्णने (राम-वेशमें) उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा – ‘वत्स! तुम्हारी काँखोंमें यह क्या दिखलायी पड़ रहा है?’ हनुमानजीने उत्तर दिया- ‘कुछ नहीं, सरकार; यह तो एक दुबला-सा क्षुद्र पक्षी निर्जन स्थानमें मेरे श्रीरामभजनमें बाधा डाल रहा था, इसी कारण मैंने इसको पकड़ लिया। दूसरा यह चक्र-सा एक खिलौना है; यह मेरे साथ टकरा रहा था, अतएव इसे भी दाब लिया है। और आपको यदि पुष्पोंकी ही आवश्यकता थी तो मुझे क्यों नहीं स्मरण किया गया ? यह बेचारा पखेरू महाबली शिवभक्त यक्षोंके सरोवरसे बलपूर्वक पुष्प लानेमें कैसे समर्थ हो सकता है। ‘ भगवान्ने कहा, ‘अस्तु! इन बेचारोंको छोड़ दो। मैं तुम्हारे ऊपर अत्यन्त प्रसन्न हूँ; अब तुम जाओ, अपने स्थानपर स्वच्छन्दतापूर्वक भजन करो।’
भगवान्की आज्ञा पाते ही हनुमान्जीने सुदर्शनचक्र और गरुडको छोड़ दिया और उन्हें पुनः प्रणाम करके ‘जय राम’ कहते हुए गन्धमादनकी ओर चल दिये। गरुडको गतिका, सुदर्शनको शक्तिका और पट्टमहिषियोंको सौन्दर्यका बड़ा गर्व था । वह एकदम चूर्ण हो गया।
एक बार भगवान् श्रीकृष्णने गरुडको यक्षराज कुबेरके सरोवरसे सौगन्धिक कमल लानेका आदेश दिया। गरुडको यह अहंकार तो था ही कि मेरे समान बलवान् तथा तीव्रगामी प्राणी इस त्रिलोकीमें दूसरा नहीं। है। वे अपने पंखोंसे हवाको चीरते तथा दिशाओंको। प्रतिध्वनित करते हुए गन्धमादन पहुँचे और पुष्पचयन | करने लगे। महावीर हनुमान्जीका वहीं आवास था। वे गरुडके इस अनाचारको देखकर उनसे बोले- ‘तुम किसके लिये यह फूल ले जा रहे हो और कुबेरकी आज्ञाके बिना ही इन पुष्पोंका क्यों विध्वंस कर रहे हो।’ गरुडने उत्तर दिया, ‘हम भगवान् श्रीकृष्णके लिये इन पुष्पोंको ले जा रहे हैं। भगवान्के लिये हमें किसीकी अनुमति आवश्यक नहीं दीखती।’ गरुडकी इस बात से हनुमान्जी कुछ गरम हो गये और उनको पकड़कर अपनी काँखमें दबाकर आकाशमार्गसे द्वारकाकी ओर उड़ चले। उनकी भीषण ध्वनिसे सारे द्वारकावासी संत्रस्त हो गये। सुदर्शनचक्र हनुमान्जीकी गतिको रोकने के लिये उनके सामने जा पहुँचा। हनुमान्जीने झट उसे दूसरी काँखमें दाब लिया। भगवान् श्रीकृष्णने तो यह सब लीला ही रची थी। उन्होंने अपने पार्श्वमें स्थित रानियोंसे कहा—‘देखो, हनुमान् क्रुद्ध होकर आ रहे हैं। यहाँ यदि उन्हें इस समय सीता-रामके दर्शन न हुए तो वे द्वारकाको समुद्रमें डुबो देंगे। अतएव तुममेंसे तुरंत कोई सीताका रूप बना लो, मैं तो देखो यह राम बना।’ । इतना कहकर वे श्रीरामके स्वरूपमें परिणत होकर बैठ गये। अब जानकीजीका रूप जब बननेको हुआ, तबकोई भी न बना सकीं। अन्तमें उन्होंने श्रीराधाजीको स्मरण किया। वे आयीं और झट श्रीजानकीजीका स्वरूप बन गयीं।
इसी बीच हनुमानजी वहाँ उपस्थित हुए। वहाँ वे अपने इष्टदेव श्रीसीता-रामजीको देखकर उनके चरणोंपर गिर गये। इस समय भी वे गरुड और सुदर्शनचक्रको बड़ी सावधानीसे अपने दोनों बगलोंमें दबाये हुए थे। भगवान् श्रीकृष्णने (राम-वेशमें) उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा – ‘वत्स! तुम्हारी काँखोंमें यह क्या दिखलायी पड़ रहा है?’ हनुमानजीने उत्तर दिया- ‘कुछ नहीं, सरकार; यह तो एक दुबला-सा क्षुद्र पक्षी निर्जन स्थानमें मेरे श्रीरामभजनमें बाधा डाल रहा था, इसी कारण मैंने इसको पकड़ लिया। दूसरा यह चक्र-सा एक खिलौना है; यह मेरे साथ टकरा रहा था, अतएव इसे भी दाब लिया है। और आपको यदि पुष्पोंकी ही आवश्यकता थी तो मुझे क्यों नहीं स्मरण किया गया ? यह बेचारा पखेरू महाबली शिवभक्त यक्षोंके सरोवरसे बलपूर्वक पुष्प लानेमें कैसे समर्थ हो सकता है। ‘ भगवान्ने कहा, ‘अस्तु! इन बेचारोंको छोड़ दो। मैं तुम्हारे ऊपर अत्यन्त प्रसन्न हूँ; अब तुम जाओ, अपने स्थानपर स्वच्छन्दतापूर्वक भजन करो।’
भगवान्की आज्ञा पाते ही हनुमान्जीने सुदर्शनचक्र और गरुडको छोड़ दिया और उन्हें पुनः प्रणाम करके ‘जय राम’ कहते हुए गन्धमादनकी ओर चल दिये। गरुडको गतिका, सुदर्शनको शक्तिका और पट्टमहिषियोंको सौन्दर्यका बड़ा गर्व था । वह एकदम चूर्ण हो गया।