‘देश, धर्म और स्वराज्यकी बलिवेदीपर प्रत्येक | भारतीयको चढ़ जाना चाहिये; यह पवित्र कार्य है। इसीमें आत्मसम्मानका संरक्षण है।’ महाराज दाहिरके ये अन्तिम वाक्य थे। मुहम्मद बिन कासिमकी सेनाने सिंधके अधिपतिका प्राणान्त कर डाला। राजधानी अलोरमें उदासी छा गयी महाराजके स्वर्ग-प्रस्थानसे । उनके पुत्र जयसिंहने अरबी सेनाका पीछा किया। किलेमें भयानक नीरवता थी।
‘माता! महाराजके आकस्मिक स्वर्ग-गमनसे सारा का-सा नगर क्षुब्ध हो गया है; पर हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि शत्रुकी छाया भी इस किलेमें नहीं आ सकती।’ सेनापतिने तलवार खींच ली; वह रणभूमिके लिये प्रस्थान करनेवाला ही था, पर सहसा ठहर गया ।
‘बोलो, अम्बा! आदेश दो।’ उसने फिर प्रार्थनाकी।दाहिरकी महारानी गहरी चिन्तामें थीं; वे बड़ी गम्भीरतासे
कुछ सोच रही थीं कि जयसिंहने चरणाभिवादन किया।
‘शत्रु किलेके द्वारपर आ पहुँचे हैं, वे शीघ्र ही भीतर प्रवेश करेंगे।’ जयसिंह कुछ और कहने जा रहे थे कि महारानीके नेत्र लाल हो उठे; वे गरज उठीं, मानो महिषमर्दिनी दुर्गाका उनपर आवेश हो ।
‘शत्रु किलेमें नहीं प्रवेश कर सकते, हम उन्हें अपने सतीत्वकी आगमें स्वाहा कर देंगी।’ महारानीने सेनापतिके हाथमें नंगी तलवार रख दी महाराज दाहिरकी’माँ, मुझे इसकी शपथ है, विदेशी हमारी पवित्र स्वाधीनताको कलङ्कित नहीं कर सकेंगे।’ सेनापतिने कुमार जयसिंहके साथ किलेसे बाहर निकलना चाहा।
“रण आज किलेमें ही होगा; अधर्मका अस्तित्व समाप्त करनेके लिये धर्मयुद्ध होगा, असत्यका मस्तक उड़ा देनेके लिये युद्ध ऐसे सत्कार्यका आरम्भ यहीं होगा।’ महारानीने भीतरी प्राङ्गणमें प्रवेश किया सेनापति और कुमार जयसिंहके साथ।
अनेक चिताएँ सजायी गयी थीं। नगरकी कुल वधुएँ उपस्थित थीं। अत्यन्त भयंकर दृश्य था। किलेके द्वारपर रणका बाजा बज रहा था। शत्रु द्वार तोड़नेकी शमें थे।
‘वीरो हमलोग आपसे पहले स्वर्ग जा रही हैं: पर स्मरण रहे कि शत्रु हमारे चिताभस्मका भी स्पर्श न कर सकें। इस सत्कर्मकी पवित्रता कलङ्कित होगी तो हिमालयका उन्नत दिव्य भाल सदाके लिये लज्जासे नत हो जायगा । स्वतन्त्रता, स्वधर्म और स्वदेशकी रक्षाके लिये मर मिटना ही वीरता है। भगवान् सहायता करेंगे।’ महारानी अन्य नगर-वधुओंके साथ धधकती चितामें कूद पड़ीं।
अलोर किलेकी रक्षाके लिये भीषण युद्ध हुआ। अरबोंने भीतर प्रवेश किया; पर उनमें इतना साहस नहीं था कि वे अग्निकी लपटोंके सामने खड़े हो सकें।
-रा0 श्री0
‘Each on the sacrificial altar of country, religion and self-rule. The Indian should climb up; This is a holy work. In this lies the protection of self-respect. These were the last sentences of Maharaj Dahir. Muhammad bin Qasim’s army killed the ruler of Sindh. There was sadness in the capital Alor because of Maharaj’s departure to heaven. His son Jaisingh followed the Arab army. There was eerie silence in the fort.
‘Mother! The whole town has been upset because of the Maharaj’s sudden departure to heaven; But we assure you that even the shadow of the enemy cannot enter this fort.’ The commander drew his sword; He was about to leave for the battlefield, but suddenly stopped.
‘Speak, Amba! order.’ He prayed again. The queen of Dahir was deeply worried; they seriously
Some were thinking that Jai Singh had greeted them.
‘The enemy has reached the gate of the fort, they will soon enter.’ Jaisingh was going to say something else that the queen’s eyes turned red; They thundered, as if Mahishmardini Durga was possessed.
‘Enemies cannot enter the fort, we will slay them in the fire of our chastity.’ The queen put a naked sword in the hand of the commander Maharaj Dahirki ‘Mother, I swear on this, foreigners will not be able to tarnish our sacred independence.’ The commander wanted to leave the fort with Kumar Jaisingh.
“Today the battle will take place in the fort itself; there will be a religious war to end the existence of unrighteousness, the war to blow the head of untruth, the beginning of such good deeds will be here only.” The Queen entered the inner courtyard accompanied by the Senapati and Kumar Jaisingh.
Many pyres were decorated. All the brides of the city were present. It was a terrible scene. Ranka Baja was playing at the gate of the fort. Had the shame of breaking the enemy gate.
‘Vero, we are going to heaven before you: but remember that the enemies should not even touch our cremation ashes. If the purity of this good deed is tainted, then the advanced divine Bhaal of the Himalayas will bow down in shame forever. To die for the protection of freedom, self-religion and homeland is bravery. God will help.’ The queen jumped into the flaming pyre along with other city brides.
There was a fierce battle for the protection of Alore fort. The Arabs entered; But they did not have the courage to stand in front of the flames.