दलदलकी गहराई

sculpture greek gods figures monument

दलदलकी गहराई

किसी नगरमें एक राजा राज्य करता था। उसका ह एक मन्त्री था, जो बड़ा ही लोभी तथा धैर्यहीन था। राजा बड़ा बुद्धिमान् था, अतः उसने मन्त्रीको सुधारनेके विचारसे उससे एक प्रश्न पूछा- मन्त्रीजी ! हम ये जानना चाहते हैं कि हमारे राज्यमें सबसे बड़ा दलदल (अर्थात् कीचड़से युक्त गहरा स्थान) कहाँ है ? आप इसका उत्तर हमें एक मासमें दे दें और यदि निश्चित अवधिमें आप ये कार्य नहीं कर सके, तो आपको प्राणदण्ड दिया जायगा। मन्त्रीजी बाँस-बल्ली लेकर राज्यके तालाब, पोखर, नदी-नालोंमें दलदलकी गहराई नापनेमें लग गये। एक मास बीतनेमें जब
एक दिन शेष रह गया और गहराईको नाप नहीं सके तो मन्त्रीजी प्राणोंक भयसे भाग निकले। भागते-भागते वे सुदूर रेगिस्तान क्षेत्रमें पहुँच गये। अब वे प्याससे व्याकुल थे। दूर दूरतक पानी नहीं दिखायी दे रहा था एक स्थानपर उनको भेड़ोंका समूह दिखायी दिया। सोचा, वहाँ अवश्य पानी मिलेगा। मन्त्रीने वहाँ पहुँचकर गड़रियेसे पानीकी बात कही। गड़रियेने पूछा- आप कौन हैं, कहाँसे आ रहे हैं, परेशान लग रहे हैं. समस्या क्या है ? मन्त्रीजीने सारा घटनाक्रम सुना दिया गड़रियेने मन्त्रीको आश्वस्त किया और कहा कि घबरानेकी कोई बात नहीं है। आपकी समस्याका समाधान मेरे पास है। आप मन्त्री थे, राजा बन सकते हैं, क्योंकि मेरे पास पारसमणि है, आप उससे सोना बनाकर साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं और पानी तो मेरे पास नहीं है, किंतु दूध है. इसे पीकर आप अपनी जान बचा सकते हैं।
मन्त्रीकी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। उसने कहा भैया, तुरंत दूध दो। यह सुनकर गड़रिया बोला- मेरे पास तो केवल एक ही लोटा है। मैं उसमें दूध दुहूँगा और पहले मैं पीऊँगा, शेष आपको दे दूँगा। मन्त्रीका ब्राह्मणत्व जाग गया। सोचा धूर्त गड़रिया हमें अपना जूठा दूध पिलाना चाहता है। अतः वह नाराज होकर आगे चल पड़ा, किंतु थोड़ी देर बाद उसने सोचा ! अरे, प्राण संकटके समय यह सोच बेकार है और जब पारसमणिके प्रयोगसे सम्राट् बन जाऊँगा, तो किसकी हिम्मत होगी, जो यह कह सके कि राजाने गडरियेका जूठा दूध पिया था। अतः वह लौट आया और गड़रियेसे बोला, चल भाई तेरी बात मुझे मंजूर है। गड़रियेने कहा- मन्त्रीजी आपने मेरी पूरी बात नहीं सुनी थी। सुना भाई, तेरी पूरी बात क्या है ? मन्त्रीजी ! मेरी इन भेड़ोंकी रक्षाका भार मेरे इस कुत्तेपर है। अतः मुझे इसकी भी भूख मिटानी पड़ती है। अब दूध दुहूँगा, लोटा भरनेपर पहले मैं पीऊँगा, फिर ये कुत्ता पीयेगा. बचा खुचा आपको मिल जायगा। अबकी बार मन्त्रीजी बहुत नाराज हुए, गाली गलौज करने लगे। दुष्ट गड़रिया मुझे कुत्तेका जूठा दूध पिलाना चाहता है। अतः वहाँसे चले गये, किंतु कुछ दूर जानेपर सोचा अरे राजा बननेका अवसर क्यों गवाना चाहता है ? कुत्तेकी जीभमें तो अमृतका निवास है। अतः लौट आये और गड़रियेसे कहा कि चल भाई! तेरी यह बात भी मंजूर है। गड़रिया बोला, मन्त्रीजी! आप जल्दी बहुत करते हो, पूरी बात सुनते नहीं। मन्त्रीजीने पूरी बात सुनानेको कहा, तब गड़रिया बोला- पहले दूध मैं पीऊँगा, फिर मेरा कुत्ता पीयेगा, शेष दूधमें भेड़ोंकी मैंगनी (भेड़का मल) घोलूँगा, वह आपको दे दूँगा। अबकी बार मन्त्रीजी बहुत उग्र हो गये। गड़रियेको गाली बकते हुए पुनः चले गये, काफी आगे निकल गये, तब सोचा, अरे! क्यों राज्यको खो रहा है, इस सबको कौन जान पायेगा, राजा बननेपर सबसे पहले इस गड़रियेको मरवा दूँगा, कभी भेद नहीं खुलेगा, रहस्य, रहस्य ही बना रहेगा। अतः लौट चल ।
मन्त्रीजी लौट आये और गड़रियेसे बोले-चल भाई, तेरी सभी शर्त मुझे मंजूर है। गड़रियेने दूध दुहा, स्वयं पिया, अपने कुत्तेको पिलाया, शेषमें भेड़ोंकी मँगनी घोलकर लोटा मन्त्रीजीको दे दिया। मन्त्रीजीने लोटा लेकर पीनेके लिये जैसे ही अपने मुखकी ओर बढ़ाया, शीघ्रतासे गड़रियेने लोटेमें ऐसा जोरका हाथ मारा कि लोटा दूर जा गिरा। मन्त्रीजीने कहा- अब क्या हुआ, जो तुमने ऐसा किया। गड़रियेने उत्तर दिया, सबसे गहरी दलदलका तुमको अब भी बोध नहीं हुआ। यह निन्दनीय कृत्य करनेके लिये तुम इसलिये तैयार हो गये कि तुमको राज्य पानेका लालच था। इस लोभमें यह भी भूल गये कि यदि मेरे पास पारसमणि होती, तो मैं खुद ही राजा न बन जाता। जाओ, अपने राजाको बता दो कि लोभ सबसे बड़ी दलदल है। इससे गहरी दलदल कोई नहीं होती।

दलदलकी गहराई
किसी नगरमें एक राजा राज्य करता था। उसका ह एक मन्त्री था, जो बड़ा ही लोभी तथा धैर्यहीन था। राजा बड़ा बुद्धिमान् था, अतः उसने मन्त्रीको सुधारनेके विचारसे उससे एक प्रश्न पूछा- मन्त्रीजी ! हम ये जानना चाहते हैं कि हमारे राज्यमें सबसे बड़ा दलदल (अर्थात् कीचड़से युक्त गहरा स्थान) कहाँ है ? आप इसका उत्तर हमें एक मासमें दे दें और यदि निश्चित अवधिमें आप ये कार्य नहीं कर सके, तो आपको प्राणदण्ड दिया जायगा। मन्त्रीजी बाँस-बल्ली लेकर राज्यके तालाब, पोखर, नदी-नालोंमें दलदलकी गहराई नापनेमें लग गये। एक मास बीतनेमें जब
एक दिन शेष रह गया और गहराईको नाप नहीं सके तो मन्त्रीजी प्राणोंक भयसे भाग निकले। भागते-भागते वे सुदूर रेगिस्तान क्षेत्रमें पहुँच गये। अब वे प्याससे व्याकुल थे। दूर दूरतक पानी नहीं दिखायी दे रहा था एक स्थानपर उनको भेड़ोंका समूह दिखायी दिया। सोचा, वहाँ अवश्य पानी मिलेगा। मन्त्रीने वहाँ पहुँचकर गड़रियेसे पानीकी बात कही। गड़रियेने पूछा- आप कौन हैं, कहाँसे आ रहे हैं, परेशान लग रहे हैं. समस्या क्या है ? मन्त्रीजीने सारा घटनाक्रम सुना दिया गड़रियेने मन्त्रीको आश्वस्त किया और कहा कि घबरानेकी कोई बात नहीं है। आपकी समस्याका समाधान मेरे पास है। आप मन्त्री थे, राजा बन सकते हैं, क्योंकि मेरे पास पारसमणि है, आप उससे सोना बनाकर साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं और पानी तो मेरे पास नहीं है, किंतु दूध है. इसे पीकर आप अपनी जान बचा सकते हैं।
मन्त्रीकी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। उसने कहा भैया, तुरंत दूध दो। यह सुनकर गड़रिया बोला- मेरे पास तो केवल एक ही लोटा है। मैं उसमें दूध दुहूँगा और पहले मैं पीऊँगा, शेष आपको दे दूँगा। मन्त्रीका ब्राह्मणत्व जाग गया। सोचा धूर्त गड़रिया हमें अपना जूठा दूध पिलाना चाहता है। अतः वह नाराज होकर आगे चल पड़ा, किंतु थोड़ी देर बाद उसने सोचा ! अरे, प्राण संकटके समय यह सोच बेकार है और जब पारसमणिके प्रयोगसे सम्राट् बन जाऊँगा, तो किसकी हिम्मत होगी, जो यह कह सके कि राजाने गडरियेका जूठा दूध पिया था। अतः वह लौट आया और गड़रियेसे बोला, चल भाई तेरी बात मुझे मंजूर है। गड़रियेने कहा- मन्त्रीजी आपने मेरी पूरी बात नहीं सुनी थी। सुना भाई, तेरी पूरी बात क्या है ? मन्त्रीजी ! मेरी इन भेड़ोंकी रक्षाका भार मेरे इस कुत्तेपर है। अतः मुझे इसकी भी भूख मिटानी पड़ती है। अब दूध दुहूँगा, लोटा भरनेपर पहले मैं पीऊँगा, फिर ये कुत्ता पीयेगा. बचा खुचा आपको मिल जायगा। अबकी बार मन्त्रीजी बहुत नाराज हुए, गाली गलौज करने लगे। दुष्ट गड़रिया मुझे कुत्तेका जूठा दूध पिलाना चाहता है। अतः वहाँसे चले गये, किंतु कुछ दूर जानेपर सोचा अरे राजा बननेका अवसर क्यों गवाना चाहता है ? कुत्तेकी जीभमें तो अमृतका निवास है। अतः लौट आये और गड़रियेसे कहा कि चल भाई! तेरी यह बात भी मंजूर है। गड़रिया बोला, मन्त्रीजी! आप जल्दी बहुत करते हो, पूरी बात सुनते नहीं। मन्त्रीजीने पूरी बात सुनानेको कहा, तब गड़रिया बोला- पहले दूध मैं पीऊँगा, फिर मेरा कुत्ता पीयेगा, शेष दूधमें भेड़ोंकी मैंगनी (भेड़का मल) घोलूँगा, वह आपको दे दूँगा। अबकी बार मन्त्रीजी बहुत उग्र हो गये। गड़रियेको गाली बकते हुए पुनः चले गये, काफी आगे निकल गये, तब सोचा, अरे! क्यों राज्यको खो रहा है, इस सबको कौन जान पायेगा, राजा बननेपर सबसे पहले इस गड़रियेको मरवा दूँगा, कभी भेद नहीं खुलेगा, रहस्य, रहस्य ही बना रहेगा। अतः लौट चल ।
मन्त्रीजी लौट आये और गड़रियेसे बोले-चल भाई, तेरी सभी शर्त मुझे मंजूर है। गड़रियेने दूध दुहा, स्वयं पिया, अपने कुत्तेको पिलाया, शेषमें भेड़ोंकी मँगनी घोलकर लोटा मन्त्रीजीको दे दिया। मन्त्रीजीने लोटा लेकर पीनेके लिये जैसे ही अपने मुखकी ओर बढ़ाया, शीघ्रतासे गड़रियेने लोटेमें ऐसा जोरका हाथ मारा कि लोटा दूर जा गिरा। मन्त्रीजीने कहा- अब क्या हुआ, जो तुमने ऐसा किया। गड़रियेने उत्तर दिया, सबसे गहरी दलदलका तुमको अब भी बोध नहीं हुआ। यह निन्दनीय कृत्य करनेके लिये तुम इसलिये तैयार हो गये कि तुमको राज्य पानेका लालच था। इस लोभमें यह भी भूल गये कि यदि मेरे पास पारसमणि होती, तो मैं खुद ही राजा न बन जाता। जाओ, अपने राजाको बता दो कि लोभ सबसे बड़ी दलदल है। इससे गहरी दलदल कोई नहीं होती।

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