गुरुसेवा और उसका फल

sunset sea outdoors

महर्षि आयोदधौम्यके दूसरे शिष्य थे उपमन्यु । गुरुने उन्हें गायें चराने और उनकी रखवाली करनेका काम दे रखा था। ब्रह्मचर्याश्रमका नियम है कि ब्रह्मचारी गुरु-सेवा करता हुआ गुरुगृहमें निवास करे। वह पासके नगर-ग्रामोंसे भिक्षा माँगकर ले आये और उसे गुरुके सम्मुख रख दे। गुरुदेव उसमेंसे जो भी उसे दें, उसीको खाकर संतुष्ट रहे। उपमन्यु भी इस नियमका पालन करते थे; किंतु वे जो भिक्षा माँगकर लाते थे, उसे धौम्यऋषि पूरी की पूरी रख लेते थे। उपमन्युको उसमेंसे कुछ भी नहीं देते थे। उपमन्यु भी कुछ कहते नहीं थे।

एक दिन ऋषिने पूछा- ‘उपमन्यु ! मैं तुम्हारीभिक्षाका सभी अन्न रख लेता हूँ, ऐसी दशामें तुम क्या भोजन करते हो? तुम्हारा शरीर तो हृष्ट-पुष्ट है ।

उपमन्युने बताया- ‘भगवन्! मैं दुबारा भिक्षा माँग लाता हूँ।’ ऋषि बोले- ‘यह तो तुम अच्छा नहीं करते। इससे
गृहस्थोंको संकोच होता है। दूसरे भिक्षार्थी लोगोंके जीविकाहरणका पाप होता है।’

उपमन्युने स्वीकार कर लिया कि वे फिर ऐसा नहीं करेंगे। कुछ दिन बीतनेपर ऋषिने फिर पूछा ‘उपमन्यु ! तुम आजकल क्या भोजन करते हो ?’ उपमन्युने बताया- ‘भगवन्! मैं इन गायोंका दूध पी लिया करता हूँ।’ऋषिने डाँटा’ गायें मेरी हैं, मेरी आज्ञाके बिना | इनका दूध पी लेना तो अपराध है।’

उपमन्युने दूध पीना भी छोड़ दिया। कुछ दिन पश्चात् जब फिर ऋषिने पूछा, तब उन्होंने बताया कि वे अब बछड़ोंके मुखसे गिरा फेन पी लेते हैं। लेकिन गुरुदेवको तो उनकी परीक्षा लेनी थी। उन्होंने कह दिया ऐसी भूल आगे कभी मत करना। बछड़े बड़े दयालु होते हैं, तुम्हारे लिये वे अधिक दूध झाग बनाकर गिरा देते होंगे और स्वयं भूखे रहते होंगे।’

उपमन्युके आहारके सब मार्ग बंद हो गये। गायक पीछे दिनभर वन-वन दौड़ना ठहरा उन्हें अत्यन्त प्रबल क्षुधा लगी। दूसरा कुछ नहीं मिला तो विवश होकर आक के पत्ते खा लिये। उन विषैले पत्तोंकी गरमीसे नेत्रकी ज्योति चली गयी। वे अंधे हो गये। देख न पड़नेके कारण वनमें घूमते समय एक जलहीन कुएँ में गिर पड़े।

सूर्यास्त हो गया, गायें बिना चरवाहेके लौट आयीं; किंतु उपमन्यु नहीं लौटे ऋषि चिन्तित हो गये मैंने उपमन्युका भोजन सर्वथा बंद कर दिया। वह रुष्ट होकर कहीं चला तो नहीं गया?’ शिष्योंके साथ उसी समय ये वनमें पहुँचे और पुकारने लगे- ‘बेटा उपमन्यु! तुम कहाँ हो ?’

उपमन्युक्का स्वर सुनायी पढ़ा- ‘भगवन्! मैं यहाँ कुएँ में पड़ा हूँ।’ऋषि कुएँके पास गये। पूछनेपर उपमन्युने अपने
कुएँ पड़नेका कारण बता दिया। अब ऋषिने उपमन्युकोदेवताओंके वैद्य अश्विनीकुमारोंकी स्तुति करनेका आदेश | दिया। गुरु आज्ञासे उपमन्यु स्तुति करने लगे। एक पवित्र | गुरुभक्त ब्रह्मचारी स्तुति करे और देवता प्रसन्न न हों। तो उनका देवत्व टिकेगा कितने दिन ? उपमन्युको स्तुतिसे प्रसन्न होकर अश्विनीकुमार कुएँ में ही प्रकट हो गये और बोले—’यह मीठा पुआ लो और इसे खा लो।’

नम्रतापूर्वक उपमन्युने कहा- ‘गुरुदेवको अर्पण किये बिना मैं पुआ नहीं खाना चाहता।’

अश्विनीकुमारोंने कहा—’ पहले तुम्हारे गुरुने भी हमारी स्तुति की थी और हमारा दिया पुआ अपने गुरुको अर्पित किये बिना खा लिया था। तुम भी ऐसा ही करो।’

उपमन्यु बोले—’गुरुजनोंकी त्रुटि अनुगतोंको नहीं देखनी चाहिये । आपलोग मुझे क्षमा करें, गुरुदेवको अर्पित किये बिना मैं पुआ नहीं खा सकता।’

अश्विनीकुमारोंने कहा—’हम तुम्हारी गुरुभक्तिसे बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हारे गुरुके दाँत लोहेके हैं, परंतु तुम्हारे स्वर्णके हो जायँगे। तुम्हारी दृष्टि भी पहलेके समान हो जायगी।’

अश्विनीकुमारोंने उपमन्युको कुएँसे बाहर निकाल दिया। उपमन्युने गुरुके चरणोंमें प्रणाम किया। महर्षि आयोदधौम्यने सब बातें सुनकर आशीर्वाद दिया- ‘सब वेद और धर्मशास्त्र तुम्हें स्वतः कण्ठ हो जायँगे। उनका अर्थ तुम्हें भासित हो जायगा। धर्मशास्त्रोंका तत्त्व तुम जान जाओगे।’

-सु0 सिं0 (महाभारत, आदि0 3)

महर्षि आयोदधौम्यके दूसरे शिष्य थे उपमन्यु । गुरुने उन्हें गायें चराने और उनकी रखवाली करनेका काम दे रखा था। ब्रह्मचर्याश्रमका नियम है कि ब्रह्मचारी गुरु-सेवा करता हुआ गुरुगृहमें निवास करे। वह पासके नगर-ग्रामोंसे भिक्षा माँगकर ले आये और उसे गुरुके सम्मुख रख दे। गुरुदेव उसमेंसे जो भी उसे दें, उसीको खाकर संतुष्ट रहे। उपमन्यु भी इस नियमका पालन करते थे; किंतु वे जो भिक्षा माँगकर लाते थे, उसे धौम्यऋषि पूरी की पूरी रख लेते थे। उपमन्युको उसमेंसे कुछ भी नहीं देते थे। उपमन्यु भी कुछ कहते नहीं थे।
एक दिन ऋषिने पूछा- ‘उपमन्यु ! मैं तुम्हारीभिक्षाका सभी अन्न रख लेता हूँ, ऐसी दशामें तुम क्या भोजन करते हो? तुम्हारा शरीर तो हृष्ट-पुष्ट है ।
उपमन्युने बताया- ‘भगवन्! मैं दुबारा भिक्षा माँग लाता हूँ।’ ऋषि बोले- ‘यह तो तुम अच्छा नहीं करते। इससे
गृहस्थोंको संकोच होता है। दूसरे भिक्षार्थी लोगोंके जीविकाहरणका पाप होता है।’
उपमन्युने स्वीकार कर लिया कि वे फिर ऐसा नहीं करेंगे। कुछ दिन बीतनेपर ऋषिने फिर पूछा ‘उपमन्यु ! तुम आजकल क्या भोजन करते हो ?’ उपमन्युने बताया- ‘भगवन्! मैं इन गायोंका दूध पी लिया करता हूँ।’ऋषिने डाँटा’ गायें मेरी हैं, मेरी आज्ञाके बिना | इनका दूध पी लेना तो अपराध है।’
उपमन्युने दूध पीना भी छोड़ दिया। कुछ दिन पश्चात् जब फिर ऋषिने पूछा, तब उन्होंने बताया कि वे अब बछड़ोंके मुखसे गिरा फेन पी लेते हैं। लेकिन गुरुदेवको तो उनकी परीक्षा लेनी थी। उन्होंने कह दिया ऐसी भूल आगे कभी मत करना। बछड़े बड़े दयालु होते हैं, तुम्हारे लिये वे अधिक दूध झाग बनाकर गिरा देते होंगे और स्वयं भूखे रहते होंगे।’
उपमन्युके आहारके सब मार्ग बंद हो गये। गायक पीछे दिनभर वन-वन दौड़ना ठहरा उन्हें अत्यन्त प्रबल क्षुधा लगी। दूसरा कुछ नहीं मिला तो विवश होकर आक के पत्ते खा लिये। उन विषैले पत्तोंकी गरमीसे नेत्रकी ज्योति चली गयी। वे अंधे हो गये। देख न पड़नेके कारण वनमें घूमते समय एक जलहीन कुएँ में गिर पड़े।
सूर्यास्त हो गया, गायें बिना चरवाहेके लौट आयीं; किंतु उपमन्यु नहीं लौटे ऋषि चिन्तित हो गये मैंने उपमन्युका भोजन सर्वथा बंद कर दिया। वह रुष्ट होकर कहीं चला तो नहीं गया?’ शिष्योंके साथ उसी समय ये वनमें पहुँचे और पुकारने लगे- ‘बेटा उपमन्यु! तुम कहाँ हो ?’
उपमन्युक्का स्वर सुनायी पढ़ा- ‘भगवन्! मैं यहाँ कुएँ में पड़ा हूँ।’ऋषि कुएँके पास गये। पूछनेपर उपमन्युने अपने
कुएँ पड़नेका कारण बता दिया। अब ऋषिने उपमन्युकोदेवताओंके वैद्य अश्विनीकुमारोंकी स्तुति करनेका आदेश | दिया। गुरु आज्ञासे उपमन्यु स्तुति करने लगे। एक पवित्र | गुरुभक्त ब्रह्मचारी स्तुति करे और देवता प्रसन्न न हों। तो उनका देवत्व टिकेगा कितने दिन ? उपमन्युको स्तुतिसे प्रसन्न होकर अश्विनीकुमार कुएँ में ही प्रकट हो गये और बोले—’यह मीठा पुआ लो और इसे खा लो।’
नम्रतापूर्वक उपमन्युने कहा- ‘गुरुदेवको अर्पण किये बिना मैं पुआ नहीं खाना चाहता।’
अश्विनीकुमारोंने कहा—’ पहले तुम्हारे गुरुने भी हमारी स्तुति की थी और हमारा दिया पुआ अपने गुरुको अर्पित किये बिना खा लिया था। तुम भी ऐसा ही करो।’
उपमन्यु बोले—’गुरुजनोंकी त्रुटि अनुगतोंको नहीं देखनी चाहिये । आपलोग मुझे क्षमा करें, गुरुदेवको अर्पित किये बिना मैं पुआ नहीं खा सकता।’
अश्विनीकुमारोंने कहा—’हम तुम्हारी गुरुभक्तिसे बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हारे गुरुके दाँत लोहेके हैं, परंतु तुम्हारे स्वर्णके हो जायँगे। तुम्हारी दृष्टि भी पहलेके समान हो जायगी।’
अश्विनीकुमारोंने उपमन्युको कुएँसे बाहर निकाल दिया। उपमन्युने गुरुके चरणोंमें प्रणाम किया। महर्षि आयोदधौम्यने सब बातें सुनकर आशीर्वाद दिया- ‘सब वेद और धर्मशास्त्र तुम्हें स्वतः कण्ठ हो जायँगे। उनका अर्थ तुम्हें भासित हो जायगा। धर्मशास्त्रोंका तत्त्व तुम जान जाओगे।’
-सु0 सिं0 (महाभारत, आदि0 3)

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