महाकवि माघ

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मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अहंकार महाकवि माघ महाकवि माघ राजा भोज के राज्य में रहते थे।वह बहुत विद्वान् थे,लेकिन अहंकारी भी थे।राज्य में उनका काफी सम्मान था,इसलिए उनके अवगुणों को लेकर कोई उन्हें टोकता नहीं था ।

एक बार वह राजा भोज के साथ वन- विहार पर निकले। लौटते वक्त रास्ते में उन्हें एक झोंपड़ी दिखाई दी।दोनों द्वार पर पहुंचे ही थे कि एक वृद्धा बाहर आई।

महाकवि ने पूछा, -“यह रास्ता किधर जाता है?”
वृद्धा ने एक क्षण रुककर उत्तर दिया,”रास्ता तो कहीं नहीं जाता है,केवल पथिक आते जाते हैं।आप कौन हैं?


“हम यात्री हैं” माघ ने संक्षिप्त -सा उत्तर दिया।वृद्धा ने मुस्कुराते हुए सहज भाव से कहा, “यात्री तो दो ही होते हैं,सूर्य और चन्द्रमा। आप लोग कौन हैं? सच-सच बताइए।,


अब महाकवि थोड़ा अचरज में पड़ गए और संभलकर बोले , “हम राजा हैं।” उन्होंने सोचा शायद बुढ़िया पर इसका प्रभाव पड़ेगा और आगे प्रश्न नहीं करेगी। लेकिन दूसरे पल वृद्धा ने कहा, “नहीं !आप राजा कैसे हो सकते हैं?राजा तो शास्त्र के अनुसार दो ही हो सकते हैं,एक इन्द्र, दूसरा यम।आप कौन हैं ?”

महाकवि यह सुनकर विचलित हो गए,फिर बोले,”मां! हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं।”
तब वृद्धा ने कहा,क्षणभंगुर तो दो ही होते हैं।पहला धन एवं दूसरा यौवन।शास्त्र कहते हैं कि इन दोनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए,
वृद्धा ने एक बार फिर माघ को चक्कर में डाल दिया।

अब माघ ने अंतिम दाँव फेंका,”हम सबको माफ करने वाली आत्मा हैं।,
लेकिन वृद्धा का उत्तर इस बार भी सटीक एवं संतुलित था।”इस संसार में सबको माफ करने वाली दो ही हैं, एक पृथ्वी दूसरी नारी।आप इन दोनों की बराबरी किस प्रकार कर सकते हैं ?”

अब माघ हाथ जोड़ कर करुण स्वर में बोले, “मां, हम हार गए।अब रास्ता बताओ। ,,”
वृद्धा तो माघ का गर्व चूर-चूर करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थी।बोली, आप हारे किस तरह हैं ? हारता तो वह है जिसने कर्ज लिया हो और दूसरा वह जिसने चरित्र खो दिया हो।आप इन दोनों में से किसी भी श्रेणी में नहीं हैं। महाकवि
अवाक् रह गए।
वृद्धा बोली, “महाकवि माघ,मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानती हूँ।विद्वत्ता के साथ मनुष्य के पास विनम्रता भी होनी चाहिए,न कि अहंकार..!!”

🙏🏽🙏🏿🙏🏻जय जय श्री राधे🙏🙏🏼🙏🏾

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