परमात्मा ने सभी जीवो को उनके कर्मानुसार उन्हे दिया है।जो जैसी पात्रता रखता है,उसे वैसा ही दिया है।किंतु हम उससे संतुष्ट नही रहते,और दूसरो के पास है उसे पाने के लिए उचित अनुचित तरीके अपनाते है।और उन्हे पाने के चिंतन में ही लगे रहते है।पढ़िए।
एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बगीचे में सैर करने गया,पर वहां पहुँच कर उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं। राजा बहुत चिंतित हुआ, वो इसकी वजह जानने के लिए सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।
अशोक वृक्ष ने कहा,वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है।
राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था।
अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।
राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था,खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।
राजा ने उससे पूछा – बड़ी अजीब बात है,मैं पूरे बाग़ में घूम कर आया हूँ लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े-बड़े पेड़ दुखी हुये बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?
पेड़ बोला – महाराज !! बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाय स्वयं की दूसरों से तुलना करके दुखी हैं,जबकि मैंने यह जान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बगीचे को सुन्दर बनाऊं, यदि आप इस स्थान पर ओक,अंगूर या गुलाब ही चाहते तो मुझे नही लगवाते !!इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ।
हमें दूसरों से तुलना करने से बचना चाहिए,अन्यथा सदैव दुःखी,निराश, हताश रहेंगे।
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।
नजर अपनी ओर
- Tags: अंगूर लता, अशोक वृक्ष, कंधे झुके, देवदार
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