निष्काम सेवा
एक बार प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीनने एक कुम्हारकी देखा, जो बहुत सुन्दर मिट्टीके बरतन बना रहा था। आइंस्टीनको उसके बरतन बहुत अच्छे लगे। वे बोले ‘ईश्वरकी खातिर कृपया मुझे एक बरतन दे दीजिये।’ कुम्हारने एक सबसे सुन्दर बरतन उठाया। उसे साफ करके उसने आइंस्टीनके हाथोंमें दे दिया।
आइंस्टीनने उसकी कीमत पूछी तो वह कुम्हार बोला-‘आपने ईश्वरकी खातिर बरतन देनेको कहा था, पैसोंकी खातिर नहीं।’
आइंस्टीन हमेशा इस घटनाको याद करते थे कि ‘मैं जो कभी किसी विश्वविद्यालयमें नहीं सीख सका, वह मुझे उस कुम्हारने सिखा दिया। मैंने उससे निष्काम सेवा सीखी।’ जीवनसे बढ़कर कोई विश्वविद्यालय नहीं है।
selfless service
Once the famous scientist Einstein saw a potter who was making very beautiful pottery. Einstein liked her utensils very much. He said ‘Please give me a pot for the sake of God.’ The potter picked up a most beautiful vessel. He cleaned it and handed it over to Einstein.
When Einstein asked its price, the potter said – ‘You had asked to give utensils for the sake of God, not for the sake of money.’
Einstein always remembered this incident that ‘what I could never learn in any university, that potter taught me. I learned selfless service from him. There is no better university than life.