‘पुजारीको सिखाया सबक
गाँवका एकमात्र हनुमान्मन्दिर बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। उसी गाँवके नहीं बल्कि आस-पासके अनेक गाँवोंके लोग वहाँ बजरंगबलीकी पूजा-अर्चना करने आते। लोग मनौती मानते तथा खूब फल-फूल, प्रसाद और चढ़ावा चढ़ाते। मन्दिरका पुजारी घमण्डी हो गया। वह सोचने लगा उसीके कारण मन्दिरमें इतनी भीड़ होती है। वह दर्शनार्थियोंके साथ दुर्व्यवहार करने लगा। जब तब उनका अपमान करने लगा। दर्शनार्थी मन्दिरमें विराजमान हनुमान्जीपर आस्था रखते थे; क्योंकि उनकी मनोकामना पूर्ण होती थी। अतः वे पुजारीसे कुछ कहते नहीं थे।
एक दिन तो पुजारीने हद पार कर दी। एक वृद्ध माताजीके हाथोंसे फूलोंकी टोकरी और प्रसादकी थैली छीनकर दूर फेंक दी। उन्हें खूब खरी-खोटी सुनायी। माताजी चुपचाप एक ओर बैठ गयीं। बजरंगबलीने अपनी भक्तिनकी दुर्दशा देखी तो बहुत नाराज हुए। उन्होंने एक ब्राह्मणका वेश बनाया। मंगलवारका दिन था। वहीं मन्दिरके चबूतरेपर बैठ गये। भक्तोंसे बोले ‘भाइयो! माताओ! एक कथा सुनते जाओ।’ पुजारी भी 4 बैठा था। वह भी उत्सुक हो गया कि देखें यह ब्राह्मण क्या कहानी सुनाता है।
ब्राह्मणने कथा शुरू की, एक जगह बहुत बड़ा मेला लगा। मेलेमें दूर-दूरसे झाँकियाँ आयी थीं। एक छोटा-सा रथ भी इस जुलूसमें शामिल था। उस रथमें एक बैल जुता था। रथमें भगवान् श्रीरामकी मूर्ति सजी थी। बैलने पहली बार इतना बड़ा मेला देखा था, इसलिये ऐंठ-ऐंठकर चल रहा था। सड़कके दोनों ओर हजारों नर-नारी खड़े प्रभुकी मूर्तिको प्रणाम करके फूलोंकी वर्षा कर रहे थे। लोग उसके आगे हाथ जोड़ रहे थे। कोई साष्टांग दण्डवत् प्रणाम कर रहा था। बैल मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि लोग उसीको झुक झुककर प्रणाम कर रहे हैं।
वह मण्डमें फूला नहीं समाया। उसे लग रहा था कि वह कितना महल है। उसे लगा कि गाड़ी खीचनेका काम उसकी प्रतिष्ठाके बराबर नहीं है। उसने आव देखा न ताव अपनी पिछली दोनों लातें उचल दी। टांगों उचलते ही रथ उलट गया और की जमीनपर लिये। लोगोको बैलकी इस हरकतपर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने बैलको इतने डण्डे मारे कि बैल अधमरा हो गया। अब बैलको होश आया कि लोग उसे नहीं, उसपर रखी झाँकीको प्रणाम कर रहे थे।
कथा सुनाकर ब्राह्मणने कहा-‘भाइयो! यही हाल इस पुजारीका है। इसने वृद्ध माताजीका घोर अपमान घमण्डमें आकर किया है। दरअसल यह अपने आपको पूजनीय समझने लगा है।’
ब्राह्मणकी बात सुनकर लोग पुजारीको पीटनेके लिये लपके। पुजारी बुरी तरह घबराकर ब्राह्मणको ओटमें छिप गया। ब्राह्मणने लोगोंको शान्त करते हुए कहा-‘ बन्धुओ! यह इतनेमें ही समझ गया है। इसे छोड़ दो।’ पुजारी हाथ जोड़कर सबसे क्षमा माँगने लगा। वह ब्राह्मणके पैरोंपर गिर पड़ा। बोला-‘महाराज ! आपने मेरी आँखें खोल दीं।’ पर पुजारी उठा, तो उसे ब्राह्मण कहीं नहीं नजर आया। पता नहीं वह कहाँ गायब हो चुका था, पर हमें पता है, वह वापस मूर्तिमें समा गया था।
‘पुजारीको सिखाया सबक
गाँवका एकमात्र हनुमान्मन्दिर बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। उसी गाँवके नहीं बल्कि आस-पासके अनेक गाँवोंके लोग वहाँ बजरंगबलीकी पूजा-अर्चना करने आते। लोग मनौती मानते तथा खूब फल-फूल, प्रसाद और चढ़ावा चढ़ाते। मन्दिरका पुजारी घमण्डी हो गया। वह सोचने लगा उसीके कारण मन्दिरमें इतनी भीड़ होती है। वह दर्शनार्थियोंके साथ दुर्व्यवहार करने लगा। जब तब उनका अपमान करने लगा। दर्शनार्थी मन्दिरमें विराजमान हनुमान्जीपर आस्था रखते थे; क्योंकि उनकी मनोकामना पूर्ण होती थी। अतः वे पुजारीसे कुछ कहते नहीं थे।
एक दिन तो पुजारीने हद पार कर दी। एक वृद्ध माताजीके हाथोंसे फूलोंकी टोकरी और प्रसादकी थैली छीनकर दूर फेंक दी। उन्हें खूब खरी-खोटी सुनायी। माताजी चुपचाप एक ओर बैठ गयीं। बजरंगबलीने अपनी भक्तिनकी दुर्दशा देखी तो बहुत नाराज हुए। उन्होंने एक ब्राह्मणका वेश बनाया। मंगलवारका दिन था। वहीं मन्दिरके चबूतरेपर बैठ गये। भक्तोंसे बोले ‘भाइयो! माताओ! एक कथा सुनते जाओ।’ पुजारी भी 4 बैठा था। वह भी उत्सुक हो गया कि देखें यह ब्राह्मण क्या कहानी सुनाता है।
ब्राह्मणने कथा शुरू की, एक जगह बहुत बड़ा मेला लगा। मेलेमें दूर-दूरसे झाँकियाँ आयी थीं। एक छोटा-सा रथ भी इस जुलूसमें शामिल था। उस रथमें एक बैल जुता था। रथमें भगवान् श्रीरामकी मूर्ति सजी थी। बैलने पहली बार इतना बड़ा मेला देखा था, इसलिये ऐंठ-ऐंठकर चल रहा था। सड़कके दोनों ओर हजारों नर-नारी खड़े प्रभुकी मूर्तिको प्रणाम करके फूलोंकी वर्षा कर रहे थे। लोग उसके आगे हाथ जोड़ रहे थे। कोई साष्टांग दण्डवत् प्रणाम कर रहा था। बैल मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि लोग उसीको झुक झुककर प्रणाम कर रहे हैं।
वह मण्डमें फूला नहीं समाया। उसे लग रहा था कि वह कितना महल है। उसे लगा कि गाड़ी खीचनेका काम उसकी प्रतिष्ठाके बराबर नहीं है। उसने आव देखा न ताव अपनी पिछली दोनों लातें उचल दी। टांगों उचलते ही रथ उलट गया और की जमीनपर लिये। लोगोको बैलकी इस हरकतपर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने बैलको इतने डण्डे मारे कि बैल अधमरा हो गया। अब बैलको होश आया कि लोग उसे नहीं, उसपर रखी झाँकीको प्रणाम कर रहे थे।
कथा सुनाकर ब्राह्मणने कहा-‘भाइयो! यही हाल इस पुजारीका है। इसने वृद्ध माताजीका घोर अपमान घमण्डमें आकर किया है। दरअसल यह अपने आपको पूजनीय समझने लगा है।’
ब्राह्मणकी बात सुनकर लोग पुजारीको पीटनेके लिये लपके। पुजारी बुरी तरह घबराकर ब्राह्मणको ओटमें छिप गया। ब्राह्मणने लोगोंको शान्त करते हुए कहा-‘ बन्धुओ! यह इतनेमें ही समझ गया है। इसे छोड़ दो।’ पुजारी हाथ जोड़कर सबसे क्षमा माँगने लगा। वह ब्राह्मणके पैरोंपर गिर पड़ा। बोला-‘महाराज ! आपने मेरी आँखें खोल दीं।’ पर पुजारी उठा, तो उसे ब्राह्मण कहीं नहीं नजर आया। पता नहीं वह कहाँ गायब हो चुका था, पर हमें पता है, वह वापस मूर्तिमें समा गया था।