एक महात्मा थे। वे किसीके यहाँ भोजन करने गये। भोजनमें उनको थोड़ी-सी खीर मिली। उसमें उनको अपूर्व स्वाद मिला। उन्होंने थोड़ी-सी और माँगी, भोजन परसनेवालेने लाकर दे दी। किंतु उसमें वैसा स्वाद नहीं आया। उन्होंने इसका कारण पूछा। उन सज्जनने बहुत आग्रह करनेके पश्चात् बताया- ‘जब मैंभगवान्से प्रार्थना करता हूँ तब वे कभी-कभी कोई चीज आकर खा लेते हैं। आज छोटी कटोरीकी खीर तनिक-सी उन्होंने खा ली थी। वही खीर मैंने आपको पहली बार दी थी। किंतु दूसरी बार आपके माँगनेपर मैंने दूसरी खीर दी; क्योंकि भोगवाली खीर तनिक भी बची नहीं थी।’
There was a Mahatma. They went to someone’s place for food. He got a little kheer in the food. He found unique taste in it. He asked for a little more, the person who served the food brought it. But there was no such taste in it. He asked the reason for this. After a lot of insistence, that gentleman said – ‘When I pray to God, sometimes he comes and eats something. Today he had eaten a little bit of kheer in a small bowl. I gave you the same kheer for the first time. But for the second time, on your request, I gave you another kheer; Because there was not even an iota of bhogwali kheer left.’