आप में केवल भगवत्प्राप्ति की तङफ हो जाय। वह तङफ ऐसी हो, जिसकी कभी विस्मृति न हो। तात्पर्य है कि मुझे भगवान् की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, उनके चरणों में मेरा प्रेम हो जाय, इसको केवल याद रखना है, भूलना नहीं है।
हम सब भगवान्रूपी कल्पवृक्ष की छाया में बैठे हैं, इसलिये हमारी अवश्य पूरी होगी; क्योंकि इसी के लिये मनुष्यजन्म मिला है। अगर आपकी सच्ची लगन होगी तो दो-चार दिन में काम सिद्ध हो जायगा। कितनी सुगम बात है ! इसमें कठिनता क्या है ? इसमें लाभ-ही-लाभ है, हानि कोई है ही नहीं। इससे बढ़िया, सुगम उपाय मुझे कहीं मिला नहीं !
केवल एक बात पकड़ लें कि मेरा भगवान् में प्रेम हो जाय। इस एक बात में सब कुछ आ जायगा। इसमें पुरुषार्थ इतना ही है कि इस बात को भूलें नहीं, केवल याद रखें। ऐसा करोगे तो मैं अपने पर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा, एहसान मानूँगा ! केवल याद रखना है, इतनी ही बात है।
ऊँची-से-ऊँची सिद्धि इससे हो जायगी। सदा के लिये दुःख मिट जायगा। कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग- ये तीनों योग सिद्ध हो जायँगे। केवल अपनी आवश्यकता को याद रखें, भूलें नहीं। इसके सिद्ध होने में कम या ज्यादा दिन लग सकते हैं, पर इसमें कोई अयोग्य नहीं है। यह बात मामूली नहीं है।
।। कृष्णम् वन्दे जगद्गुरु ।।