लाजवंतीका सतीत्व – लालित्य

incense smoke buddhist

युद्ध समाप्त हुआ। एक-एक करके सभी राजपूत कट मरे ! परंतु किसीने दीनतायुक्त पराधीनता स्वीकार न की दूसरी ओर किलेमें धुएँका पहाड़ उठ रहा था! एक तड़ाकेके शब्दके साथ आग भड़क उठी और आसमानसे बातें करने लगी। राजपूत ललनाओंने पवित्र जौहर व्रत पूर्ण किया! अकबरके हाथ क्या आया ? जला हुआ शहर टूटे हुए मकान जली हुई हड्डियाँ ! मांसके लोथड़ोंकी ढेरी! यह देखकर क्रूर अकबरकी आँखोंमें आँसू भर आये। वह कहने लगा-‘ओहो ! राज्य बढ़ानेकी उमंगमें कितनी हत्याएँ होती हैं।’

अकबर अपनी क्रूरतापर पछता रहा था। इतनेमें कई मुसलमान सिपाहियोंने एक शस्त्रास्त्रधारी तेजस्वी तरुणको अकबरके सामने पेश किया। उसकी मुश्कें कसी हुई थीं। चेहरेपर बाँकपनके चिह्न थे। बड़ा अल्हड़ जवान था। आँखें रक्तके समान लाल हो रही थीं। इतना होनेपर भी मुखाकृतिमें बड़ी सुकुमारता थी उसके। अकबरने कहा- ‘तू कौन है? ऐसी बीभत्स स्थितिमें क्यों यहाँ आया है ?’

युवक- ‘मैं पुरुष नहीं हूँ! स्त्री हूँ! अपने स्वामीके शवको खोजमें यहाँ आयी हूँ।’

‘तेरा नाम क्या है ?’

“मेरा नाम लाजवंती है।’ ‘तू कहाँ रहती है ?”

‘मेरा घर डूंगरपुर है।’

“चित्तौड़ और दूंगरपुरके बीच कितना फासला है? तू यहाँ क्यों और कैसे आयी ?”

‘फासला बहुत है। मैंने सुना कि चित्तौड़ में जौहर है । होनेवाला है! राजपूत वीर और वीराङ्गनाएँ दोनों धर्मकी वेदीपर बलिदान होनेकी तैयारियाँ कर रहे हैं। इस शुभ समाचारको सुनकर मेरा स्वामी तो पहले ही चला आया था। मुझे पीछेसे पता चला। मेरी तीव्र इच्छा थी कि भाग्यवती राजपूतनियोंके समान मुझे भी सतीत्वकी चितापर जलनेका सौभाग्य प्राप्त हो। किंतु मेरे आनेसे पहले ही यहाँ सब कुछ समाप्त हो चुका। अतएव मेंस्वामी के शवको खोजने के लिये रणभूमिमें चली आ और तेरे क्रूर सिपाहियोंने मुझे पकड़ लिया।”

अकबर विस्मययुक्त हो मनमें कहने लगा, ‘ओहो! | मुझे सब जहाँपनाह और खुदाबंद कहते हैं, पर यह लड़की कितनी निडर है, जो कहती है तेरे कर सिपाहियोंने मुझे पकड़ लिया। सचमुच राजपूत रमणी बड़ी निडर होती है। शाबाश’ ‘तूने कैसे समझ लिया कि तेरा स्वामी युद्ध में

काम आ गया ! सम्भव है वह भाग गया हो।’ (हँसती हुई) ‘अकबर तू राजपूतोंके धर्मको नहीं जानता। राजपूत रणभूमिसे कभी भागते नहीं यह तेरी भूल है। मैं जानती हूँ मेरा स्वामी धर्मसे कभी डिग नहीं सकता!’

‘तेरी उसके साथ कब शादी हुई थी ?’

‘शादी नहीं! अभी सगाई हुई थी! विवाह होनेही वाला था कि तूने चित्तौड़पर चढ़ाई कर दी।’ अकबरने विशेष विस्मययुक्त होकर कहा- ‘नेकबख्त! जब शादी नहीं हुई तब वह तेरा शौहर (स्वामी) कैसे हो गया ? तू घर लौट जा! किसी औरके साथ तेरी शादी हो जायगी ?’

वह क्रोधसे आँखें लाल करके बोली-‘अकबर! क्या तुझे ईश्वरने इसीलिये सामर्थ्य दी है कि किसी सती रमणीके विषयमें ऐसे अपमानजनक वाक्य अपने मुँह से निकालनेका दुःसाहस करे ?’

बादशाह उसके तेजसे डर गया, उसने कहा- ‘नहीं बेटी मैं तेरी बेइजती करना नहीं चाहता! इतनी | लाशोंमें तेरे मँगेतरकी लाशका मिलना मुश्किल है! अगर तुझमें हिम्मत है तो जा ढूँढ ले और तेरे जीमें आये सो कर।”

अकबरकी आज्ञा पाकर लाजवंतीने अपने स्वामीका शव निकाला और डेरेमेंसे लकड़ियाँ लाकर एकत्र को तथा शवको उसपर लिटा दिया! पाँच बार परिक्रमा करके चकमकसे आग जलायी। जब आग जलने लगी, तब देवीके समान स्वामीको गोदमें बैठा लियाऔर चुपचाप शान्तभावसे सबके देखते-देखते जलकर भस्म हो गयी। सिपाही आश्चर्यचकित हो अपनी भाषामेंअनेक प्रकारके गीत गाकर राजपूत सतीके सहज पति प्रेमकी प्रशंसा करने लगे !

युद्ध समाप्त हुआ। एक-एक करके सभी राजपूत कट मरे ! परंतु किसीने दीनतायुक्त पराधीनता स्वीकार न की दूसरी ओर किलेमें धुएँका पहाड़ उठ रहा था! एक तड़ाकेके शब्दके साथ आग भड़क उठी और आसमानसे बातें करने लगी। राजपूत ललनाओंने पवित्र जौहर व्रत पूर्ण किया! अकबरके हाथ क्या आया ? जला हुआ शहर टूटे हुए मकान जली हुई हड्डियाँ ! मांसके लोथड़ोंकी ढेरी! यह देखकर क्रूर अकबरकी आँखोंमें आँसू भर आये। वह कहने लगा-‘ओहो ! राज्य बढ़ानेकी उमंगमें कितनी हत्याएँ होती हैं।’
अकबर अपनी क्रूरतापर पछता रहा था। इतनेमें कई मुसलमान सिपाहियोंने एक शस्त्रास्त्रधारी तेजस्वी तरुणको अकबरके सामने पेश किया। उसकी मुश्कें कसी हुई थीं। चेहरेपर बाँकपनके चिह्न थे। बड़ा अल्हड़ जवान था। आँखें रक्तके समान लाल हो रही थीं। इतना होनेपर भी मुखाकृतिमें बड़ी सुकुमारता थी उसके। अकबरने कहा- ‘तू कौन है? ऐसी बीभत्स स्थितिमें क्यों यहाँ आया है ?’
युवक- ‘मैं पुरुष नहीं हूँ! स्त्री हूँ! अपने स्वामीके शवको खोजमें यहाँ आयी हूँ।’
‘तेरा नाम क्या है ?’
“मेरा नाम लाजवंती है।’ ‘तू कहाँ रहती है ?”
‘मेरा घर डूंगरपुर है।’
“चित्तौड़ और दूंगरपुरके बीच कितना फासला है? तू यहाँ क्यों और कैसे आयी ?”
‘फासला बहुत है। मैंने सुना कि चित्तौड़ में जौहर है । होनेवाला है! राजपूत वीर और वीराङ्गनाएँ दोनों धर्मकी वेदीपर बलिदान होनेकी तैयारियाँ कर रहे हैं। इस शुभ समाचारको सुनकर मेरा स्वामी तो पहले ही चला आया था। मुझे पीछेसे पता चला। मेरी तीव्र इच्छा थी कि भाग्यवती राजपूतनियोंके समान मुझे भी सतीत्वकी चितापर जलनेका सौभाग्य प्राप्त हो। किंतु मेरे आनेसे पहले ही यहाँ सब कुछ समाप्त हो चुका। अतएव मेंस्वामी के शवको खोजने के लिये रणभूमिमें चली आ और तेरे क्रूर सिपाहियोंने मुझे पकड़ लिया।”
अकबर विस्मययुक्त हो मनमें कहने लगा, ‘ओहो! | मुझे सब जहाँपनाह और खुदाबंद कहते हैं, पर यह लड़की कितनी निडर है, जो कहती है तेरे कर सिपाहियोंने मुझे पकड़ लिया। सचमुच राजपूत रमणी बड़ी निडर होती है। शाबाश’ ‘तूने कैसे समझ लिया कि तेरा स्वामी युद्ध में
काम आ गया ! सम्भव है वह भाग गया हो।’ (हँसती हुई) ‘अकबर तू राजपूतोंके धर्मको नहीं जानता। राजपूत रणभूमिसे कभी भागते नहीं यह तेरी भूल है। मैं जानती हूँ मेरा स्वामी धर्मसे कभी डिग नहीं सकता!’
‘तेरी उसके साथ कब शादी हुई थी ?’
‘शादी नहीं! अभी सगाई हुई थी! विवाह होनेही वाला था कि तूने चित्तौड़पर चढ़ाई कर दी।’ अकबरने विशेष विस्मययुक्त होकर कहा- ‘नेकबख्त! जब शादी नहीं हुई तब वह तेरा शौहर (स्वामी) कैसे हो गया ? तू घर लौट जा! किसी औरके साथ तेरी शादी हो जायगी ?’
वह क्रोधसे आँखें लाल करके बोली-‘अकबर! क्या तुझे ईश्वरने इसीलिये सामर्थ्य दी है कि किसी सती रमणीके विषयमें ऐसे अपमानजनक वाक्य अपने मुँह से निकालनेका दुःसाहस करे ?’
बादशाह उसके तेजसे डर गया, उसने कहा- ‘नहीं बेटी मैं तेरी बेइजती करना नहीं चाहता! इतनी | लाशोंमें तेरे मँगेतरकी लाशका मिलना मुश्किल है! अगर तुझमें हिम्मत है तो जा ढूँढ ले और तेरे जीमें आये सो कर।”
अकबरकी आज्ञा पाकर लाजवंतीने अपने स्वामीका शव निकाला और डेरेमेंसे लकड़ियाँ लाकर एकत्र को तथा शवको उसपर लिटा दिया! पाँच बार परिक्रमा करके चकमकसे आग जलायी। जब आग जलने लगी, तब देवीके समान स्वामीको गोदमें बैठा लियाऔर चुपचाप शान्तभावसे सबके देखते-देखते जलकर भस्म हो गयी। सिपाही आश्चर्यचकित हो अपनी भाषामेंअनेक प्रकारके गीत गाकर राजपूत सतीके सहज पति प्रेमकी प्रशंसा करने लगे !

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