बाबा खड्गसेनजी बड़े ही प्रेमी भक्त थे। इनके जीवनधन व्रजेन्द्र-नन्दन श्रीकृष्णचन्द्र थे। ये उन्हींके स्मरण- चिन्तन एवं स्तवनमें व्यस्त रहते थे। श्रीकृष्णलीला दर्शन, श्रीकृष्ण कथा श्रवण और श्रीकृष्ण-नामके अखण्ड जपके अतिरिक्त इनका और कोई कार्यक्रम नहीं था। ये श्रीकृष्ण में ही रम गये थे, जगत्के ज्ञानसे सर्वथा शून्य थे ।
अपने परमाराध्य श्रीकृष्णकी मधुर लीलाके सहायक गोप और गोपिकाओंके माता-पिताका नाम ग्रन्थोंसे ढूँढ़ ढूँढ़कर इन्होंने बड़े परिश्रमसे पुस्तक तैयार की। दधिदान-लीला, श्रीकृष्ण-केलि-लीला और रास आदिका बड़ा ही सरस और मधुर चित्रण किया इन्होंने। जीवनका परमोद्देश्य यही था और इसीमें इनका जीवन समाप्त हुआ।
ये ग्वालियरमें रहते थे। इनके यहाँ प्रतिदिन नियमपूर्वक रासलीला होती और उसे ये बड़ी श्रद्धा भक्तिसे देखते थे। शरत्-पूर्णिमाकी रात्रि थी। निर्मल आकाशमें पूर्णचन्द्र हँस रहा था। शीतल, मधुर बयार बह रही थी। श्रीखड्गसेनजी श्यामा-श्यामकी भुवन मन- मोहिनी, संतजन – चित्ताकर्षिणी लीलाका अपलकनेत्रोंसे पान कर रहे थे। मधुर वाद्य बज रहे थे। भगवान् धीरे-धीरे नृत्य कर रहे थे। स्वर्गीय सौन्दर्य-सुख उतर आया था भूतलपर। श्रीखड्गसेनजी आनन्दसे गद्गद होगये थे। इनकी आँखें अश्रुमुक्ताओंकी माला पिरो रही थीं। सहसा ये श्यामसुन्दरके चरणोंपर गिर पड़े और सदैवके लिये उनके पावन धाममें चले गये।
– शि0 दु0
Baba Khadgasenji was a very loving devotee. His life-giver was Vrajendra-nandana Srikrishnachandra. They were engaged in their remembrance, contemplation and praise. He had no other program except seeing Sri Krishna Leela, hearing Sri Krishna Katha and unbroken chanting of Sri Krishna-Naam. They were absorbed in Krishna, completely devoid of knowledge of the world.
He prepared the book with great diligence by searching the scriptures for the names of the parents of the Gopas and Gopikas who assisted him in the sweet pastimes of his adorable Krishna. He depicted Dadhidan-leela, Sri Krishna-keli-leela and Raas etc. very nicely and sweetly. That was the ultimate purpose of life and it ended his life.
He lived in Gwalior. They had a regular Rasleela every day and they watched it with great devotion. It was the night of the autumn full moon. The full moon was laughing in the clear sky. A cool, sweet breeze was blowing. Sri Khadgasenji Shyama-Shyamaki Bhuvan Man- Mohini, Saints – Chittakarshini Leelaka was drinking with his eyes. Sweet instruments were playing. God was slowly dancing. Heavenly beauty-happiness had descended to the ground. Sri Khadgasenji was overjoyed. Their eyes were weaving a garland of tears. Suddenly he fell at the feet of Shyamasundar and went to his holy abode forever.