भगवान की दृष्टि मेँ मूल्य समर्पण का है,अंहकार का नहीं।पढ़िए।पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर लटक रहा नारियल रोज नीचे नदी मेँ पड़े पत्थर पर हंसता और कहता।
तुम्हारी तकदीर मेँ भी बस एक जगह पड़े रह कर, नदी की धाराओँ के प्रवाह को सहन करना ही लिखा है, देखना एक दिन यूं ही पड़े पड़े घिस जाओगे।
मुझे देखो कैसी शान से उपर बैठा हूं? पत्थर रोज उसकी अहंकार भरी बातोँ को अनसुना कर देता।
समय बीता एक दिन वही पत्थर घिस घिस कर गोल हो गया और विष्णु प्रतीक शालिग्राम के रूप मेँ जाकर, एक मन्दिर मेँ प्रतिष्ठित हो गया ।
एक दिन वही नारियल उन शालिग्राम जी की पूजन सामग्री के रूप मेँ मन्दिर मेँ लाया गया।
शालिग्राम ने नारियल को पहचानते हुए कहा ” भाई . देखो घिस घिस कर परिष्कृत होने वाले ही प्रभु के प्रताप से, इस स्थिति को पहुँचते हैँ।
सबके आदर का पात्र भी बनते है,
जबकि अहंकार के मतवाले अपने ही दभं के डसने से नीचे आ गिरते हैँ। तुम जो कल आसमान मे थे, आज से मेरे आगे टूट कर, कल से सझड़ने भी लगोगे, पर मेरा अस्तित्व अब कायम रहेगा।
भगवान की दृष्टि मेँ मूल्य.. समर्पण का है,अंहकार का नहीं।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।