उदारताका त्रिवेणी-सङ्गम

church abbey interiors

औरंगजेबने भेंटके बहाने शिवाजीको दिल्ली बुलाकर कैद कर लिया और शिवाजीने भी धोखा देकर आगरेसे भाग उसे इसका करारा जवाब दिया। भागते समय उनके साथ उनके पुत्र संभाजी और दो अन्य अनन्य स्वामिभक्त येसाजी और तानाजी थे।

रास्तेमें एक झाड़ीके बीच उनकी शेरसे मुठभेड़ हुई शेर मारा गया, पर मरते-मरते वह शिवाजी के कंधेपर पंजेसे वार कर ही गया। साथियोंने पानी और आस-पास सुलभ पेड़ और लताओंकी पत्तियोंसे उनकी मरहम पट्टी की और सभी आगे बढ़े।

मुर्शिदाबाद पहुँचते ही शिवाजीको एकाएक जोरोंसे बुखार चढ़ आया। खुली हवामें उनका निरापद रहना असम्भव जान साथियोंने नगरमें कुछ दिन शरणके लिये खोज की। कोई भी इन गुप्तवेषधारी अपरिचितोंको स्थान देने को तैयार न हुआ। आखिर विनायकदेव नामक एक महान् विद्वान् और दयालु ब्राह्मणने इन सबको आश्रय दिया। वह किसी भयंकर प्रसङ्गसे विरागी बनकर माता के साथ यहाँ रहता और सूखा अन माँगकर जीविका चलाता था।

देवके घर रहकर शिवाजीका स्वास्थ्य सुधरने लगा। पर पूर्ण स्वस्थ होनेके लिये कुछ दीर्घ अवधि अपेक्षित थी। शिवाजीने साथियोंसे कहा- आप दोनों संभाजीको लेकर दक्षिण पहुँचिये, तबतक मैं स्वस्थ होकर आ रहा हूँ। मेरे पीछे मेरे द्वारा खड़े किये गये राज्यकी (नींव) किसी तरह हिलने न पाये।’

लाचार हो साथियोंने शिवाजीका आग्रह मान लियाऔर प्रणामकर वे संभाजीके साथ निकल पड़े। कुछ दूर जाकर तानाजीने येसाजीसे कहा- आप सावधानीसे संभाजीको दक्षिण ले जायें। मैं यहीं आस-पास छिपा रहकर स्वामीकी देख-रेख करता रहूँगा और स्वस्थ होनेपर साथ लेकर पहुँच जाऊँगा।’

इधर ब्राह्मण नित्य भिक्षा माँग लाता और तीनोंका निर्वाह चलता। शिवाजीके स्वस्थ होनेपर ही एक दिन ब्राह्मणको भिक्षा कम मिली तो उसने भोजन बनाकर दोनोंको खिला दिया और स्वयं भूखा रह गया। यह बात शिवाजीकी नजरमें आ गयी। उन्होंने सोचा

‘ब्राह्मण कितने दिनोंसे ऐसा कर रहे होंगे’ ‘गोब्राह्मण प्रतिपालक’ शिवाके लिये ब्राह्मण भूखा रहे, यह उन्हें असह्य हो उठा। किस प्रकार उसकी मदद की जाय ! यही वे बार-बार सोचने लगे। इन्हें दक्षिण ले जाना निरापद नहीं और वहाँसे धन भेजनेपर भी वह इसके हाथ लगेगा ही, इसका क्या भरोसा? और यह बात कहीं प्रकट हो गयी तो इसपर क्या बीतेगी ?’ अन्तमें एक निश्चयपर वे पहुँच ही गये।

ब्राह्मणसे उन्होंने कागज और स्याही कलम मँगायी और एक पत्र लिख उसे सूबेदारको दे आनेके लिये भेजा अकस्मात् अनिर्धारित व्यक्तिके हाथों आये पत्रसे सूबेदारकी उत्कण्ठा बढ़ गयी और उसने उसे खोलकर पढ़ा l

‘शिवाजी इस ब्राह्मणके घर टिका है। इसके साथ आयें और खुशीसे पकड़ लें पर ध्यान रहे कि शिवाजीको पकड़नेके लिये घोषित इनामके दो हजाररुपये इस ब्राह्मणको जरूर दें। अगर इसमें धोखाधड़ी की तो पछताना पड़ेगा। ‘

पत्र पढ़ते ही सुबेदारको विलक्षण आनन्द हुआ। शिवाजीको दिल्ली दरबारमें हाजिरकर शाहनशाहसे एक सूबा बक्शीस पानेतक वह मनोराज्य कर बैठा। यह सब काम चुपचाप कर सम्राट्को अपनी कुशलतापर आश्चर्यचकित करनेकी सोच वह अपने पाससे दो हजारकी थैली लेकर ब्राह्मणके घर पहुँचा ब्राह्मणके आगे थैली उड़ेलकर वह गोसाईं (शिवाजी) को अपने साथ ले गया। ब्राह्मण यह सब चमत्कार देख ठक् सा रह गया। उसे भेदका कुछ भी पता न चला। फिर भी घर आये अतिथिको यवनद्वारा ले जाते देख वह बड़ा ही दुखी हुआ। उसे चैन नहीं पड़ता था ।

इसी बीच दूरसे उसी गोसाईंके एक साथीको आते देख देवने उसे तत्काल पहचान लिया। अपने स्वामीको गिरफ्तार कर ले जाते हुए उसने अपनी आँखों देखा और पहलेसे ही पता लगा लिया कि कल अमुक समय, अमुक रास्तेसे उन्हें दिल्ली लाया जायगा ।

साथीने आकर ब्राह्मणसे सारी हकीकत पूछी और विह्वल हो ब्राह्मणने ज्यों-का-त्यों सारा किस्सा सुना दिया। साथीके ध्यानमें बात आ गयी कि स्वामीने ब्राह्मणके उपकारका बदला चुकानेके लिये अपनेको इस संकटमें डाला है। फिर भी उसने निश्चय किया कि मरते दमतक उन्हें इस संकटसे उबारकर ही रहूँगा। ब्राह्मणको सच्चा और विश्वस्त पाकर आखिरसाथीने सारा रहस्य खोल दिया – ‘भूदेव ! ये और कोई नहीं, स्वयं गोब्राह्मण प्रतिपालक छत्रपति शिवराज थे, वह बच्चा उनका पुत्र संभाजी, मैं उनका सेवक तानाजी और दूसरे येसाजी थे ।

तानाजी आगे कह ही रहे थे कि ब्राह्मण मूच्छित हो गया। तानाजीने उसे सँभाला। होश आनेपर वह अपनी करनीपर बिलख-बिलखकर रोने लगा और इन दो हजारके सहारे किसी तरह उनको छुड़ानेका हर सम्भव यत्न करनेके लिये तानाजीकी विनती करने लगा।

तानाजीने ब्राह्मणदेवताको आश्वासन दिया तथा स्वयं पठानका वेष धारणकर और उन रुपयोंसे पचास आदमियोंको साथ ले उस झाड़ीमें छिप गया, जहाँसे होकर सूबेदार शिवाजीको दिल्ली ले जानेवाला था ।

मध्यरात्रि के बाद सूबेदारकी सवारी पच्चीस सिपाहियोंके साथ शिवाजीको लेकर झाड़ीके पास आ पहुँची। तानाजीने अचानक हल्ला बोल दिया और एक ही साथ पचासों जवान उनपर टूट पड़े। सूबेदारके पास तानाजीसे कम लोग थे और वे असावधान भी थे। इसलिये इसका परिणाम क्या हुआ, यह सहज ही समझा जा सकता है। सूबेदारसहित सारी पलटनका सफाया कर तानाजी शिवाजीको लेकर ब्राह्मणके घर लौट आये।

ब्राह्मण आनन्दसे फूला नहीं समाता था। तीनों उदार नेताओंका संगम वहाँ त्रिवेणी और तीर्थराजका दृश्य उपस्थित कर रहा था। गो0 न0 बै0
(नीतिबोध)

औरंगजेबने भेंटके बहाने शिवाजीको दिल्ली बुलाकर कैद कर लिया और शिवाजीने भी धोखा देकर आगरेसे भाग उसे इसका करारा जवाब दिया। भागते समय उनके साथ उनके पुत्र संभाजी और दो अन्य अनन्य स्वामिभक्त येसाजी और तानाजी थे।
रास्तेमें एक झाड़ीके बीच उनकी शेरसे मुठभेड़ हुई शेर मारा गया, पर मरते-मरते वह शिवाजी के कंधेपर पंजेसे वार कर ही गया। साथियोंने पानी और आस-पास सुलभ पेड़ और लताओंकी पत्तियोंसे उनकी मरहम पट्टी की और सभी आगे बढ़े।
मुर्शिदाबाद पहुँचते ही शिवाजीको एकाएक जोरोंसे बुखार चढ़ आया। खुली हवामें उनका निरापद रहना असम्भव जान साथियोंने नगरमें कुछ दिन शरणके लिये खोज की। कोई भी इन गुप्तवेषधारी अपरिचितोंको स्थान देने को तैयार न हुआ। आखिर विनायकदेव नामक एक महान् विद्वान् और दयालु ब्राह्मणने इन सबको आश्रय दिया। वह किसी भयंकर प्रसङ्गसे विरागी बनकर माता के साथ यहाँ रहता और सूखा अन माँगकर जीविका चलाता था।
देवके घर रहकर शिवाजीका स्वास्थ्य सुधरने लगा। पर पूर्ण स्वस्थ होनेके लिये कुछ दीर्घ अवधि अपेक्षित थी। शिवाजीने साथियोंसे कहा- आप दोनों संभाजीको लेकर दक्षिण पहुँचिये, तबतक मैं स्वस्थ होकर आ रहा हूँ। मेरे पीछे मेरे द्वारा खड़े किये गये राज्यकी (नींव) किसी तरह हिलने न पाये।’
लाचार हो साथियोंने शिवाजीका आग्रह मान लियाऔर प्रणामकर वे संभाजीके साथ निकल पड़े। कुछ दूर जाकर तानाजीने येसाजीसे कहा- आप सावधानीसे संभाजीको दक्षिण ले जायें। मैं यहीं आस-पास छिपा रहकर स्वामीकी देख-रेख करता रहूँगा और स्वस्थ होनेपर साथ लेकर पहुँच जाऊँगा।’
इधर ब्राह्मण नित्य भिक्षा माँग लाता और तीनोंका निर्वाह चलता। शिवाजीके स्वस्थ होनेपर ही एक दिन ब्राह्मणको भिक्षा कम मिली तो उसने भोजन बनाकर दोनोंको खिला दिया और स्वयं भूखा रह गया। यह बात शिवाजीकी नजरमें आ गयी। उन्होंने सोचा
‘ब्राह्मण कितने दिनोंसे ऐसा कर रहे होंगे’ ‘गोब्राह्मण प्रतिपालक’ शिवाके लिये ब्राह्मण भूखा रहे, यह उन्हें असह्य हो उठा। किस प्रकार उसकी मदद की जाय ! यही वे बार-बार सोचने लगे। इन्हें दक्षिण ले जाना निरापद नहीं और वहाँसे धन भेजनेपर भी वह इसके हाथ लगेगा ही, इसका क्या भरोसा? और यह बात कहीं प्रकट हो गयी तो इसपर क्या बीतेगी ?’ अन्तमें एक निश्चयपर वे पहुँच ही गये।
ब्राह्मणसे उन्होंने कागज और स्याही कलम मँगायी और एक पत्र लिख उसे सूबेदारको दे आनेके लिये भेजा अकस्मात् अनिर्धारित व्यक्तिके हाथों आये पत्रसे सूबेदारकी उत्कण्ठा बढ़ गयी और उसने उसे खोलकर पढ़ा l
‘शिवाजी इस ब्राह्मणके घर टिका है। इसके साथ आयें और खुशीसे पकड़ लें पर ध्यान रहे कि शिवाजीको पकड़नेके लिये घोषित इनामके दो हजाररुपये इस ब्राह्मणको जरूर दें। अगर इसमें धोखाधड़ी की तो पछताना पड़ेगा। ‘
पत्र पढ़ते ही सुबेदारको विलक्षण आनन्द हुआ। शिवाजीको दिल्ली दरबारमें हाजिरकर शाहनशाहसे एक सूबा बक्शीस पानेतक वह मनोराज्य कर बैठा। यह सब काम चुपचाप कर सम्राट्को अपनी कुशलतापर आश्चर्यचकित करनेकी सोच वह अपने पाससे दो हजारकी थैली लेकर ब्राह्मणके घर पहुँचा ब्राह्मणके आगे थैली उड़ेलकर वह गोसाईं (शिवाजी) को अपने साथ ले गया। ब्राह्मण यह सब चमत्कार देख ठक् सा रह गया। उसे भेदका कुछ भी पता न चला। फिर भी घर आये अतिथिको यवनद्वारा ले जाते देख वह बड़ा ही दुखी हुआ। उसे चैन नहीं पड़ता था ।
इसी बीच दूरसे उसी गोसाईंके एक साथीको आते देख देवने उसे तत्काल पहचान लिया। अपने स्वामीको गिरफ्तार कर ले जाते हुए उसने अपनी आँखों देखा और पहलेसे ही पता लगा लिया कि कल अमुक समय, अमुक रास्तेसे उन्हें दिल्ली लाया जायगा ।
साथीने आकर ब्राह्मणसे सारी हकीकत पूछी और विह्वल हो ब्राह्मणने ज्यों-का-त्यों सारा किस्सा सुना दिया। साथीके ध्यानमें बात आ गयी कि स्वामीने ब्राह्मणके उपकारका बदला चुकानेके लिये अपनेको इस संकटमें डाला है। फिर भी उसने निश्चय किया कि मरते दमतक उन्हें इस संकटसे उबारकर ही रहूँगा। ब्राह्मणको सच्चा और विश्वस्त पाकर आखिरसाथीने सारा रहस्य खोल दिया – ‘भूदेव ! ये और कोई नहीं, स्वयं गोब्राह्मण प्रतिपालक छत्रपति शिवराज थे, वह बच्चा उनका पुत्र संभाजी, मैं उनका सेवक तानाजी और दूसरे येसाजी थे ।
तानाजी आगे कह ही रहे थे कि ब्राह्मण मूच्छित हो गया। तानाजीने उसे सँभाला। होश आनेपर वह अपनी करनीपर बिलख-बिलखकर रोने लगा और इन दो हजारके सहारे किसी तरह उनको छुड़ानेका हर सम्भव यत्न करनेके लिये तानाजीकी विनती करने लगा।
तानाजीने ब्राह्मणदेवताको आश्वासन दिया तथा स्वयं पठानका वेष धारणकर और उन रुपयोंसे पचास आदमियोंको साथ ले उस झाड़ीमें छिप गया, जहाँसे होकर सूबेदार शिवाजीको दिल्ली ले जानेवाला था ।
मध्यरात्रि के बाद सूबेदारकी सवारी पच्चीस सिपाहियोंके साथ शिवाजीको लेकर झाड़ीके पास आ पहुँची। तानाजीने अचानक हल्ला बोल दिया और एक ही साथ पचासों जवान उनपर टूट पड़े। सूबेदारके पास तानाजीसे कम लोग थे और वे असावधान भी थे। इसलिये इसका परिणाम क्या हुआ, यह सहज ही समझा जा सकता है। सूबेदारसहित सारी पलटनका सफाया कर तानाजी शिवाजीको लेकर ब्राह्मणके घर लौट आये।
ब्राह्मण आनन्दसे फूला नहीं समाता था। तीनों उदार नेताओंका संगम वहाँ त्रिवेणी और तीर्थराजका दृश्य उपस्थित कर रहा था। गो0 न0 बै0
(नीतिबोध)

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