भगवान्‌के भरोसे उद्योग कर्तव्य है

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घोर दुष्काल पड़ा था। लोग दाने-दानेके लिये भटक रहे थे। भगवान् बुद्ध से जनताका यह कष्ट सहा नहीं गया। उन्होंने नागरिकोंको एकत्र किया। नगरके सभी सम्पन्न व्यक्ति जब उपस्थित हो गये, तब तथागतने उनसे प्रजाकी पीड़ा दूर करनेका कुछ प्रबन्ध करनेको कहा।

नगरके सबसे बड़े अन्नके व्यापारीकी ओर प्रभुने देखा। वे उठकर खड़े हो गये और बोले-‘मैं अपना सभी संचित अन्न देनेको प्रस्तुत हूँ; किंतु वह इतना नहीं है कि उससे पूरी प्रजाको एक सप्ताह भी भोजन दिया जा सके।’

नगरसेठने निवेदन किया-‘ प्रभु आज्ञा दें तो मैं अपना सम्पूर्ण कोष लुटा दे सकता हूँ; किंतु प्रजाको दस दिन भी भोजन उससे मिलेगा या नहीं-संदेहकी बात है।’

स्वयं नरेशने भी अपनी असमर्थता प्रकट कर दी। सम्पूर्ण सभा मौन हो गयी। सबने मस्तक झुका लिये।तथागतके मुखपर चिन्ताकी रेखाएँ झलकने लगीं। इतनेमें सभामें सबसे पीछे खड़ी फटे मैले वस्त्रोंवाली एक भिखारिणीने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाया और बोली- ‘प्रभु आज्ञा दें तो मैं दुष्कालपीड़ित जनोंको भोजन दूँगी।’

एक ओरसे सबकी दृष्टि उस कंगाल नारीकी ओर उठ गयी। सबने देखा कि वह तो अनाथपिण्डदकी कन्या है। अपना ही पेट भरनेके लिये उसे प्रतिदिन द्वार-द्वार भटककर भीख माँगना पड़ता है । तथागत उस भिखारिणीकी ओर देखकर प्रसन्न हो गये थे। किसीने क्रोधपूर्वक पूछा- ‘तेरे यहाँ कहाँ खजाना गड़ा है कि तू सबको भोजन देगी ?’

बिना हिचके, बिना भयके उस नारीने कहा ‘मैं तो भगवान्‌की कृपाके भरोसे उद्योग करूँगी। मेरा कर्तव्य उद्योग करना है। मेरा कोष तो आप सबके घरमें है । आपकी उदारतासे ही यह मेराभिक्षापात्र अक्षय बनेगा ।’
सचमुच उस भिखारिणीका भिक्षापात्र अक्षय बन गया। वह जहाँ भिक्षा लेने गयी, लोगोंने उसके लियेअपने भण्डार खोल दिये। जबतक वर्षा होकर खेतों में अन्न नहीं हुआ, अनाथपिण्डदकी कन्या प्रजाको भोजन देती रही।

There was severe famine. People were wandering for food. Lord Buddha could not tolerate this suffering of the public. He gathered the citizens. When all the rich people of the city were present, Tathagat asked them to make some arrangements to remove the suffering of the people.
The Lord looked at the biggest food merchant of the city. He got up and said – ‘I am ready to give all my accumulated food; But it is not enough to feed the whole people even for a week.’
Nagarseth requested – ‘ If God allows, I can loot all my funds; But whether the people will get food from him even for ten days is a matter of doubt.’
The king himself also expressed his inability. The whole assembly became silent. Everyone bowed their heads. Lines of worry started appearing on Tathagat’s face. Meanwhile, standing at the back of the assembly, a beggar woman with torn dirty clothes bowed her head with folded hands and said – ‘If God permits, I will give food to the people who are suffering.’
On the one hand, everyone’s vision was raised towards that poor woman. Everyone saw that she is the daughter of Anathpind. To feed himself, he has to beg from door to door every day. Tathagat was pleased to see that beggar. Someone angrily asked – ‘Where is the treasure buried at your place that you will give food to everyone?’
Without hesitation, without fear, the woman said, ‘I will do business depending on the grace of God. My duty is to do industry. My treasure is in all of your homes. With your generosity, this beggar of mine will become Akshay.’
Really, that beggar’s beggar has become Akshay. Wherever she went to beg, people opened their stores for her. As long as there was no food in the fields due to rain, the daughter of Anathapindada continued to provide food to the subjects.

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