ब्रह्म क्या है

meditation awakening spiritualism

गर्ग गोत्र में उत्पन्न बलाकाके पुत्र बालाकि नामके एक प्रसिद्ध ब्राह्मण थे। उन्होंने सम्पूर्ण वेदोंका अध्ययन तो किया ही था, वे वेदोंके अच्छे वक्ता भी थे। उन दिनों संसारमें सब ओर उनकी बड़ी ख्याति थी। वे उशीनर देशके निवासी थे; परंतु सदा विचरण करनेके कारण कभी मलय देशमें, कभी कुरु पाञ्चालमें और कभी काशी तथा मिथिला प्रान्तमें रहते थे। इस प्रकार ये सुप्रसिद्ध गार्ग्य (बालाकि एक दिन काशीके विद्वान् राजा अजातशत्रुके पास गये और अभिमानपूर्वक बोले ‘राजन्! आज मैं तुम्हें ब्रह्मतत्त्वत्का उपदेश करूँगा।’ इसपर प्रसिद्ध राजा अजातशत्रुने कहा- आपकी इस बातपर हमने आपको एक सहस्र गौएँ दीं। आज आपने हमारा गौरव राजा जनकके समान कर दिया। अतः इन्हें स्वीकार करके हमें ब्रह्मतत्वका शीघ्र उपदेश करें।’ इसपर गार्ग्य बालाकिने कहा कि ‘राजन्! यह जो सूर्यमण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, इसीकी मैं ब्रह्मबुद्धिसे उपासना करता हूँ।’ यह सुनकर प्रसिद्ध राजा अजातशत्रुने कहा- ‘नहीं, नहीं, इसके विषयमें आप संवाद न करें। निश्चय ही यह सबसे महान् शुक्लाम्बरधारी तथा सर्वोच्चस्थितिमें स्थित सबका मस्तक है। मैं इसकी इसी प्रकार उपासना करता हूँ। इसी प्रकार उपासना करनेवाला कोई दूसरा मनुष्य भी सबसे ऊँची स्थितिमें स्थित हो ‘जाता है।’

तव गार्ग्य बालाकि पुनः बोले- ‘यह जो चन्द्रमण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, मैं इसकी ब्रह्मरूपसे उपासना करता हूँ।’ यह सुनकर अजातशत्रुने कहा-‘नहीं, नहीं, इस विषयमें आप संवाद न करें यह सोम राजा है और अन्नका आत्मा है। इसकी इस प्रकार उपासना करनेवाला व्यक्ति मुझ जैसा ही अन्नराशिसे सम्पन्न हो जाता है।अब वे गार्ग्य बोले- ‘यह जो विद्युन्मण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, इसीकी मैं ब्रह्मरूपसे उपासना करता हूँ।’ अजातशत्रुने इसपर यही कहा कि ‘नहीं, नहीं, इस विषयमें आप संवाद न करें यह तेजका आत्मा है। जो इसकी इस प्रकार उपासना करता है, वह तेजस्वी हो जाता है।’

इसी प्रकार गार्ग्य क्रमश: मेघ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, दर्पण, प्रतिध्वनि, पदध्वनि, छायामय पुरुष, शरीरान्तर्वर्ती पुरुष, प्राण तथा उभयनेत्रान्तर्गत पुरुषको ब्रह्म बतलाते गये और अजातशत्रुने इन सबको ब्रह्मका अङ्ग तथा ब्रह्मको इनका अङ्गी सिद्ध किया। अन्तमें हारकर बालाकिने चुप्पी साध ली और अन्तमें राजा अजातशत्रुको अपना गुरु स्वीकार किया और उनके सामने समिधा लेकर वे शिष्यभावसे उपस्थित हुए।

इसपर राजा अजातशत्रुने कहा-‘यदि क्षत्रिय ब्राह्मणको शिष्य बनाये तो बात विपरीत हो जायगी, इसलिये चलिये, एकान्तमें हम आपको ब्रह्मका ज्ञान करायेंगे। ‘ यों कहकर वे बालाकिको एक सोये हुए व्यक्तिके पास ले गये और उसे ‘ओ ब्रह्मन्! ओ पाण्डरवासा ! ओ सोम राजा।’ इत्यादि सम्बोधनोंसे पुकारने लगे। पर वह पुरुष चुपचाप सोया ही रहा। तब उसे दोनों हाथोंसे दबाकर जगाया। अब वह जगा। तदनन्तर राजाने बालाकिसे पूछा- ‘बालाके! यह जो विज्ञानमय पुरुष है, जब सोया हुआ था तब कहाँ था? और अब यह कहाँसे आ गया ?” किंतु गार्ग्य यह कुछ न जान सके।

अजातशत्रुने कहा- ‘हिता नामसे प्रसिद्ध बहुत सी नाड़ियाँ हैं ये हृदयकमलसे सम्बद्ध हैं और वहींसे निकलकर सम्पूर्ण शरीरमें फैली हुई हैं। यह पुरुष सोते समय उन्हीं नाड़ियोंमें स्थित रहता है। जैसेक्षुरधानमें छूरा रखा रहता है, उसी प्रकार शरीरान्तर्गत हृदयकमलमें इस परम पुरुष परमात्माकी उपलब्धि होती है। वाक्, चक्षु, श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ अनुगत सेवककी भाँति उसका अनुसरण करती हैं। इसके सो जानेपर ये सारी इन्द्रियाँ प्राणमें तथा प्राण इस आत्मामें लीन – एकीभावको प्राप्त हो जाता है।

‘यही आत्मतत्त्व है। जबतक इन्द्रको इस आत्मतत्त्वका ज्ञान नहीं था, तबतक वे असुरोंसे हारते रहे। किंतु जबवे इस रहस्यको जान गये, तब असुरोंको पराजितकर सम्पूर्ण देवताओंमें श्रेष्ठ हो गये, स्वर्गका राज्य तथा त्रिभुवनका आधिपत्य पा गये। इसी प्रकार जो विद्वान् इस आत्मतत्त्वको जान लेता है, उसके सारे पाप ताप नष्ट हो जाते हैं तथा उसे स्वाराज्य, प्रभुत्व तथा श्रेष्ठत्वकी प्राप्ति होती है।

-जा0 श0

(बृहदारण्यक0)

(कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद्)

गर्ग गोत्र में उत्पन्न बलाकाके पुत्र बालाकि नामके एक प्रसिद्ध ब्राह्मण थे। उन्होंने सम्पूर्ण वेदोंका अध्ययन तो किया ही था, वे वेदोंके अच्छे वक्ता भी थे। उन दिनों संसारमें सब ओर उनकी बड़ी ख्याति थी। वे उशीनर देशके निवासी थे; परंतु सदा विचरण करनेके कारण कभी मलय देशमें, कभी कुरु पाञ्चालमें और कभी काशी तथा मिथिला प्रान्तमें रहते थे। इस प्रकार ये सुप्रसिद्ध गार्ग्य (बालाकि एक दिन काशीके विद्वान् राजा अजातशत्रुके पास गये और अभिमानपूर्वक बोले ‘राजन्! आज मैं तुम्हें ब्रह्मतत्त्वत्का उपदेश करूँगा।’ इसपर प्रसिद्ध राजा अजातशत्रुने कहा- आपकी इस बातपर हमने आपको एक सहस्र गौएँ दीं। आज आपने हमारा गौरव राजा जनकके समान कर दिया। अतः इन्हें स्वीकार करके हमें ब्रह्मतत्वका शीघ्र उपदेश करें।’ इसपर गार्ग्य बालाकिने कहा कि ‘राजन्! यह जो सूर्यमण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, इसीकी मैं ब्रह्मबुद्धिसे उपासना करता हूँ।’ यह सुनकर प्रसिद्ध राजा अजातशत्रुने कहा- ‘नहीं, नहीं, इसके विषयमें आप संवाद न करें। निश्चय ही यह सबसे महान् शुक्लाम्बरधारी तथा सर्वोच्चस्थितिमें स्थित सबका मस्तक है। मैं इसकी इसी प्रकार उपासना करता हूँ। इसी प्रकार उपासना करनेवाला कोई दूसरा मनुष्य भी सबसे ऊँची स्थितिमें स्थित हो ‘जाता है।’
तव गार्ग्य बालाकि पुनः बोले- ‘यह जो चन्द्रमण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, मैं इसकी ब्रह्मरूपसे उपासना करता हूँ।’ यह सुनकर अजातशत्रुने कहा-‘नहीं, नहीं, इस विषयमें आप संवाद न करें यह सोम राजा है और अन्नका आत्मा है। इसकी इस प्रकार उपासना करनेवाला व्यक्ति मुझ जैसा ही अन्नराशिसे सम्पन्न हो जाता है।अब वे गार्ग्य बोले- ‘यह जो विद्युन्मण्डलमें अन्तर्यामी पुरुष है, इसीकी मैं ब्रह्मरूपसे उपासना करता हूँ।’ अजातशत्रुने इसपर यही कहा कि ‘नहीं, नहीं, इस विषयमें आप संवाद न करें यह तेजका आत्मा है। जो इसकी इस प्रकार उपासना करता है, वह तेजस्वी हो जाता है।’
इसी प्रकार गार्ग्य क्रमश: मेघ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, दर्पण, प्रतिध्वनि, पदध्वनि, छायामय पुरुष, शरीरान्तर्वर्ती पुरुष, प्राण तथा उभयनेत्रान्तर्गत पुरुषको ब्रह्म बतलाते गये और अजातशत्रुने इन सबको ब्रह्मका अङ्ग तथा ब्रह्मको इनका अङ्गी सिद्ध किया। अन्तमें हारकर बालाकिने चुप्पी साध ली और अन्तमें राजा अजातशत्रुको अपना गुरु स्वीकार किया और उनके सामने समिधा लेकर वे शिष्यभावसे उपस्थित हुए।
इसपर राजा अजातशत्रुने कहा-‘यदि क्षत्रिय ब्राह्मणको शिष्य बनाये तो बात विपरीत हो जायगी, इसलिये चलिये, एकान्तमें हम आपको ब्रह्मका ज्ञान करायेंगे। ‘ यों कहकर वे बालाकिको एक सोये हुए व्यक्तिके पास ले गये और उसे ‘ओ ब्रह्मन्! ओ पाण्डरवासा ! ओ सोम राजा।’ इत्यादि सम्बोधनोंसे पुकारने लगे। पर वह पुरुष चुपचाप सोया ही रहा। तब उसे दोनों हाथोंसे दबाकर जगाया। अब वह जगा। तदनन्तर राजाने बालाकिसे पूछा- ‘बालाके! यह जो विज्ञानमय पुरुष है, जब सोया हुआ था तब कहाँ था? और अब यह कहाँसे आ गया ?” किंतु गार्ग्य यह कुछ न जान सके।
अजातशत्रुने कहा- ‘हिता नामसे प्रसिद्ध बहुत सी नाड़ियाँ हैं ये हृदयकमलसे सम्बद्ध हैं और वहींसे निकलकर सम्पूर्ण शरीरमें फैली हुई हैं। यह पुरुष सोते समय उन्हीं नाड़ियोंमें स्थित रहता है। जैसेक्षुरधानमें छूरा रखा रहता है, उसी प्रकार शरीरान्तर्गत हृदयकमलमें इस परम पुरुष परमात्माकी उपलब्धि होती है। वाक्, चक्षु, श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ अनुगत सेवककी भाँति उसका अनुसरण करती हैं। इसके सो जानेपर ये सारी इन्द्रियाँ प्राणमें तथा प्राण इस आत्मामें लीन – एकीभावको प्राप्त हो जाता है।
‘यही आत्मतत्त्व है। जबतक इन्द्रको इस आत्मतत्त्वका ज्ञान नहीं था, तबतक वे असुरोंसे हारते रहे। किंतु जबवे इस रहस्यको जान गये, तब असुरोंको पराजितकर सम्पूर्ण देवताओंमें श्रेष्ठ हो गये, स्वर्गका राज्य तथा त्रिभुवनका आधिपत्य पा गये। इसी प्रकार जो विद्वान् इस आत्मतत्त्वको जान लेता है, उसके सारे पाप ताप नष्ट हो जाते हैं तथा उसे स्वाराज्य, प्रभुत्व तथा श्रेष्ठत्वकी प्राप्ति होती है।
-जा0 श0
(बृहदारण्यक0)
(कौषीतकिब्राह्मणोपनिषद्)

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