प्रलोभनोंपर विजय प्राप्त करो

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चम्पा नगरीके व्यापारी माकंदीके पुत्र जिनपालित और जिनरक्षित बार-बार जलयानसे समुद्री यात्रा करते थे। समुद्री व्यापारमें उन्होंने पर्याप्त धन एकत्र कर लिया था। ऐसी ही एक यात्रामें समुद्रमें अंधड़ आ गया, उनका जलयान लहरोंके चपेटेमें आकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। पता नहीं लगा कि मल्लाह और सेवकोंका हुआ किंतु वे दोनों भाई लकड़ी एक पटरेको पकड़कर समुद्रपर तैरते हुए एक द्वीपपर जा पहुँचे।

जिस द्वीपपर जिऩपालित और जिनरक्षित बहते हुए पहुँचे थे, उसपर एक यक्षिणीका भवन था। ये दोनों भाई द्वीपपर पहुँचकर कुछ समयतक विश्राम करते रहे। थकावट दूर होनेपर वहाँके सरोवरमें स्नान करके फल- कन्द आदि ढूँढने निकले। उसी समय यक्षिणीने उन्हें देखा। वह उन दोनोंको अपने भवनमें ले गयी।

उस यक्षिणीके भवनमें दोनों भाइयोंको कोई कष्ट नहीं था। उनका भरपूर स्वागत सत्कार होता था। उन्हें सब सुखोपभोग उपलब्ध थे। किंतु यक्षिणी उन्हें उस डीपसे बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। थोड़े ही समयमें दोनों भाई अपने नगर जाकर अपने सम्बन्धियोंसे मिलनेको उत्सुक हो उठे। वे वहाँसे निकल भागनेका अवसर ढूँढ़ने लगे।

समय-समयपर वे दोनों उस द्वीपमें घूमने निकलते थे। द्वीपके वन्य प्रदेशमें घूमते समय उन्हें एक व्यक्ति मिला जो शूलीपर चढ़ा दिया गया था। वह मृत्युके निकट पहुँच गया था। उससे ज्ञात हुआ कि वह भी व्यापारों है। समुद्रमें जलयानके डूबनेसे वह भी तैरता हुआ इस द्वीपपर पहुँचा था और यक्षिणीने उसका भी पहिले पर्याप्त सत्कार किया था। किंतु कुछ ही दिनोंबाद साधारण अपराधपर रुष्ट होकर यक्षिणीने उसे शूलीपर लटका दिया। उसी पुरुषने बताया- “इस द्वीपपर कुछ निश्चित तिथियोंमें एक यक्ष घोड़ेका रूप धारण करके आता है और पुकारता है-‘मैं किसे पार उतारूँ ?’ उसके पास जाकर प्रार्थना करनेसे वह समुद्र पार उतार देता है। परंतु उसका नियम है कि उसकी पीठपर बैठा व्यक्ति यदि पीछे दौड़ती यक्षिणीके रूप एवं हाव-भावपर आसक्त हो जाय तो वह यक्ष उस व्यक्तिको तत्काल समुद्रमें फेंक देता है।”

दोनों भाइयोंने उस व्यक्तिको धन्यवाद दिया। निश्चित तिथिपर यक्ष आया। संयोगवश यक्षिणी उस समय कहीं बाहर गयी हुई थी। दोनों भाई उस अश्वरूपधारी यक्षके पास गये और उसने इनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। परंतु जैसे ही दोनों भाई उसकी पीठपर बैठकर समुद्र पार होने लगे, यक्षिणी आ पहुँची। | उसने बड़ा सुन्दर रूप बनाया था। वह दोनोंको पुकारने लगी- ‘प्यारे ! तुम मुझे छोड़कर कहाँ जा रहे हो ? तुम तो मुझे बहुत प्यार करते थे। ‘

दोनोंमेंसे जिनरक्षितका मन विचलित होने लगा। जिनपालितने कहा- ‘भैया! प्रलोभनमें मत पड़ो।’ किंतु वह यक्षिणी अब जिनरक्षितको ही नाना प्रकारसे सम्बोधित करके प्रेमदर्शन कर रही थी। उससे प्रभावित होकर जैसे ही जिनरक्षितने यक्षिणीकी ओर देखा, उस अश्वरूपधारी यक्षने उसे अपनी पीठसे समुद्रमें फेंक दिया और उस क्रूर यक्षिणीने उसे मार डाला। जिनपालितपर अपनी बातोंका कोई प्रभाव न पड़ते देखकर वह लौट गयी। प्रलोभनजयी जिनपालितके ही भाग्यमें अपनी मातृभूमि और परिवारका दर्शन था।

चम्पा नगरीके व्यापारी माकंदीके पुत्र जिनपालित और जिनरक्षित बार-बार जलयानसे समुद्री यात्रा करते थे। समुद्री व्यापारमें उन्होंने पर्याप्त धन एकत्र कर लिया था। ऐसी ही एक यात्रामें समुद्रमें अंधड़ आ गया, उनका जलयान लहरोंके चपेटेमें आकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। पता नहीं लगा कि मल्लाह और सेवकोंका हुआ किंतु वे दोनों भाई लकड़ी एक पटरेको पकड़कर समुद्रपर तैरते हुए एक द्वीपपर जा पहुँचे।
जिस द्वीपपर जिऩपालित और जिनरक्षित बहते हुए पहुँचे थे, उसपर एक यक्षिणीका भवन था। ये दोनों भाई द्वीपपर पहुँचकर कुछ समयतक विश्राम करते रहे। थकावट दूर होनेपर वहाँके सरोवरमें स्नान करके फल- कन्द आदि ढूँढने निकले। उसी समय यक्षिणीने उन्हें देखा। वह उन दोनोंको अपने भवनमें ले गयी।
उस यक्षिणीके भवनमें दोनों भाइयोंको कोई कष्ट नहीं था। उनका भरपूर स्वागत सत्कार होता था। उन्हें सब सुखोपभोग उपलब्ध थे। किंतु यक्षिणी उन्हें उस डीपसे बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। थोड़े ही समयमें दोनों भाई अपने नगर जाकर अपने सम्बन्धियोंसे मिलनेको उत्सुक हो उठे। वे वहाँसे निकल भागनेका अवसर ढूँढ़ने लगे।
समय-समयपर वे दोनों उस द्वीपमें घूमने निकलते थे। द्वीपके वन्य प्रदेशमें घूमते समय उन्हें एक व्यक्ति मिला जो शूलीपर चढ़ा दिया गया था। वह मृत्युके निकट पहुँच गया था। उससे ज्ञात हुआ कि वह भी व्यापारों है। समुद्रमें जलयानके डूबनेसे वह भी तैरता हुआ इस द्वीपपर पहुँचा था और यक्षिणीने उसका भी पहिले पर्याप्त सत्कार किया था। किंतु कुछ ही दिनोंबाद साधारण अपराधपर रुष्ट होकर यक्षिणीने उसे शूलीपर लटका दिया। उसी पुरुषने बताया- “इस द्वीपपर कुछ निश्चित तिथियोंमें एक यक्ष घोड़ेका रूप धारण करके आता है और पुकारता है-‘मैं किसे पार उतारूँ ?’ उसके पास जाकर प्रार्थना करनेसे वह समुद्र पार उतार देता है। परंतु उसका नियम है कि उसकी पीठपर बैठा व्यक्ति यदि पीछे दौड़ती यक्षिणीके रूप एवं हाव-भावपर आसक्त हो जाय तो वह यक्ष उस व्यक्तिको तत्काल समुद्रमें फेंक देता है।”
दोनों भाइयोंने उस व्यक्तिको धन्यवाद दिया। निश्चित तिथिपर यक्ष आया। संयोगवश यक्षिणी उस समय कहीं बाहर गयी हुई थी। दोनों भाई उस अश्वरूपधारी यक्षके पास गये और उसने इनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। परंतु जैसे ही दोनों भाई उसकी पीठपर बैठकर समुद्र पार होने लगे, यक्षिणी आ पहुँची। | उसने बड़ा सुन्दर रूप बनाया था। वह दोनोंको पुकारने लगी- ‘प्यारे ! तुम मुझे छोड़कर कहाँ जा रहे हो ? तुम तो मुझे बहुत प्यार करते थे। ‘
दोनोंमेंसे जिनरक्षितका मन विचलित होने लगा। जिनपालितने कहा- ‘भैया! प्रलोभनमें मत पड़ो।’ किंतु वह यक्षिणी अब जिनरक्षितको ही नाना प्रकारसे सम्बोधित करके प्रेमदर्शन कर रही थी। उससे प्रभावित होकर जैसे ही जिनरक्षितने यक्षिणीकी ओर देखा, उस अश्वरूपधारी यक्षने उसे अपनी पीठसे समुद्रमें फेंक दिया और उस क्रूर यक्षिणीने उसे मार डाला। जिनपालितपर अपनी बातोंका कोई प्रभाव न पड़ते देखकर वह लौट गयी। प्रलोभनजयी जिनपालितके ही भाग्यमें अपनी मातृभूमि और परिवारका दर्शन था।

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