कबीर जी के जीवन का एक प्रसंग है। संत कबीर अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए कपड़े बुना करते थे। एक बार दोपहर के समय जब कबीर दास जी कपड़े बुनने में लीन थे तभी उनके द्वार पर एक भिखारी आया। भिखारी बड़ा ही भूखा प्यासा मालूम होता था।भिखारी को देखकर कबीर जी को बड़ी दया आयी और उन्होंने उसे ठंडा पानी पिलाया।
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भिखारी कई दिन से भूखा था इसलिए उसने कबीर जी से कुछ खाने को माँगा। उस समय कबीर दास जी के पास खाने की कोई सामग्री नहीं थी।कुछ सोचकर कबीर जी ने कहा कि मित्र मेरे पास तुमको खिलाने को भोजन तो नहीं है, तुम मेरा ये ऊन का गोला ले जाओ और इसे बेचकर अपने लिए भोजन का इंतजाम कर लेना।
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भिखारी ऊन का गोला लेकर चला गया।
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रास्ते में उसे एक तालाब दिखा, भिखारी ने ऊन का गोला निकाल कर उसका एक जाल बनाया और तालाब से मछली पकड़ने की कोशिश करने लगा। संयोग से उस तालाब काफी सारी मछलियां थीं अतः उसके जाल में कई मछलियां फंस गयी। अब तो वो भिखारी शाम तक मछली पकड़ता रहा।काफी मछली इकट्ठी हो जाने पर उन्हें बाजार में बेच आया।
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अब वो भिखारी रोजाना तालाब में जाता और ऊन के जाल से खूब मछलियां पकड़ता। धीरे धीरे उसने मछली पकड़ने को ही अपना धंधा बना लिया। अब वो कई अच्छे किस्म के जाल भी खरीद लाया। ऐसा करते करते एक दिन वो काफी अमीर व्यक्ति बन गया।
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एक दिन उस भिखारी ने सोचा कि क्यों ना संत कबीर जी से मिलने जाया जाये और उनका धन्यवाद दिया जाये क्योंकि आज मैं उन्हीं की वजह से अमीर बन पाया हूँ।जब वो भिखारी कबीर जी के पास गया तो अपने साथ सोने, चाँदी और रत्न लेकर आया।
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सभी सोना, चाँदी और रत्न उसने कबीर जी के चरणों में लाकर रख दिए लेकिन संत कबीर उस भिखारी को पहचान ना पाये। तब उस भिखारी ने सारी पुरानी बात याद दिलाई कि आपके ऊन के गोले की वजह से मैं आज इतना अमीर हो पाया।
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उसकी पूरी बात सुनकर संत कबीर जी बड़े दुःखी हुए और बोले कि तुमने इतनी सारी मछलियों से उनका जीवन छीनकर पाप किया और क्योंकि ये सब मेरे कारण हुआ है, इसलिये तुम्हारे आधे पाप का भागीदार मैं भी बन गया हूँ ।
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संत कबीर जी ने भिखारी द्वारा दिया गया सोना चाँदी और रत्न को वापस लौटा दिया और भिखारी को मालिक की बन्दगी करते हुए अपने किये कर्मों का पश्चाताप करने का उपदेश दिया ।कहने का भाव ये है कि असहाय लोगों की मदद जरूर करें लेकिन दान सोच समझ करें,
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अगर आपका दान किसी भले के लिए है और उस दान को सतकर्म में लगाया जा रहा है तो आपका दान सार्थक है ।
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लेकिन अगर आपके दान का कोई दुरूपयोग करके उन्हें बुरे कर्मों में लगा कर पाप करते जा रहा है तो याद रखना उसके पाप के भागीदार आप भी होंगे जी।
दान का पाप
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कबीर जी के जीवन का एक प्रसंग है। संत कबीर अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए कपड़े बुना करते थे। एक बार दोपहर के समय जब कबीर दास जी कपड़े बुनने में लीन थे तभी उनके द्वार पर एक भिखारी आया। भिखारी बड़ा ही भूखा प्यासा मालूम होता था।भिखारी को देखकर कबीर जी को बड़ी दया आयी और उन्होंने उसे ठंडा पानी पिलाया।
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भिखारी कई दिन से भूखा था इसलिए उसने कबीर जी से कुछ खाने को माँगा। उस समय कबीर दास जी के पास खाने की कोई सामग्री नहीं थी।कुछ सोचकर कबीर जी ने कहा कि मित्र मेरे पास तुमको खिलाने को भोजन तो नहीं है, तुम मेरा ये ऊन का गोला ले जाओ और इसे बेचकर अपने लिए भोजन का इंतजाम कर लेना।
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भिखारी ऊन का गोला लेकर चला गया।
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रास्ते में उसे एक तालाब दिखा, भिखारी ने ऊन का गोला निकाल कर उसका एक जाल बनाया और तालाब से मछली पकड़ने की कोशिश करने लगा। संयोग से उस तालाब काफी सारी मछलियां थीं अतः उसके जाल में कई मछलियां फंस गयी। अब तो वो भिखारी शाम तक मछली पकड़ता रहा।काफी मछली इकट्ठी हो जाने पर उन्हें बाजार में बेच आया।
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अब वो भिखारी रोजाना तालाब में जाता और ऊन के जाल से खूब मछलियां पकड़ता। धीरे धीरे उसने मछली पकड़ने को ही अपना धंधा बना लिया। अब वो कई अच्छे किस्म के जाल भी खरीद लाया। ऐसा करते करते एक दिन वो काफी अमीर व्यक्ति बन गया।
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एक दिन उस भिखारी ने सोचा कि क्यों ना संत कबीर जी से मिलने जाया जाये और उनका धन्यवाद दिया जाये क्योंकि आज मैं उन्हीं की वजह से अमीर बन पाया हूँ।जब वो भिखारी कबीर जी के पास गया तो अपने साथ सोने, चाँदी और रत्न लेकर आया।
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सभी सोना, चाँदी और रत्न उसने कबीर जी के चरणों में लाकर रख दिए लेकिन संत कबीर उस भिखारी को पहचान ना पाये। तब उस भिखारी ने सारी पुरानी बात याद दिलाई कि आपके ऊन के गोले की वजह से मैं आज इतना अमीर हो पाया।
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उसकी पूरी बात सुनकर संत कबीर जी बड़े दुःखी हुए और बोले कि तुमने इतनी सारी मछलियों से उनका जीवन छीनकर पाप किया और क्योंकि ये सब मेरे कारण हुआ है, इसलिये तुम्हारे आधे पाप का भागीदार मैं भी बन गया हूँ ।
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संत कबीर जी ने भिखारी द्वारा दिया गया सोना चाँदी और रत्न को वापस लौटा दिया और भिखारी को मालिक की बन्दगी करते हुए अपने किये कर्मों का पश्चाताप करने का उपदेश दिया ।कहने का भाव ये है कि असहाय लोगों की मदद जरूर करें लेकिन दान सोच समझ करें,
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अगर आपका दान किसी भले के लिए है और उस दान को सतकर्म में लगाया जा रहा है तो आपका दान सार्थक है ।
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लेकिन अगर आपके दान का कोई दुरूपयोग करके उन्हें बुरे कर्मों में लगा कर पाप करते जा रहा है तो याद रखना उसके पाप के भागीदार आप भी होंगे जी।
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