एक वैष्णव वृन्दावन जा रहा था। रास्तेमें एक जगह संध्या हो गयी। उसने गाँवमें ठहरना चाहा, पर वह सिवा वैष्णवके और किसीके घर ठहरना नहीं चाहता था। उसे पता लगा-बगलके गाँवमें सभी वैष्णव रहते हैं। उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने गाँवमें जाकर एक गृहस्थीसे पूछा- ‘भाई! मैं वैष्णव हूँ। सुना है इस गाँवमें सभी वैष्णव हैं। मैं रातभर ठहरना चाहता हूँ।’ गृहस्थने कहा—’महाराज! मैं तो नराधम हूँ, मेरे सिवा इस गाँवमें और सभी वैष्णव हैं। हाँ, आप कृपा करके मुझे आतिथ्य करनेका सुअवसर दें तो मैं अपनेको धन्य समझँगा।’ उसने सोचा, मुझे तो वैष्णवके घर ठहरना हैं। इसलिये वह आगे बढ़ गया। दूसरेदरवाजेपर जाकर पूछा तो उसने भी अपने यहाँ ठहरनेके लिये तो बहुत नम्रताके साथ प्रार्थना की; पर कहा यही कि ‘महाराज! मैं तो अत्यन्त नीच हूँ। मुझे छोड़कर यहाँ अन्य सभी वैष्णव हैं।’ वह गाँवभरमें भटका; परंतु किसीने भी अपनेको वैष्णव नहीं बताया, वरं सभीने नम्रतापूर्वक अपनेको अत्यन्त दीन-हीन बतलाया। गाँवभरकी ऐसी विनय देखकर उसकी भ्रान्ति दूर हुई । उसने समझा ‘वैष्णवताका अभिमान करनेसे ही कोई वैष्णव नहीं होता। वैष्णव तो वही है जो भगवान् विष्णुकी भाँति अत्यन्त विनम्र है।’ उसकी अन्तर्दृष्टि खुल गयी और उसने अपनेको सबसे नीचा समझकर एक वैष्णवके घरमें निवास किया।
A Vaishnava was going to Vrindavan. It was evening at one place on the way. He wanted to stay in the village, but he did not want to stay in anyone else’s house except Vaishnava. He came to know that all Vaishnavs live in the neighboring village. He was very happy. He went to the village and asked a householder – ‘Brother! I am Vaishnava. I have heard that everyone in this village is Vaishnav. I want to stay overnight.’ The householder said – ‘ Maharaj! I am a Naradham, except me everyone else in this village is Vaishnav. Yes, if you kindly give me an opportunity to host me, I will consider myself blessed.’ He thought, I want to stay at Vaishnav’s house. That’s why he went ahead. When he went to the other door and asked, he too humbly prayed to stay at his place; But said only that ‘ Maharaj! I am very low. Everyone here is Vaishnav except me. He wandered all over the village; But no one called himself a Vaishnava, rather everyone humbly described himself as very poor. Seeing such humility of the whole village, his confusion was dispelled. He understood that ‘no one becomes Vaishnavism just by being proud of Vaishnavism. Vaishnava is the one who is very humble like Lord Vishnu.’ His insight opened and he resided in the house of a Vaishnava considering himself to be the lowest of all.