राजा दशरथ को कोई पुत्र नहीं था इसलिए वे बहुत चिन्तित थे। उन्होंने गुरु वशिष्ठ जी से अपनी व्यथा सुनाई। वशिष्ठ जी ने श्रृंगी ऋषि को बुलाया। श्रृंगी ऋषि ने पुत्र कामेष्टी यज्ञ किया। इस यज्ञ से अग्निदेव हविष्य (खीर) लेकर प्रकट हुए और राजा को हविष्य सौंप कर कहा कि यथाभाग रानियों में बाँट दो। इस हविष्य के खाने से रानियों को पुत्र उत्पन्न होगा। राजा ने इस हविष्य का दो बराबर भाग किया। एक भाग (अर्द्ध भाग) कौशल्या को दिया। बचे हुए एक भाग को दो भाग किया और उसमें से एक भाग कैकेई को दिया। शेष जो एक भाग बचा उसे फिर दो भाग किया और एक भाग कौशल्या और दूसरा भाग कैकेई को देकर कहा कि आप दोनों इस हविष्य को अपने हाथों से सुमित्रा को सौंप दें। दोनों रानियों ने इसे सुमित्रा को दे दिया। इस हविष्य को खाने से तीनों रानियाँ गर्भवती हुईं और नौ मास बितने के बाद वह शुभ समय आया। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि और श्रीहरि का प्रिय अभिजित मुहुर्त में प्रभु श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से प्राकट्य हुआ और फिर उसी दिन कैकेई के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। सुमित्रा को हविष्य के दो भाग मिले थे इसलिये सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
कि आगे माई मुनि जी ने जज्ञ कराई ,
जनमे चारो भाई ए माई ।
लेइ हविष्य अगिन देव प्रगटे ,
अवध नरेश हृदय अति हरषे ,
कि आगे माई बाँटेहु हविष रानिन्ह नृप जाई ।
जनमे चारो भाई ए माई ।
कि आगे माई मुनि जी ने………..
अर्द्ध भाग कौशल्यहिं दिन्हीं ,
शेष अर्द्ध दुइ भागहिं किन्हीं ,
कि आगे माई एक भाग कैकेई धराई ।
जनमे चारो भाई ए माई ।
कि आगे माई मुनि जी ने………..
पुनि दुइ भाग शेष हीं किन्हीं ,
कौशल्या कैकेइ कहुँ दिन्हीं ,
कि आगे माई देहु सुमित्रहिं जाई ।
जनमे चारो भाई ए माई ।
कि आगे माई मुनि जी ने………..
एहि बिधि सकल रानि गर्भाई ,
सकल लोक सुख सम्पति छाई ,
कि आगे माई समय सुअवसर आई ,
जनमे चारो भाई ए माई ।
कि आगे माई मुनि जी ने………..
नौमी तिथि मधुमास पुनीता ,
शुक्ल पक्ष अभिजित हरिप्रीता ,
कि आगे माई प्रगटे श्री रघुराई ।
जनमे चारो भाई ए माई ।
कि आगे माई मुनि जी ने………..