सीता नवमी व्रत कथा। Sita Navami Vrat Katha
Seeta Jayanti 2023। सीता जी प्रेरक प्रसंग व कहानियां
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Sita Navami
Sita Navami 2023 : प्रभु श्री राम की “प्रिय” सीता जी को जानकी नाम से भी पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म में “Sita Navami” के पावन दिवस का बड़ा महत्व है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन माता सीता का जन्म हुआ था। इस शुभ दिवस को जानकी जयंती और जानकी नवमी भी कहा जाता है। सीता माता को देवी लक्ष्मी का अवतार कहा गया है। द्वापर युग में श्री राम की पत्नी बनी सीता नें अपने जीवनकाल में बहुत कष्ट उठाए।
राजा जनक की लाडली पुत्री सीता को विवाह के कुछ ही समय बाद 14 वर्ष का वनवास सहना पड़ा, मंथरा के बहकावे में आ कर दशरथ राजा की एक रानी “कैकई” अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाना चाहती थी, इसीलिए उसने दशरथ से वचन के नाम पर राम के लिए वनवास मांगा था, तब देवी सीता के पास 14 साल अपने पिता के पास चले जाने का अवसर था लेकिन उन्होंने पतिव्रता नारी का उदहारण पेश करते हुए श्री राम के साथ वन जाना चुना, वनवास के दौरान अनेक कष्ट सहे, फिर रावण द्वारा उनका हरण और अशोक वाटिका में भयंकर राक्षसियों के बीच रहना, फिर राम-रावण युद्ध के बाद अयोध्या लौट कर श्री राम द्वारा त्यागे जाना, जीवनभर इतने कष्ट सहने के बाद भी धैर्य और समर्पण का परिचय देना, यह केवल माता सीता ही कर सकती थीं।
लव-कुश के लालन-पालन के बाद जब उन्हें राम को सौपा गया और माता सीता धरती में समाने लगीं, यह करुण दृश्य किसी के भी आँखों में आंसू ला सकता है। उस वक्त धीर वीर श्री राम भी अपना आपा खो बैठे थे और सीता वापिस न लौटाने पर समस्त श्रृष्टि का विनाश कर देने पर उतारू हो गए थे। इन्ही माता सीता, के जीवन से जुड़ी :
कुछ रोचक कथाएँ
उनके जन्म का तात्पर्य,
सीता नवमी व्रत महात्मय
पूजा विधि और
फल प्राप्ति से जुड़ी जानकारी प्रस्तुत है।
सीता नवमी 2023 (Sita Jayanti 2023) मुहूर्त – समय
तारीख : 29 अप्रैल 2023
तिथि प्रारंभ : 28 अप्रैल 2023, 04:01 PM
तिथि समापन : 29 अप्रैल 2023, 06:22 PM
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सीता नवमी पूजा के लाभ
इस दिन जानकी माता की पूजा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। जिन लोगों का जीवन कष्ट में बीत रहा है उन्हें अपनी पीड़ा से मुक्ति मिलती है। जानकी माता को त्याग और समर्पण की देवी भी कहा जाता है इस लिए उनकी पूजा करने वाले पात्र में भी यह दैवीय गुण उतर आते हैं। जब किसी व्यक्ति में परोपकार, त्याग, सेवाभाव, प्रेम, समर्पर्ण, सहानभूति, विश्वास और सद्भाव का संचार होता है तो कलेश, इर्षा, घमंड, नफरत, द्वेष, रोष और अविश्वास जैसे दूषण समाप्त हो जाते हैं। फिर उसकी समृद्धि और सुख शांति का दौर आने लगता है। इसके आलावा मानसिक व्यथा से पीड़ित पात्र और असाध्य रोगों से त्रस्त व्यक्ति को भी सीता नवमी व्रत से राहत और मुक्ति मिलती है।
सीता जयंती पूजन विधि
सीता जयंती के पावन दिवस पर पूजा और व्रत करने वाले जातक सुबह के समय ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर लें, उसके पश्चात सच्चे मन से व्रत और पूजा का संकल्प करें । इसके बाद एक चौकी पर साफ सुतरा लाल कपड़ा बिछा लें, फिर माता सीता और भगवान श्री राम की तस्वीर या मूर्ति उस पर बिराजमान कर दें । इसके बाद पूरी जगह को गंगजल के छिडकाव से शुद्ध करें।
अब देवी सीता का श्रृंगार करके सुहाग का सामान अर्पित करें । इसके बाद रोली, माला, फूल, चावल, धूप, दीप, फल व मिष्ठान अर्पित करें। माता सीता को प्रसन्न करने के लिए पूजा विधि में पीले रंग के फूल का इस्तमाल करना चाहिए। तिल के तेल या गाय के घी से दीपक जलाएं और फिर माता की आरती उतारें। इसके बाद 108 बार माता सीता के मंत्रों का जप करें और सीता चालीसा का पाठ करें। शाम के समय भी माता सीता की पूजा करें और दान जरूर करें।
देवी के सीता जन्म की कथा
महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण अनुसार सीता जनक राजा को जमीन के नीचे से मिली थीं। कथा अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया, ऋषियों नें जनक राजा को यज्ञ करने की सलाह दी, ताकि वर्षा हो और प्रजा का कष्ट दूर हो जाए। यज्ञ समाप्ति के उपरांत जनक राजा नें अपने हाथों से हल जोतने का निश्चय किया, उसी समय उन्हें जमीन में धसे एक पात्र से एक सुंदर कन्या मिली, जनक राजा नें उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया।
उस समय जनक राजा को और कोई संतान नहीं थी, हल का एक हिस्सा जिसे सित कहते हैं, उसी से वह पात्र टकराया जिसमें बालिका सीता थीं, इस लिए उनका नाम “सीता” रखा गया। वह जनक पुत्री बनी इस लिए “जानकी” कही गयीं।
देवी सीता का जन्म Sita Navami katha
सीता माता के नाम “वैदेही” के पीछे की रोचक कथा
जनक राजा की पुत्री सीता है यह बात सब जानते हैं, लेकिन उन्हें वैदेही किस कारण कहते हैं यह बात सब नहीं जानते। दरअसल राजा जनक का नाम मिथि अथवा विदेह रखा गया था। जिसकी कथा इस प्रकार है…
एक बार महा यज्ञ अनुष्ठान के लिए उद्दत नरेश निमि ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को आमंत्रित किया। लेकिन ब्रह्मर्षि इस निमंत्रण को अनदेखा कर इंद्र का यज्ञ संपन्न करने के लिए चले गए। जिस पर निमि नें मृगु आदि मुनियों की मदद ले कर अपना यज्ञ पूरा किया।
कुल 500 वर्षों के पश्चात ब्रह्मर्षि वशिष्ठ इंद्र लोक से वापिस लौटे, तब निमि के इस कृत्य पर वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने निमि को विदेह अर्थात मृत हो जाने का श्राप दे दिया। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के इस भयानक शाप का असर हुआ तो प्रजा में अराजकता फैलने लगी। इस विकट समस्या के समाधान के लिए ऋषियों ने मिल कर निमि के श्रापित मृत शरीर का मंथन किया। उसी मंथन से एक शिशु उत्पन्न हुआ जो विदेह कहा गया, बाद में उन्ही का नाम राजा जनक हुआ। इस तरह जनक राजा (विदेह) की पुत्री “वैदेही” कही गई।
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सीता नवमी व्रत की महिमा दर्शाती लघु कथा
मारवाड़ राज्य में देवदत्त नाम का एक प्रामाणिक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। उसकी भारिया शोभना अति सुंदर थी, ब्राह्मण जब आजीविका चलाने के लिए भिक्षा मांगने दूर देश जाता तो उसकी पत्नी गलत संगत में फस गई, वह व्यभिचारिणी बन गई। जब उसका परदा फाश हुआ तो उसने दुष्ट के साथ मिल कर पूरे गाँव को जलवा दिया। इस तरह ब्राह्मणी ने अपना सारा जीवन पाप कर्मों में लिप्त हो कर बिताया।
पति से धोखा किया इस लिए अगले जन्म वह चांडाल के घर जन्मी। निर्दोष गाँव वालों को कष्ट दिया इस लिए उसे भीषण कुष्ठ रोग हुआ। पूर्व जन्म में व्यभिचार आचरण के फल स्वरूप वह अंधी भी हो गई। इस तरह वह दर दर भटकने और असह्य कष्ट उठाने को मजबूर हुईं।
एक दिन वह कैलाशपूरी पहुंची। भाग्य से यह दिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी का था। जानकी जयंती के दिन वह हाथ फैला कर भोजन की भीख मांगने लगी।
गिरते पड़ते वह कनक भवन के पास स्थित हज़ार पुष्प जड़ित स्तंभों से होती हुई अंदर आ पहुंची, वह बार कुछ खाने को मांग रही थी।
वहां मौजूद एक श्रद्धालु भक्त ने उसे कहा, आज भोजन अन्न दान से पाप लगता है, कल भर पेट प्रसाद मिलेगा। यह बोल कर उसने दया करते हुए उसे तुलसी का पान और थोड़ा जल दिया। कुछ समय बाद भूख की मारी वह पापिन मृत्यु को प्राप्त हुई। लेकिन अनजाने में ही उससे सीता नवमी का व्रत पूर्ण हो गया।
जिसके फल स्वरूप वह पाप मुक्त हुई, उसे स्वर्गलोक में रहने को मिला। फिर अगले जन्म वह कामरूप देश के महाराजा जय सिंह की रानी बनी। इस तरह माता सीता की असीम कृपा से उसके समस्त रोग दोष और पापों का नाश हुआ और सद्गति मिली।
ब्राह्मण ब्राह्मणी कथा
Sita Navami Unknown Facts Hindi
सीता माता के तीन रूप : क्रिया शक्ति, इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति ।
धरा (धरती) से उत्पन्न होने के कारण देवी सीता को “भूमात्मजा” भी कहा जाता है।
अग्नि, सूर्य और चंद्रमाँ का प्रकाश माता सीता का स्वरूप कहा जाता है
रावण की कैद में सीता माता की परछाई कैद थी, असल सीता माता अग्नि देव के पास सुरक्षित थीं।
वनवास के समय ऋषि अत्री के आश्रम में सीता माता को दिव्य वस्त्र सती अनसूइया ने प्रदान किये थे जो न फटते और ना ही मैले होते थे।
रावण द्वारा सीता हरण के बाद उनकी खोज में गए वानर राज सुग्रीब और उनके दल को एक गठरी में बंधे सीता माता के आभूषण मिले थे।
रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जीवनी
रावण द्वारा वेदवती का अपमान
हिमालय की यात्रा के दौरान लंका नरेश रावण की दृष्टि वेदवती पर पड़ी, वह अत्यंत सुदर थी, फिर भी वह अविवाहित थी। रावण ने उससे इस बात का रहस्य पुछा तब वेदवती ने कहा, मेरे पिता ब्रह्मऋषि कुशध्वज चाहते थे की मेरा विवाह त्रिलोक के स्वामी विष्णु से हो, यह बात जान कर एक राक्षस क्रोधित हुआ, वह मुझसे विवाह करना चाहता था। इसी लिए उसने मेरे माता-पिता का वध कर दिया। इसी लिए मैंने अब तपस्या का रास्ता चुना है।
यह कहानी सुन कर पहले तो रावण नें वेदवती को बहलना फुसलाना शुरू किया, लेकिन वेदवती जब नहीं मानी तो उसने उसके बाल पकड़ लिए, उसी क्षण वेदवती ने अपने बाल काट लिए और शाप देते हुए कहा, की तूने इस वन में मेरा अपमान किया है, मैं सतयुग के बाद त्रेता युग में फिर आऊंगी और तेरे अंत का कारण बनूंगी।
इस तरह त्रेता युग में फिर रावण सीता के रूप में जन्मी वेदवती पर मोहित हुआ, छल से उसका हरण किया और विष्णु भगवान के रामा अवतार के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ।
देवी सीता और श्री राम का वियोग : तोते के श्राप की कहानी
बालिका सीता एकबार सहेलियों संग बगीचे में खेल रही थीं। वहीँ पेड़ पर नर-मादा तोते का जोड़ा सीता-राम के भविष्य की बात कर रहे थे, जो उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम से सुनी थी। उत्सुक बालिका सीता मादा तोते से अपने और राम के बारे में और बातें जानना चाहती थीं, लेकिन तोते के जोड़े नें उनके साथ महल जाने से मना किया, उन्होंने कहा हमें उन्मुक्त गगन में रहना पसंद आता है।
इस बात से नाराज बालिका सीता ने गर्भवती मादा तोता को जबरन अपने पास रख लिया, और नर तोता को आजाद कर दिया। ताकि वह अपने भविष्य के बारे में मादा तोता से और बातें जान सके। नर तोता अपनी साथी के वियोग में मर गया। इस बात से दुखी मादा तोता ने बालिका सीता को शाप दिया की, वह बोली… जिस तरह तुमने मुझे इस तोते से दूर किया, तुम्हे भी गर्भावस्था के समय पति वियोग सहना होगा।
बताया जाता है कि अगले जन्म में तोता वही धोबी था, जिसने माता सीता के चरित्र पर उंगली उठाई थी, जिसके बाद भगवान राम ने सीता का गर्भावस्था के दौरान त्याग कर दिया। तब माता सीता महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंची और वहां उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया।
Sita Navmi Tota Kahani
अक्षय तृतीया का महत्त्व कथा व व्रत विधि
अद्भुत रामायण अनुसार रावण मंदोदरी की पुत्री सीता
अद्भुत रामायण अनुसार रावण नें कहा, जब भूल वश में अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करु तब मेरी मृत्यु आए। इसी ग्रंथ में कहा गया है कि एक समय गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री स्वरूप में पाने के लिए एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चार के साथ दूध की बूंदे प्रवाहित किया करते थे। एक दिन वहां राक्षस राज रावण आया और उसने वहां सभी मुनियों को मार कर उनका थोड़ा थोड़ा रक्त उस कलश में भर लिया, फिर वह उसे ले कर अपनी रानी मंदोदरी के पास पहुंचा, उसने कहा, इसमें बहुत तीक्षण विष है, इसे संभाल कर रखना।
अपने दुराचारी पति की उपेक्षा से त्रस्त मंदोदरी ने अकेले में वह सारा रक्त विष जान कर पी लिया। इसी से वह गर्भवती हो गई। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे, रावण को क्या जवाब दे।
जब रावण सह्याद्रि पर्वत पर गया तो गर्भवती मंदोदरी तीर्थ यात्रा को निकल गई। वह कुरु क्षेत्र पहुंची जहां उसने अपने गर्भ को एक घड़े में रख दिया। और घड़ा ज़मीन में दफ़न कर दिया। उसके बाद वह सरस्वती नदी में स्नान कर के वापिस लंका नगरी लौट आईं।
कहा जाता है कि वही घड़ा, जनक राजा को हल चलाते समय मिला, जिसमें से सीता माता प्रकट हुईं, और रावण की कही बात अनुसार वह उसके मृत्यु का कारण भी बनी।
सीता नवमी के दिन सुख शांति के उपाय
विवाह : शादी संबंध में विघ्न आ रहे हैं तो श्री राम और सीता दोनों की पूजा करनी चाहिए, ऐसा करने से यह विघ्न अति शिग्र समाप्त होगा।
इच्छा : अगर किसी अच्छे काम की आस है और वह किसी भी तरीके से परिपूर्ण नहीं हो रहा है तो, शाम के समय रुद्राक्ष माला से “श्री जानकी रामाभ्यां नमः” का जाप करने से कार्य सिद्ध होता है।
कलेश निवारण : दंपत्ति में आयेदिन जगड़े होते रहते हैं तो घर में राम-सीता की छवि या बड़े चित्र लगवाएं। ऐसा करने स पति पत्नी के रिश्तों में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।
गरीबी निवारण : अगर घर में पैसों की किल्लत बनी रहती है तो, सीता नवमी की शाम को रामायण का पाठ करें, यह अनुष्ठान सुख-समृद्धि दायक है।
रक्षा : जिन महिलाओं को किसी भी कारण से पति की चिंता सताती रहती है उन्हें जानकी नवमी के दिन शाम को माता सीता की मांग (छवि में) 7 बार सिंदूर लगाना चाहिए फिर उसे अपनी मांग से छुआएं।
पतिव्रत : भगवान श्री राम ने एक पत्नी व्रत लिया था, उनकी कोई और रानी नहीं थी, इस लिए अच्छे पति की कामना करने वाली कन्याओं को सीता नवमी के दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए।
मूर्ति : धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सीता की मूर्ति गंगा नदी की मिट्टी से बनाई जाए तो अधिक फल मिलता है, यह संभव न हो पाए तो तुलसी के पेड़ की मिट्टी का उपयोग भी कर स
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Sita Navami
Sita Navami 2023: Lord Shri Ram’s “beloved” Sita ji is also called by the name Janaki. The auspicious day of “Sita Navami” has great importance in Hinduism. Mother Sita was born on the ninth day of Shukla Paksha of Vaishakh month. This auspicious day is also known as Janaki Jayanti and Janaki Navami. Mother Sita has been called the incarnation of Goddess Lakshmi. Sita, who became the wife of Shri Ram in Dwapar Yuga, suffered a lot during her lifetime.
Sita, the beloved daughter of King Janak, had to endure 14 years of exile shortly after her marriage. Being seduced by Manthara, a queen of King Dasaratha, “Kaikai” wanted to make her son Bharat the king of Ayodhya, that is why she promised Dasaratha In the name of Rama, then Goddess Sita had the opportunity to go to her father for 14 years, but she chose to go to the forest with Shri Ram, setting an example of a chaste woman, she suffered many hardships during the exile. Then she was abducted by Ravana and lived among fierce demons in Ashok Vatika, then being abandoned by Shri Ram after returning to Ayodhya after the Ram-Ravana war, showing patience and dedication even after suffering so much throughout her life, this is only Mother Sita. Could have done
After Luv-Kush’s upbringing, when they were handed over to Ram and mother Sita started merging into the earth, this pathetic scene can bring tears to anyone’s eyes. At that time, the brave and brave Shri Ram had also lost his temper and was determined to destroy the entire creation if Sita was not returned. Associated with the life of this mother Sita:
some interesting stories
meaning of his birth
Sita Navami fast great
rituals and
Information related to getting the fruit is presented.
Sita Navami 2023 (Sita Jayanti 2023) Muhurta – Timings
Date : 29 April 2023
Start Date : 28 April 2023, 04:01 PM
Closing Date : 29 April 2023, 06:22 PM
21 very interesting facts related to Lord Ram
Benefits of Sita Navami Puja
Worshiping Janaki Mata on this day fulfills all wishes. People whose life is passing in suffering get freedom from their suffering. Janaki Mata is also known as the goddess of sacrifice and surrender, hence these divine qualities also descend in the person who worships her. When there is communication of philanthropy, sacrifice, service, love, dedication, sympathy, faith and harmony in a person, then contaminations like conflict, jealousy, pride, hatred, malice, anger and disbelief end. Then the period of his prosperity and happiness and peace starts coming. Apart from this, the person suffering from mental agony and suffering from incurable diseases also gets relief and liberation from Sita Navami fast.
sita jayanti worship method
On the auspicious day of Sita Jayanti, the people who worship and fast should get up early in the morning at Brahmamuhurt and take bath, after that make a resolution to fast and worship with a true heart. After this, spread a clean red cloth on a post, then place the picture or idol of Mother Sita and Lord Shri Ram on it. After this, purify the whole place by sprinkling Gangajal.
Now decorate Goddess Sita and offer things for the wedding. After this, offer roli, garland, flowers, rice, incense, lamp, fruits and sweets. To please Mother Sita, yellow flowers should be used in the worship method. Light a lamp with sesame oil or cow’s ghee and then perform the aarti of the mother. After this, chant the mantras of Mother Sita 108 times and recite Sita Chalisa. Worship Mother Sita even in the evening and do charity.
The story of the birth of Goddess Sita
According to Maharishi Valmiki’s Ramayana, Sita was found by King Janak from under the ground. According to the story, once there was a famine in Mithila, the sages advised King Janak to perform a yajna, so that it rains and the suffering of the people goes away. After the completion of the Yajna, King Janak decided to plow with his own hands, at the same time he found a beautiful girl from a pot sunk in the ground, King Janak accepted her as his daughter.
At that time King Janak had no other child, a part of the plow called Sita collided with the vessel in which the girl child Sita was, hence she was named “Sita”. She became Janak’s daughter, hence she was called “Janaki”.
Birth of Goddess Sita Sita Navami katha
Interesting story behind Sita Mata’s name “Vaidehi”
Everyone knows that Sita is the daughter of King Janak, but not everyone knows why she is called Vaidehi. Actually King Janak was named Mithi or Videha. Whose story goes like this…
Once upon a time, the arrogant King Nimi invited Brahmarshi Vashishtha for the Maha Yagya ritual. But Brahmarshi ignored this invitation and went to perform the Yagya of Indra. On which Nimi completed her yagya by taking the help of sages like Mrigu etc.
After a total of 500 years, Brahmarishi Vashishtha returned from Indra Lok, then he was very angry at this act of Nimi and he cursed Nimi to become Videha i.e. dead. When this terrible curse of Brahmarshi Vashishtha took effect, anarchy started spreading among the subjects. To solve this critical problem, the sages together churned the cursed dead body of Nimi. From the same churning a child was born who was called Videha, later he was named King Janak. In this way the daughter of King Janak (Videha) was called “Vaidehi”.
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Short story depicting the glory of Sita Navami fast
In the state of Marwar, there lived an authentically learned Brahmin named Devadatta. His wife Shobhana was very beautiful, when the Brahmin used to go to a distant country to beg for alms, his wife got trapped in the wrong company, she became an adulteress. When his curtain was exposed, he set the whole village on fire along with the wicked. In this way the Brahmin spent her whole life indulging in sinful deeds.
She cheated on her husband, so in the next birth she was born in Chandal’s house. He suffered severe leprosy because of the trouble he caused to the innocent villagers. She also became blind as a result of adultery in her previous birth. In this way she was forced to wander from door to door and suffer intolerable.
One day she reached Kailashpuri. Fortunately, this day was on the Navami of Shukla Paksha of Vaishakh month. On the day of Janaki Jayanti, she spread her hands and started begging for food.
Falling down, she came inside through the thousand flower studded pillars near Kanak Bhawan, she was asking for some food.
A devout devotee present there said to him, today it is a sin to donate food, tomorrow you will get Prasad. Saying this, out of pity, he gave him Tulsi leaf and some water. After some time that sinner died of hunger. But unknowingly, the fast of Sita Navami was completed by him.
As a result of which she was freed from sin, she got to live in heaven. Then in the next birth she became the queen of Maharaja Jai Singh of Kamrup country. In this way, by the infinite grace of Mother Sita, all his diseases, defects and sins were destroyed and he got salvation.
brahmin brahmin story
Sit Navami Unkanyanen Facts Hindi
Three forms of Sita Mata: Kriya Shakti, Ichha Shakti, Gyan Shakti.
Goddess Sita is also called “Bhumatmaja” because of her origin from Dhara (Earth).
The light of fire, sun and moon is said to be the form of Mother Sita.
Sita Mata’s shadow was imprisoned in Ravana’s captivity, the real Sita Mata was safe with Agni Dev.
At the time of exile, in the hermitage of Sage Atri, Sati Anasuya had provided divine clothes to Sita Mata which did not tear or get dirty.
After the abduction of Sita by Ravana, the monkey king Sugriva and his party, who went in search of her, found Sita’s ornaments tied in a bundle.
Biography of Ramayana author Maharishi Valmiki
Insult of Vedavati by Ravana
During the journey of the Himalayas, Ravana, the king of Lanka, saw Vedavati, she was very beautiful, yet she was unmarried. When Ravana asked her the secret of this, Vedavati said, my father Brahmarishi Kushdhwaj wanted me to be married to Lord Vishnu of Trilok, a demon got angry knowing this, he wanted to marry me. That’s why he killed my parents. That’s why I have now chosen the path of penance.
After hearing this story, Ravana first started wooing Vedavati, but when Vedavati did not agree, he caught hold of her hair, at the same moment Vedavati cut her hair and cursed, saying that you have insulted me in this forest. , I will come again in Treta Yug after Satyug and will be the reason for your end.
In this way, in Treta Yuga, Ravana again became enamored of Vedavati born as Sita, abducted her by deceit and died at the hands of Rama avatar of Lord Vishnu.
Separation of Goddess Sita and Shri Ram: The Story of the Parrot’s Curse
Girl Sita was once playing with her friends in the garden. And on the same tree, a pair of male and female parrots were talking about the future of Sita and Ram, which they had heard from Maharishi Valmiki’s hermitage. The curious girl Sita wanted to know more about herself and Rama from the female parrot, but the pair of parrots refused to accompany her to the palace, saying that they like to live in the open sky.
Angered by this, girl Sita forcibly kept the pregnant female parrot with her, and freed the male parrot. So that he can know more about his future from the female parrot. The male parrot died in separation from his mate. Saddened by this, the female parrot cursed the girl Sita, she said… The way you took me away from this parrot, you will also have to bear the separation from your husband during pregnancy.
It is said that in the next birth, the parrot was the same washerman who pointed finger at the character of Mother Sita, after which Lord Rama abandoned Sita during her pregnancy. Then Mother Sita reached Maharishi Valmiki’s ashram and there she gave birth to Luv-Kush.
Sita Navmi Tota Kahani
Importance of Akshaya Tritiya story and fasting method
According to the wonderful Ramayana, Sita, the daughter of Ravana Mandodari
According to the amazing Ramayana, Ravana said, when I wish for love with my daughter by mistake, then I will die. It is said in the same book that once upon a time, a Brahmin named Gritsmad used to flow drops of milk from the front part of Kush in an urn with chanting mantras to get Lakshmi in the form of a daughter. One day the demon King Ravana came there and killed all the sages there and filled a little bit of their blood in that urn, then he took it to his queen Mandodari, she said, it contains very strong poison, keep it carefully. .
Suffering from the neglect of her abusive husband, Mandodari drank all that blood alone knowing it to be poison. Due to this she became pregnant. He did not understand what to do, what answer to give to Ravana.
When Ravana went to Sahyadri mountain, pregnant Mandodari left for pilgrimage. She reached the Kuru region where she placed her womb in a pot. And buried the pitcher in the ground. After that she returned to the city of Lanka after taking a bath in the Saraswati river.
It is said that the same pot was found by King Janak while plowing, from which Mother Sita appeared, and according to Ravana, she also became the cause of his death.
Remedies for happiness and peace on the day of Sita Navami
Marriage: If there are obstacles in marriage, then both Shri Ram and Sita should be worshipped, by doing this these obstacles will end very quickly.
Desire: If there is hope of some good work and it is not getting fulfilled in any way, then chanting “Shri Janaki Ramabhyan Namah” with Rudraksh Mala in the evening proves the work.
Redressal of conflicts: If the couple keeps on quarreling every day, then get the image or big pictures of Ram-Sita installed in the house. By doing this, miraculous improvement will be seen in the relationship between husband and wife.
Poverty alleviation: If there is a shortage of money in the house, recite Ramayana on the evening of Sita Navami, this ritual brings happiness and prosperity.
Protection: Women who are worried about their husband for any reason, they should apply vermilion 7 times on Janaki Navami’s maang (picture) to Mata Sita and then touch her with your maang.
Pativrat: Lord Shri Ram had taken a fast for one wife, he had no other queen, so the girls who wish for a good husband must keep a fast on the day of Sita Navami.
Idol: According to religious texts, if the idol of Goddess Sita is made from the soil of river Ganga, it gives more results, if this is not possible, then the soil of Tulsi tree can also be used.