रसोपासना – भाग-33 !!

आज के विचार

🙏( प्रेम देश की अटपटी बातें…)🙏
!!


🙏आपको पता है !… जिस पीताम्बरी को श्याम सुन्दर ओढ़ते हैं…वो पीताम्बर क्या है ? श्रीजी ही तो वह पीताम्बरी हैं ।

वही लालजु के हृदय में भी बैठी हैं..और वही श्रीजी बाहर भी हैं ।

यह प्रेम की विलक्षण उच्चावस्था है…इससे उच्चतम प्रेम कुछ हो ही नही सकता… श्याम तेज़ के भीतर गौर तेज़ है और गौर तेज़ के भीतर श्याम तेज़ भरा हुआ है ।

अरे ! इतना ही नही… मुकुट, वंशी, मोती की माला, सर्वांग में लिप्त चन्दन ये सब भी तो श्रीजी ही हैं…जो श्याम सुन्दर के भीतर बाहर सर्वत्र वही वही हैं… उफ़ !

साधकों ! ये लीला मेरे हृदय में जो प्रकट हुयी…वो बड़े अद्भुत ढंग से प्रकट हुयी थी…जैसे – श्रीजी बता रही हैं सखियों से… और उधर वही लीला भी स्पष्टतः दिखाई दे रही थी…

मैं उसका वर्णन कर सकूँगा कि नही… मुझे नही पता… पर मेरा प्रयास है…कि उस लीला की कुछ झलक आप तक पहुँचा सकूँ… बाकी तो मेरा “युगल चिन्तन” इसी बहाने से हो जाता है…मैं इसलिये तो ये सब लिखता हूँ…

चलिये… उसी प्रेम देश में, वहाँ की अटपटी बातें सुनने के लिये ।🙏

🙏सखी ! मेरे प्रियतम मुझ से कितना प्रेम करते हैं… ये तो तुमने देख ही लिया…एक पल के लिये भी मेरे मुख मण्डल में उदासी इन्हें असह्य हो जाती है…मुझे तनिक भी श्रम हो तो ये काँप जाते हैं ।

🙏बड़ी ठसक के साथ श्रीजी फिर आज अपनी सखियों को अपने प्रियतम की बातें बता रही थीं ।

हे सहेलियों ! पता है एक दिन…

…श्रीजी ने कहा… और वही दृश्य निकुञ्ज में सामने आ गया ।🙏


शरद पूर्णिमा का दिन… चन्द्रमा खिला है निकुञ्ज के नभ में… महारास प्रारम्भ हो गया था ।

सब श्वेत वस्त्र धारण किये हुए थे… युगल के मुकुट और चन्द्रिका भी श्वेत…वन में खिले फूल भी श्वेत… आज सब कुछ श्वेत ही श्वेत था निकुञ्ज में…

श्रीजी आनन्दित हो नृत्य कर रही थीं…ताल में ताल मिलाकर…लाल जु श्रीजी को अपलक निहारते हुए ताल मिला रहे थे… सखियाँ चारों ओर घूम रही थीं…एक वर्तुलाकार…

पूरा निकुञ्ज आज झूम उठा था ।

तभी –

लाल जु रुक गए… एकाएक ठहर गए…

श्रीजी ने आश्चर्य से पूछा… क्या हुआ लाल ! आप रुक क्यों गए ?

कुछ नही बोले श्यामसुन्दर…बस गम्भीरता के साथ श्रीजी के निकट आये… और अपनी पीताम्बरी से श्रीजी के माथे से बह रहे पसीने को पोंछनें लगे…पर आगे तो, प्रेम की अद्भुत सीमा पार कर चुके थे श्यामसुन्दर…उस पसीने लगे पीताम्बरी को अपने मुख में… अपने नयनों में लगाकर अद्भुत भाव से भावित हो उठे थे ।🙏


सखी ! तुम सुनो लाल रसिकाई !

मैं क्या बताऊँ सखी ! रसिक शिरोमणि श्याम की बातें…

एक दिन मेरे समीप आकर कह रहे थे… प्यारी ! हम तो आपके चरण की धूल भी नही हैं…आहा ! परब्रह्म हैं ये… ब्रह्मा विष्णु महेश इनसे ही प्रकट होते हैं…पर प्रेम में ये सब कुछ लुटाने वाले हैं ।

सखी ! एक दिन तो… मैं प्यारे के साथ यमुना पुलिन में भ्रमण कर रही थी… तब मैंने देखा…🙏


सन्ध्या का समय है… सूर्य अस्त होने वाला है…यमुना की कोमल बालुका में युगल विहार कर रहे हैं…शीतल हवा चल रही है… जिसके कारण युगल को बड़ी प्रसन्नता हो रही है ।

अद्भुत ! तभी – श्रीजी की चूनरी उड़ी क्यों कि हवा अच्छी चल रही थी… और लाल जु के ऊपर गिर गयी….. श्रीजी को पता भी नही चला इस बात का… पर श्याम सुन्दर उसी समय वहीं बैठ गए… श्रीजी की चूनरी को हटाया भी नही…

श्रीजी ने तभी देखा… वो चौंक गयीं…आहा ! मानो योगियों की तरह समाधि लग गयी थी श्याम सुन्दर की तो… और इतना ही नही…यमुना के रज को उठाकर अपने माथे से लगा रहे थे… और नयनों से अश्रु बहाते हुए कह रहे थे… मेरी प्यारी के चरण रज हैं…मैं इसी से तिलक करूँगा… उफ़ ।


प्रसन्न वदन श्रीप्रिया जु सखियों से बोलीं…अरी सखियों ! ये रसिक नागर हैं…मेरे देह को छूते हुए हवा भी गुजरती है… और वो हवा इन्हें छूती है… तो ये अपने आपको धन्य धन्य मानते हैं… रसिक शिरोमणि ऐसे ही तो नही हैं ये…

सखी ! एक दिन की बात और सुनो -🙏


दिव्य सिंहासन है… उस सिंहासन में श्रीजी विराजमान हैं…

चरणों में विराजे हैं श्याम सुन्दर… अद्भुत झाँकी है ये तो ।

तभी अनुनय विनय करने लगते हैं…उफ़ ! ये अनुनय कर रहे हैं इस बात की… कि हे प्यारी ! आपके चरणों में, मैं महावर लगाना चाहता हूँ…श्रीजी उन्मुक्त हँसती हैं…नही प्यारे ! तुमसे नही होगा…

क्यों नही होगा…आप एक बार सेवा के लिये इस सेवक को आज्ञा तो दो…ये बात भी भाव में भरकर बोले थे श्याम सुन्दर ।

🙏मैं अपने धन्य भाग मानूंगा… मैं कृतकृत्यता का अनुभव करूँगा…हे स्वामिनी ! बस एक बार ।

जब ज्यादा ही कहने लगे… तो श्रीजी ने “हाँ” कह दिया ।

बस प्रसन्नता से उछल पड़े श्याम सुन्दर… और महावर लगाने के लिये जैसे अपने हाथों को बढ़ाया… श्रीजी के कोमल चरण… सरोज की मृदुता, मनोहरता, अरुणता, तेजता, देखकर हाथ कांपने लगे… वो कुछ कर ही नही पाये… जड़वत् हो गए लाल जु ।

रहने दो प्यारे ! आपसे नही होगा…हटा दिया लाल को श्रीजी ने ।

🙏हे रसिकराज ! आपसे ये काम नही होने वाला… अब तो अपने चरणों को अपनी साड़ी से ढँक और लिया था श्रीजी ने ।

बस दुःखी हो गए श्याम सुन्दर…श्रीजी के चरणों में अपना मस्तक रखने लगे…अपने पलकों से चरणों को छूने लगे…

प्यारी ! बस एक बार और इस सेवा का अवसर मुझे प्रदान करो… मेरी विनती है ।…लाल जु को ऐसा देख… श्रीजी को दया आगयी… ठीक है कर लो आपको जो करना है…

🙏बस फिर क्या था… लंबी साँस ली… आँखें बन्द करी श्याम सुन्दर ने… अपने आपको सम्भाला… फिर श्रीजी के एक चरण को अपने हाथ में रखकर… दूसरे हाथ से महावर लगाने लगे…

आहा ! रसवन्त प्यारे जु की अद्भुत दशा हो रही थी…उस समय…

ये प्रेम है…इसे हर कोई नही समझ सकता… वो अद्भुत… वो दिव्यातिदिव्य… मधुरातिमधुर लीला रस…

अजी ! मर्मस्थल को बेधने की फाँस बड़ी कठिन होती है…और ये प्रेम की फाँस जिसके कलेजे में फंस जाए… उस की यही दशा होती है… जो आज हमारे लाल जु की हो रही है ।

ये श्याम सुन्दर अवतार काल में भले ही “रसिक” बने डोलते रहे… पर निकुञ्ज में ये मात्र “अनन्य” हैं…और अनन्य किसके ?

🙏!! सुर तरु काम धेनु चिन्तामणि, भगवत रसिक अनन्य लली के !!

बड़े प्रेम से रंग भर रहे हैं प्यारे… और प्यारे के नील वरण के हाथ और श्रीजी के गौर चरण… उफ़ ! कोई उपमा नही सूझ रही ।

पर तभी – दृश्य बदल गया… श्रीजी भावावेश में आगयीं…और अपने प्यारे के महाभाव को देखकर… सिंहासन से उठीं… पर मान नही रहे थे लाल… फिर भी जबरन उन्हें उठाया… और अपने हृदय से लगा लिया था… ।

पूरा निकुञ्ज इस दिव्य रस में डूब गया था उस समय…🙏


मैं क्या बताऊँ सखी ! हम दोनों के गले में तो प्रेम की ऐसी अद्भुत फाँस लगी है…उसी प्रेम देवता के कारण ही हमारी ये दशा होती है ।

हँसी श्रीजी… सखी ! वो फाँस गले में कस के लगी है… ‘ढीली कबहुँ होय ही नायँ”… और प्यारे ने ही अपना तन मन मुझे नही दिया मैंने भी अपना सर्वस्व उनके लिए ही छोड़ रखा है…

सखी ! ये प्रेम है… अब क्या कहूँ… इतना कहकर…

श्रीजी मौन हो जाती हैं… कुछ नही बोलतीं… पर हाँ… उनके हृदय में श्याम सुन्दर के स्पष्ट दर्शन होते हैं ।

🙏जय जय श्री राधे ! जय जय श्रीराधे ! जय जय श्री राधे !🙏

शेष “रसचर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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