रसोपासना – भाग-47

🙏( दूलह दुलहिन की दिव्य झाँकी…)

अब चलो सखी ! इन नवल दूलह दुलहिनि को लेकर चलो…

रंगदेवी सखी ने अन्य सखियों को कहा ।

वेदी मण्डप से उठे हैं ये दम्पति…और “रंगमहल” की ओर चल दिए ।

दिव्य सजावट है उस रंगमहल की…नाना प्रकार के छोटे छोटे शीश महल बने हुये है…जिसमें अनन्त छवि के दर्शन हो रहे हैं ।

मणि माणिक्य के खम्भे हैं वहाँ…सखियाँ शहनाई बजाती हुयी युगल दम्पति को लेकर आयी हैं ।

उस समय युगल अत्यन्त प्रसन्न हैं…उनकी प्रसन्नता उनके मुखमण्डल पर ही दिखाई दे रही है…सखियाँ इनकी इस प्रसन्न छवि को देखकर गदगद् हैं…वो कभी कभी जड़वत् भी हो जाती हैं…पर दूसरी सखी उन्हें सम्भाल लेती हैं ।

चलते हुये सखियाँ दूलह सरकार से हास्य विनोद भी करती जा रही हैं…दूलह लाल सखियों की प्रेम भरी बातें सुनकर मुस्कुरा देते हैं ।

उस समय की छवि देखते ही बनती है…

रंगमहल में ले आयी हैं सखियाँ… चित्रा सखी ने अपनी पूरी चित्रकारी इस रंग महल में ही उकेर दी है…मुस्कुराते दूलह लाल के चित्र लगाये हैं…उनके ही पास में शरमाती हुयी दुलहिन का चित्र भी उकेर दिया है…कमल पुष्प लेती दुलहिन…और कमल पुष्पों को अपनी प्यारी के ऊपर उढ़ेलते हुए दूलह लाल ।

ऐसे नाना प्रकार के चित्रों से सजाया है रंगमहल को चित्रा सखी ने ।

दीप जल रहे हैं…सुगन्धित दीप से वह महल और भी महक उठा है ।

एक सिंहासन है…उस सिंहासन में “श्री राधा माधव”…इस नाम को उकेरा गया है…ये नाम लिखने में भी चित्रा सखी ने अपनी कला का पूरा प्रयोग किया है ।

उस सिंहासन पर युगल विराजे हैं…आहा ! नये दूलह दुलहिन की छवि ऐसी लग रही है…मानो शोभा के सरोवर में नील और पीत दो कमल खिले हैं…क्या दिव्य शोभा बन रही है इन दोनों की ।🙏


🙏नित नव कुञ्ज विलासी जु की…जै हो !

नव किशोर सुख राशि जु की…जै हो !

नवल बिहार बिहारिणी जु की…जै हो !

नव आनन्द प्रकासी जु की…जै हो !

जब दूलह दुलहिन रंगभवन के सिहांसन पर विराजमान हो गए…तो सहस्त्रों सखियों ने मधुर स्वर से एक साथ जय घोष किया था ।

और जयघोष के साथ साथ पुष्पों की वर्षा भी शुरू कर दी थी सखियों ने…सखियों की ओर देखते हुए मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे दूलह दुलहिन… उफ़ ! क्या रूप माधुरी छलक रही थी उस समय ।

सखियों ने पहले दुलहिन बनीं अपनी स्वामिनी को ही निहारा… और जब निहारा तो एक टक निहारती ही रहीं ।

उस समय नवल दुलहिन की छवि ऐसी अद्भुत थी… जिसका पूर्ण वर्णन करना कठिन ही नही असम्भव ही है… फिर भी ।

सिंहासन पर दूलह सरकार के बायीं ओर दुलहिनि विराजीं हुयी हैं ।

विद्युत है उनके देह का रंग…कोई साधारण तो देख ही नही सकता… क्यों कि उसकी आँखें देख नही पाएंगीं…इतना तेज़ है ।

उनके नयन मृग नैन हैं…बड़े बड़े और तीखे नयन हैं…पर उन नयनों में अपार करुणा भरी हुयी है…हम सखियों के प्रति तो उनका अद्भुत स्नेह छलकता ही रहता है बाकि समस्त चराचर विश्व के प्रति इनका अपार वात्सल्य है ।

उन नयनों में अंजन है…सखियों ने ही बड़ी सुन्दर और मोटी काजल की रेख खींच दी है…जिसके कारण वो खंजन नयन और सुन्दर हो रहे हैं ।

भौंह बड़ी सुन्दर बनी है…और तोते जैसी नासिका है…उसमें नक बेसर लगा हुआ है…अधर लाल हैं…दन्त, मोतियों की तरह सफेद हैं…जब मुस्कुराती हैं…और कभी दूलह सरकार की बातों पर खुल कर हँसती हैं…तब जो चमक, उनके दन्त से प्रकट होती है…उसका तो वर्णन ही असम्भव है ।

हल्की लम्बी ठोड़ी है…गाल भरे हुए हैं…और गालों में लालिमा है…उसकी भी अपनी चमक है…

हाँ… उन गोरे गालों पर अलकें जब गिरती हैं…लटें… जब गालों को छूती हैं…बस उस समय तो दूलह सरकार उनके गुलाम ही हो जाते हैं…दूलह में असीम बल है…पर दुलहिन के कपोल में गिरे लट को देखकर ये सारी अपनी बल राशि को भूल जाते हैं…और बेचारे बन जाते हैं ।

माथे में आज लाल बेंदी बड़ी सुन्दर लग रही है…और लाल सिन्दूर की रेखा इनकी माँग में भी लग रही है…सुहागन श्रीजी की ये छवि सखी ! देखते ही बनती है ।

गले में मोतियों की लर है…जिसके कारण इनकी शोभा में और चार चाँद लग गए हैं… दिव्य से दिव्य शोभा हो रही है इनकी ।

इतना ही नही…गले में कन्ठा आभरण है…लाल दुलरी पोते इनके गौर वर्ण में अद्भुत फब रहा है…कंचुकी कसी हुयी है…बाजू बंध… हाथों में कंकण… बालों में गजरा… अंगुरिन में मुंदरी… और वो मुंदरी भी मणि मण्डित… अति दिव्य…
उदर क्षीण… नाभि मानो सरोवर की तरह गहरी…

क्या वर्णन करें… बुद्धि भी पंगु हो रही है ।

कमर में किंकिणि… लहंगा घेर दार…और जड़ाव वाला लहंगा ।

साड़ी सुख प्रद, जो देखने वाले नयनों को भी सुख दे… ऐसी दिव्य साड़ी… सुरंग लाल साड़ी… ।

चरणों में पायल बिछिया… महावर… ऐसी दिव्य छवि सखियों ने निहारी… तब उनके नयन भी चकाचौंध हो गए थे… ऐसी दिव्य हैं हमारे लाल जु की प्राण प्यारी की छवि ।

सखियाँ बलैया लेती हैं…और गाती हैं… नाचती हैं ।🙏

🙏””चका चौंध नैनन लगी, देखत दुलहिनि रूप !
अब दूलह देखौं सखी, सुन्दर अति ही अनूप !! “”

सखियों ! हमारी दुलहिन तो सुन्दर तम हैं हीं…पर अब थोड़ा इन दूलह सरकार को भी निहार लो… रंगदेवी ने कहा…

तो सखियों ने अब दूलह श्याम को देखा…आहा ! क्या छवि है !

दूलह का रंग ऐसा है…जैसे आकाश का हो…कभी श्याम भी लगता है… तो कभी गौर भी लगता है…नेत्र बड़े बड़े हैं…कमल नयन… पर चंचल बहुत हैं ।

सिर पर पाग है…सिरपेंच है उस पाग में… सिर पेंच का रंग सुनहरा है…मोतिन की लड़ी लटक रही है…कलँगी पाग में ही सुशोभित है…

माथे पर तिलक है रोरी का… तिरछी भौंह है…कानों में कुण्डल हैं…जो हिलते रहते हैं…और वो कुण्डल दूलह सरकार के सुन्दर कपोल को छू रहे हैं…अद्भुत !

नाक बड़ी सुन्दर है…

अधर लाल हैं…पतले हैं…ऐसे लगते हैं इनके अधर जैसे रस से भरे हों…मनोहर हैं…मुख मण्डल पर मुस्कान सदैव विराजमान रहती ही है…गले में मुक्ता की माला है…बाहु बड़े विशाल है… मोटे और गठीले हैं…कमर में पीला पटका बाँधा हुआ है…नीचे पीले रेशम की धोती है…जो बहुत सुन्दर लग रही है ।

सुन्दर जंघा है…कसाव है इनकी जंघा में…

चरण बड़े ही सुन्दर हैं…चारों ओर चरण के लाल लाल महावर लगे हैं…जो बड़े ही सुन्दर लग रहे हैं…आभूषण भी लगे हैं चरण में… चाँदी की कडबे चरणों में हैं…

सखी ! लग रहा है…इन्हीं दूलह सरकार को अपने प्राण वार दूँ ।

इतना कहकर कुछ देर के लिये सखियों की तो मानो समाधि ही लग जाती है…फिर अपने आपको सम्भालती हैं सखियाँ…फिर आनन्दित हो युगल दम्पति को निहारती हैं…दूलह दुलहिन की शोभा को निहारते हुये अपना सब कुछ वार देती हैं ।

अब सब सखियाँ गाती हैं !

बड़े प्रेम से उन्मत्त हो नाचते हुये गाती हैं…

“कृष्ण रूप श्री राधिका, राधे रूप श्री श्याम !

दरसन को ये दोय हैं, हैं एक ही सुख धाम !!””

🙏राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे !
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !!

बोलो दूलह दुलहिन सरकार की – जै हो !
आज के आनन्द की – जै हो !

शेष “रस चर्चा” कल –

जय श्रीराधे कृष्णा

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