भक्त मन से श्रेष्ठता को हटा दे

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हम परम पिता परमात्मा के बनना चाहते हैं। तब सबसे पहले अपने ऊपर से साधक का भक्ति का श्रेष्ठता का मै पुजा करता हूं ये सब विचार हटा दे। परमात्मा ने शरीर में आत्मा बनाई है तो कर्म इन्द्रीया और ज्ञान इन्द्रीया दी है। शरीर क्रिया रुप है। आत्मा ज्योति रूप में है। हम क्या करते हैं थोड़ा सा भगवान् का नाम लेते ही यह सोचते हैं कि मै ही भगवान् हूं। और अपने ऊपर श्रेष्ठता का चोला पहन लेते हैं। परमात्मा का एक व्यक्ति ने नाम नहीं लिया या उसने संसार से छुपकर नाम लेता है तो क्या उसमे परमात्मा नहीं है। परमात्मा तो सबमें नित्य है। हमे परमात्मा का चिन्तन करते हुए यह ध्यान रहे कि परमात्मा सबमें समाया हुआ है। परम पिता परमात्मा कण कण में समाया है।चाहे आप भगवान की कितनी ही पुजा करे। घर में आप घर के सदस्य बनकर रहेगे। घर की जिम्मेदारी अच्छे ढंग से निभाना एक सबसे बड़ी पुजा है। हमे यह याद रहे कि मैंने गृहस्थ धर्म को अपनाया है। यह मेरा कर्तव्य है। हम रामायण, गीता पढते हैं। हम रामायण में एक एक पात्र के जीवन चरित्र पर चिन्तन नहीं करते हैं। रामायण गीता भागवत में कृष्ण जी राम जी, सीता माता, लक्ष्मण जी का राज महल में वनवास के समय को बारिकी से पढे। तब हम समझ पाएंगे कि भगवान् भी जीवन सधारण जी कर गए हैं। राम जी कृष्ण जी ने अपने आपको कभी यह नहीं कहा कि मैं भगवान् हूं। राम जी गुरु जी, भाई भरत को कितना सम्मान करते और कहते हैं कि जैसे मेरे गुरु जी और भाई भरत की आज्ञा होगी वैसे ही मै करने को तैयार हूं। कृष्ण जी ने ग्वाला बनकर गाय चराते हुए यह नहीं कहा मैं भगवान हूं कृष्ण जी एक सखा की सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं।
बाहरी पुजा समय नियम स्वच्छता पर आधारित है। मन से भगवान का नाम चिंतन और वन्दन में किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। हम घर में परमात्मा का चिन्तन करते हुए शरीर को विशेष न समझें। परिवार में परिवार के सदस्य की तरह रहे। फल वाले वृक्ष और गुणीजन ही झुकते हैं। हम घर में क्या करते हैं। पुजा के नाम पर घर में अनेक रुल बना लेते हैं। और सोचते हैं कि हम कहे जैसे परिवार के सदस्य रहे। परमात्मा का चिन्तन मन से करना है। हनुमान जी भगवान् श्री राम के चरणों में नतमस्तक है और सांस सांस से भगवान श्री राम को ध्याते और भगवान की सेवा करने के लिए सैदव तत्पर रहते हैं। हमे भी घर परिवार में सब कार्य कुशलता से करने है। हम तो क्या करते हैं राम राम राम राम जपेगे और सोचते हैं मै बहुत बड़ा भक्त हूं। रविदास जी महान सन्त हुए हैं। और अन्त तक जुता बनाते रहे। क्योंकि जो आनंद उन्हें जुता बनाते हुए सधारण जन बन कर भक्ति करने में आता था। वह आनंद उन्हें खाली बैठे बैठे भगवान् को भजने में नही आता था।मुझे सुबह उठकर परमात्मा को ध्याते हुए घर के कार्य करने में जो आनंद आता है उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। परमात्मा को भज कर के हमारे अन्दर लचक आ जाए। हम समय और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित हो जाए। हमे परिवर्तन स्वयं में लेकर आना है।

मैनें अपने आप को  change किया है। जिससे मै घर को चला सकु और भगवान् का चिन्तन करती रहू ।हम परिवार के सदस्यों से यह चाहने लगते हैं कि जैसे मैं चाहु वैसे ही सब चले क्योंकि मैं बहुत पुजा करता हूं। यही कारण है कि हम न घर को ठीक चला पाते हैं और भगवान के भी नहीं बन पाते हैं।आपको परिवार में परिवार के सदस्यों को अपना बनाकर उनके सब कार्य उनके अनुसार करके मन से भक्ति करनी है। मन से भक्ति में समय सीमा तय नहीं है। हम बैठकर दो घंटे भी पुजा करेगे तब परिवार के सब सदस्य कुछ दिन साथ देंगे यदि मन ही मन में करेगे तब आप कैसे ही करते रहो किसी को पता नहीं चलेगा। भगवान् भाव पर रिझ जाते हैं। घर परिवार में जो रिती चली आ रही है उसे उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक करें। परमात्मा से हमे दिल से सम्बंध बनाना है। दिल से बनाए गए सम्बन्ध जन्म जन्मानतर तक हमारा साथ देगा। कर्मयोग को कर्म प्रधान साधना बनानी है। आप परमात्मा को जीवन में साथ रखते हैं तब सुख में बहुत खुशी अनुभव नहीं करेगे। दुख में दुख से आपको कोई तोड़ नहीं सकता है। दोनों परिस्थिति में वैसे ही कार्य को कुशलता पूर्वक करते रहेंगे।मैं जब भी घर में कोई तकलीफ आती चट्टान की तरह से अडीग बन जाती और मन ही मन बाबा हनुमान जी से प्रार्थना करती। मुझे कभी किसी बात पर भय नहीं लगा कि अब कैसे होगा। जय श्री राम
अनीता गर्ग



हम परम पिता परमात्मा के बनना चाहते हैं। तब सबसे पहले अपने ऊपर से साधक का भक्ति का श्रेष्ठता का मै पुजा करता हूं ये सब विचार हटा दे। परमात्मा ने शरीर में आत्मा बनाई है तो कर्म इन्द्रीया और ज्ञान इन्द्रीया दी है। शरीर क्रिया रुप है। आत्मा ज्योति रूप में है। हम क्या करते हैं थोड़ा सा भगवान् का नाम लेते ही यह सोचते हैं कि मै ही भगवान् हूं। और अपने ऊपर श्रेष्ठता का चोला पहन लेते हैं। परमात्मा का एक व्यक्ति ने नाम नहीं लिया या उसने संसार से छुपकर नाम लेता है तो क्या उसमे परमात्मा नहीं है। परमात्मा तो सबमें नित्य है। हमे परमात्मा का चिन्तन करते हुए यह ध्यान रहे कि परमात्मा सबमें समाया हुआ है। परम पिता परमात्मा कण कण में समाया है।चाहे आप भगवान की कितनी ही पुजा करे। घर में आप घर के सदस्य बनकर रहेगे। घर की जिम्मेदारी अच्छे ढंग से निभाना एक सबसे बड़ी पुजा है। हमे यह याद रहे कि मैंने गृहस्थ धर्म को अपनाया है। यह मेरा कर्तव्य है। हम रामायण, गीता पढते हैं। हम रामायण में एक एक पात्र के जीवन चरित्र पर चिन्तन नहीं करते हैं। रामायण गीता भागवत में कृष्ण जी राम जी, सीता माता, लक्ष्मण जी का राज महल में वनवास के समय को बारिकी से पढे। तब हम समझ पाएंगे कि भगवान् भी जीवन सधारण जी कर गए हैं। राम जी कृष्ण जी ने अपने आपको कभी यह नहीं कहा कि मैं भगवान् हूं। राम जी गुरु जी, भाई भरत को कितना सम्मान करते और कहते हैं कि जैसे मेरे गुरु जी और भाई भरत की आज्ञा होगी वैसे ही मै करने को तैयार हूं। कृष्ण जी ने ग्वाला बनकर गाय चराते हुए यह नहीं कहा मैं भगवान हूं कृष्ण जी एक सखा की सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। बाहरी पुजा समय नियम स्वच्छता पर आधारित है। मन से भगवान का नाम चिंतन और वन्दन में किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। हम घर में परमात्मा का चिन्तन करते हुए शरीर को विशेष न समझें। परिवार में परिवार के सदस्य की तरह रहे। फल वाले वृक्ष और गुणीजन ही झुकते हैं। हम घर में क्या करते हैं। पुजा के नाम पर घर में अनेक रुल बना लेते हैं। और सोचते हैं कि हम कहे जैसे परिवार के सदस्य रहे। परमात्मा का चिन्तन मन से करना है। हनुमान जी भगवान् श्री राम के चरणों में नतमस्तक है और सांस सांस से भगवान श्री राम को ध्याते और भगवान की सेवा करने के लिए सैदव तत्पर रहते हैं। हमे भी घर परिवार में सब कार्य कुशलता से करने है। हम तो क्या करते हैं राम राम राम राम जपेगे और सोचते हैं मै बहुत बड़ा भक्त हूं। रविदास जी महान सन्त हुए हैं। और अन्त तक जुता बनाते रहे। क्योंकि जो आनंद उन्हें जुता बनाते हुए सधारण जन बन कर भक्ति करने में आता था। वह आनंद उन्हें खाली बैठे बैठे भगवान् को भजने में नही आता था।मुझे सुबह उठकर परमात्मा को ध्याते हुए घर के कार्य करने में जो आनंद आता है उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। परमात्मा को भज कर के हमारे अन्दर लचक आ जाए। हम समय और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित हो जाए। हमे परिवर्तन स्वयं में लेकर आना है।

I have changed myself. So that I can run the house and keep meditating on God. We start wanting from the family members that everything should go the way I want because I do a lot of worship. This is the reason that we are not able to run the house properly and also cannot become God’s. There is no time limit in devotion from the mind. We will sit and worship for two hours, then all the family members will support for a few days, if you do it in your heart, then no one will know how you keep doing it. God gets angry on emotion. Do the rituals that are going on in the family with reverence in the same way. We have to have a relationship with God from the heart. Relationships created from the heart will support us till birth after birth. Karma Yoga has to be made a karma-oriented sadhna. If you keep God with you in life, then you will not experience much happiness in happiness. No one can break you from sorrow in sorrow. In both the circumstances, I would continue to do the same work efficiently. Whenever there was any problem in the house, I would become steadfast like a rock and pray to Baba Hanuman ji in my mind. I never feared how it would happen now. Long live Rama Anita Garg

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