*मीरा चरित भाग -2

राव दूदा की संतति…….

राव दूदा के पांच पुत्र हुए- वीरमदेव, रायमल, रायसल, रतनसिंह और पंचायण।
(१) राव वीरमदेव:- राव दूदा की मृत्यु के पश्चात राव वीरमदेव मेड़ता की गद्दी पर आसीन हुए। इनका विवाह महाराणा सांगा की बहिन और महाराणा रायमल की पुत्री गिरिजा के साथ हुआ था। यह इनका तीसरा विवाह था। पहला विवाह निबरवाड़ा के चालुक्य वंशीय राणा केशवदास की पुत्री राजकुमारी कल्याण कुँवरी के साथ हुआ था। दूसरा विवाह बीसलपुर के राव फतहसिंह चालुक्य की पुत्री गंगकुँवरी से हुआ था। चौथा विवाह कालवाड़ के महाराज कछवाहा किशनदास की पुत्री मान कुँवरी से हुआ। इनके तीन राजकुमारी और तेरह राजकुमार हुए।

पुत्री:- श्याम कुमारी:- इनका विवाह मदारिया के रावत सांगा के साथ हुआ फूल कुँवरी:- इनका विवाह आमेट के सुविख्यात वीर फत्ता जी के साथ हुआ। अभय कुँवरी:- इनका विवाह गंगरार के राव राय देव चौहान के साथ हुआ।

पुत्र:- जयमल, ईश्वरदास, जगमाल, चांदा, करण, अचल, बीका, पृथ्वीराज, सारंगदेव, प्रताप सिंह, मांडण, सेरवा और खेमकरण।
इनमें मांडण, सेरवा, करण, अचल, बीका इनके विषय में इतिहास चुप है। संभवतः इनमें किसी की मृत्यु बचपन में हो गई हो और कोई बिना पुरुषार्थ ही साधारण जीवन व्यतीत कर के संसार से चले गए हो। क्षत्रिय की पहचान उस समय उसकी तलवार, बल और बुद्धि थी। राव वीरमदेव जी की सांग का वजन सवा मन था जिसे लेकर वे युद्ध भूमि में उतरते और घंटों शत्रुओ का संहार करते थे। राव वीरमदेव जी के पुत्र प्रताप सिंह महाराणा रायमल के दौहित्र थे। ये चाणोद घाणेराव की जागीर के स्वामी हुये। इनके पुत्र गोपाल दास, गोपाल दास के किशन दास।
किशन दास ने ही घाणेराव में महल बनवाएं और वहां राजधानी स्थापित की। किशन दास के दुर्जन सिंह और दुर्जन सिंह के गोपीनाथ हुए। यह बड़े प्रसिद्ध योद्धा थे। इन्हीं से मेड़तिया की गोपीनाथ शाखा प्रारंभ हुई।
राव जयमल चालुक्य केशव दास के दोहित्र थे। राव वीरमदेव के पश्चात ये ही गद्दी पर आसीन हुए। ये जयमलोत शाखा के मूल पुरुष थे। ये प्रचंड वीर और भगवान राम के अनन्य भक्त थे। राव वीरमदेव स्वतंत्र मनोवृति के थे अतः उन्होंने जोधपुर के राव मालदेव की अधीनता स्वीकार नहीं की इसलिए इन्हें मेड़ता से हाथ धोना पड़ा।

सुमेलगिरी के संग्राम में राव मालदेव के परास्त होने पर मेड़ता पर इनका उन्हें पुनः अधिकार प्राप्त हुआ। इनका देहावसान संवत 1600 वि. (फाल्गुन 1544 ईस्वी फरवरी) में हुआ।

इतिहासकारों का कथन है कि यदि जोधपुर के मालदेव बीकानेर के राव जैत सिंह और मेड़ता के वीरमदेव के मध्य शत्रुता न होती तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता। राव जयमल अपने पिता का वचन निभाने के लिए चित्तौड़ गए। जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, वही अकबर की गोली से इनकी जाँघ ही टूट गई थी। घोड़े पर बैठना संभव नहीं था अतः कल्ला राठौड़ के कंधे पर बैठ कर युद्ध किया। दोनों वीर दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। राव दूदा की भांति राव वीरमदेव और राव जयमल भी परम वैष्णव भक्त हुए।

(2) रायमल:- राव वीरमदेव ने इन्हें रायण की जागीरी प्रदान की थी। 1527 ईस्वी में बाबर से लड़ते हुए खानवा के युद्ध में काम आए।

(3) रायसन:- यह अपने भाइयों में सबसे वीर पुरुष थे। राव वीरमदेव ने जब सहसा राठौड़ (वरसिंह के वंशज) पर चढ़ाई की थी, उस समय 1537 ईस्वी में यह घायल हुए और फिर जख्म ठीक न होने के कारण इनकी मृत्यु हुई।

(4) रतन सिंह:- राव वीरमदेव ने भोज सिंहावत को रुड़की से निकालकर कुड़की की जागीर भक्त शिरोमणि मीराबाई के पिता रतन सिंह जी को प्रदान की। यह अपने भाई रायमल के साथ बाबर से लड़ते हुए खानवा के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

(5) पंचायण:- राव दूदा के पांचवे पुत्र पंचायण जोधपुर के राव मालदेव जी की सेवा में रहे। राव मालदेव ने राव जयमल से जब मेड़ता छीन लिया तब राव जयमल ने मेड़ता पर 1563 ईस्वी में चढ़ाई की उस समय पंचायण राव मालदेव की ओर से लड़ते हुए देवीदास जेतावत के हाथ काम आए।

इस प्रकार मीरा के बड़े पिता, काका और पिता आदि सभी मेड़तिया राठौड़ एक से बढ़कर एक वीर पुरुष हुये। वीर होने के साथ ही यह परम भक्त भी हुये। चारभुजानाथ का इन्हें इष्ट था। बड़ी श्रद्धा से अपने इष्टदेव की सेवा भक्ति करते थे।

मीराबाई के जन्म के विषय में कुछ अनावश्यक मत-मतांतर है। कई लोगों का मानना है कि मीरा का जन्म कुड़की में हुआ किंतु यह सत्य नहीं है वस्तुतः कुड़की की जागीर को कब और किसने रतन सिंह को प्रदान किया इस और विद्वानों का ध्यान तक नहीं गया। वर सिंह के पुत्र और सिंघा के पुत्र भोजा को कुड़की की जागीर मिली हुई थी। राव दूदा की मृत्यु के पश्चात राव वीरमदेव मेड़ता की गद्दी पर विराजे। भोजा ने राव वीरमदेव के विरुद्ध उत्पात मचाया इसलिए राव वीरमदेव ने उस पर चढ़ाई की और भोजा को कुड़की से निकाल दिया। भोजा फिर कुड़की पर अधिकार नहीं कर सका। कुड़की को राव वीरमदेव ने अपने अनुज रतन सिंह को प्रदान किया। मीरा का जन्म संवत 1561 (1504 ईसवी) में हुआ। इससे निष्कर्ष निकलता है कि संवत 1572 के पश्चात रतन सिंह जी को कुड़की की जागीर प्राप्त हुई और उस समय मीराबाई की उम्र 11 वर्ष की थी इससे यही उचित जान पड़ता है कि मीरा का जन्म मेड़ता में ही हुआ। कई लोगों का मत है कि मीरा का जन्म बाजोली में हुआ यह भी सच इसलिए नहीं लगता कि बाजोली आदि 12 गांव कुड़की के साथ ही रतन सिंह को मिले मीरा का जन्म और पालन-पोषण मेड़ता में हुआ। अभी कुड़की एवं मेड़ता में चाँदावत राठौड़ रहते हैं। यह वीरमदेव जी के पुत्र चाँदा के वंशज हैं। राव जयमल को चित्तौड़ के महाराणा से बदनोर की जागीर मिली किंतु वे वहाँ रह नहीं पाए क्योंकि अकबर से युद्ध के समय जयमल महाराणा के प्रधान सेना अध्यक्ष थे और वही युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
क्रमशः

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