राम कथा का ये कैसा महात्म्य :

एक बार एक राजा ने गाव में रामकथा करवाई और कहा की सभी ब्राह्मणो को रामकथा के लिए आमत्रित किया जाए।
एक ब्राह्मण अंगुठा छाप था उसको पढना लिखना कुछ आता नही था, वो ब्राह्मण सबसे पीछे बैठ गया, और सोचा की जब पास वाला पन्ना पलटेगा तब मैं भी पलट दूंगा।
काफी देर देखा की पास बैठा व्यक्ति पन्ना नही पलट रहा है, उतने में राजा श्रद्धा पूर्वक सबको नमन करते चक्कर लगाते लगाते उस सज्जन के समीप आने लगे, तो उस ने एक ही रट लगादी की “अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा ?
अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा।
उस सज्जन की ये बात सुनकर पास में बैठा व्यक्ति भी रट लगाने लग गया,की “तेरी गति सो मेरी गति तेरी गति सो मेरी गति”
उतने में तीसरा व्यक्ति बोला, ये पोल कब तक चलेगी। ये पोल कब तक चलेगी।
चोथा बोला:-जब तक चलता है चलने दे, जब तक चलता है चलने दे, वे चारो अपने सिर निचे किये इस तरह की रट लगाये बैठे है की:-
1 अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा
2 तेरी गति सो मेरी गति
3 ये पोल कब तक चलेगी
4 जब तक चलता है चलने दे
जब राजा ने उन चारो के स्वर सुने, राजा ने पूछा की ये सब क्या गा रहे है, ऐसे प्रसंग तो रामायण में हम ने पहले कभी नही सुना।
उतने में, एक महात्मा उठे और बोले महाराज ये सब रामायण का ही प्रसंग बता रहे है, पहला व्यक्ति है ये बहुत विद्वान है ये, बात सुंमत ने (अयोध्याकाण्ड ) में कही, ?
राम लक्ष्मण सीता जी को वन में छोड़, घर लोटते है तब ये बात सुंमत कहता है की अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ? अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा
फिर पूछा की ये दूसरा कहता है की तेरी गति सो मेरी गति।
महात्मा बोले महाराज ये तो इनसे भी ज्यादा विद्वान है,( किष्किन्धाकाण्ड ) में जब हनुमान जी, राम लक्ष्मण जी को अपने दोनों कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास गए तब ये बात राम जी ने कही थी की, सुग्रीव !
तेरी गति सो मेरी गति, तेरी पत्नी को बाली ने रख लिया और मेरी पत्नी का रावण ने हरण कर लिया।
राजा ने आदर से फिर पूछा: की महात्मा जी, ये तीसरा बोल रहा है की ये पोल कब तक चलेगी, ये बात कभी किसी संत ने नही कही?
महाराज बोले ये तो और भी ज्ञानी है।, (लंकाकाण्ड) में अंगद जी ने रावण की भरी सभा में अपना पैर जमाया, तब ये प्रसंग मेधनाथ ने अपने पिता रावन से किया की, पिता श्री !
ये पोल कब तक चलेगी, पहले एक वानर आया और वो हमारी लंका जला कर चला गया, और अब ये कहता है की मेरे पैर को कोई यहाँ से हटा दे तो भगवान श्री राम बिना युद्ध किये वापिस लौट जायेंगे।
फिर राजा बोले की ये चौथा क्या बोल रहा है ?
वो बोले महाराज ये इतना बड़ा विद्वान है की कोई इनकी बराबरी कर ही नही सकता, ये मंदोदरी की बात कर रहे है, मंदोदरी ने कई बार रावण से कहा की, स्वामी, आप जिद्द छोड़, सीता जी को आदर सहित राम जी को सोप दीजिये
अन्यथा अनर्थ हो जायगा। तब ये बात रावण ने मंदोदरी से कही की जब तक चलता है चलने दे।
मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है, अगर में राम के हाथो मारा गया तो मेरी मुक्ति हो जाएगी,
इस अधम शरीर से भजन -वजन तो कुछ होता नही, और में युद्द जीत गया तो त्रिलोकी में भी मेरी जय जय कार हो जाएगी।
राजा इन सब बातो से चकित रह गए बोले की आज हमे ऐसा अद्भुत प्रसंग सूनने को मिला की आज तक हमने नही सुना, राजा इतने प्रसन्न हुए की उस महात्मा से बोले की आप कहे वो दान देने को राजी हूँ।
उस महात्मा ने उन अनपढ़ अंगुटा छाप ब्राह्मण् को अनेको दान दक्षिणा दिलवा दी।
यहाँ विशेष ध्यान दे:-
इन सब बातो का एक ही सार है की कोई अज्ञानी, कोई नास्तिक, कोई कैसा भी क्यों न हो, रामायण, भगवद गीता, जैसे महान ग्रंथो को श्रद्धा पूर्वक छूने मात्र से ही सब संकटो से मुक्त हो जाते है।
और भगवान का सच्चा प्रेमी हो जाये उन की तो बात ही क्या है, मत पूछिये कि वे कितने धनी हो जाते है।

सियावर रामचंद्र जी की जय !!
राम भक्त हनुमान जी की जय !!

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *