दीख जाइ उपबन बर सर बिगसित बहु कंज।
मंदिर एक रुचिर तहँ बैठि नारि तप पुंज।।
अर्थ-
अंदर जाकर उन्होंने एक उत्तम उपवन (बगीचा) और तालाब देखा, जिसमें बहुत से कमल खिले हुए हैं। वहीं एक सुंदर मंदिर है, जिसमें एक तपोमूर्ति स्त्री बैठी है।
थके-हारे, निश्चित समय में सीता माता को ना खोज पाने के भय से व्याकुल, वानर समूह को उचित मार्गदर्शन दे, लंका का पता बताने वाली सिद्ध तपस्विनी ‘स्वयंप्रभा’ को वाल्मीकि रामायण के बाद कोई विशेष महत्व नहीं मिल पाया। हो सकता है, श्री राम से इस पात्र का सीधा संबंध ना होना इस बात का कारण हो।
काफी भटकने के बाद भी सीताजी का कोई सुराग नहीं मिल पाता है। सुग्रीव द्वारा दिया गया समय भी समाप्ति पर आ जाता है। थके-हारे दल की भूख प्यास के कारण बुरी हालत होती है। सारे जन एक जगह निढ़ाल हो बैठ जाते हैं।
तभी हनुमानजी को एक अंधेरी गुफा में से भीगे पंखों वाले पक्षी बाहर आते दिखते हैं। जिससे हनुमानजी समझ जाते हैं कि गुफा के अंदर कोई जलाशय है। गुफा बिल्कुल अंधेरी और बहुत ही डरावनी थी। सारे जन एक दूसरे का हाथ पकड़ कर अंदर प्रविष्ट होते हैं। वहां हाथ को हाथ नहीं सूझता था।
शबरी की तरह ही स्वयंप्रभा भी श्री राम की प्रतीक्षा, एकांत और प्रशांत वातावरण में संयत जीवन जीते हुए कर रही थी। परन्तु ये शबरी से ज्यादा सुलझी और पहुंची हुई तपस्विनी थीं। इनका उल्लेख किष्किंधाकांड के अंत में तब आता है, जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि सीताजी की खोज में निकलते हैं।
बहुत दूर चलने पर अचानक प्रकाश दिखाई पड़ता है। वे सब अपने आप को एक बहुत रमणीय, बिल्कुल स्वर्ग जैसी जगह में पाते हैं। पूरा समूह आश्चर्य चकित सा खड़ा रह जाता है। चारों ओर फैली हरियाली, फलों से लदे वृक्ष, ठंडे पानी के सोते, हल्की ब्यार सब की थकान दूर कर देती है।
इतने में सामने से प्रकाश में लिपटी, एक धीर-गंभीर साध्वी, आती दिखाई पड़ती है। जो वल्कल, जटा आदि धारण करने के बावजूद आध्यात्मिक आभा से आप्लावित लगती है। हनुमानजी आगे बढ़ कर प्रणाम कर अपने आने का अभिप्राय बतलाते हैं, और उस रहस्य-लोक के बारे में जानने की अपनी जिज्ञासा भी नहीं छिपा पाते हैं।
साध्वी, जो की स्वयंप्रभा हैं, करुणा से मंजुल स्वर में सबका स्वागत करती हैं तथा वहां उपलब्ध सामग्री से अपनी भूख-प्यास शांत करने को कहती हैं। उसके बाद शांत चित्त से बैठा कर वह सारी बात बताती हैं।
यह सारा उपवन देवताओं के अभियंता मय ने बनाया था। इसके पूर्ण होने पर मय ने इसे देवराज इंद्र को समर्पित कर दिया।
उनके कहने पर, इसके बदले कुछ लेने के लिए जब मय ने अपनी प्रेयसी हेमा से विवाह की बात कही तो देवराज क्रुद्ध हो गये, क्योंकि हेमा एक देवकन्या थी और मय एक दानव। इंद्र ने मय को निष्कासित कर दिया, पर उपवन की देख-भाल का भार हेमा को सौंप दिया। हेमा के बाद इसकी जिम्मेदारी स्वयंप्रभा पर आ गयी।
इतना बताने के बाद, उनके वानर समूह के जंगलों में भटकने का कारण पूछने पर हनुमानजी उन्हें सारी राम कथा सुनाने के साथ-साथ समय अवधी की बात भी बताते हैं कि यदि एक माह समाप्त होने के पहले सीता माता का पता नहीं मिला तो हम सब की मृत्यु निश्चित है।
स्वयंप्रभा उन्हें कहती हैं कि घबड़ायें नहीं, आप सब अपने गंतव्य तक पहुंच गये हैं। इतना कह कर वे सबको अपनी आंखें बंद करने को कहती हैं। अगले पल ही सब अपने-आप को सागर तट पर पाते हैं। स्वयंप्रभा सीताजी के लंका में होने की बात बता वापस अपनी गुफा में चली जाती हैं।
बदरीबन कहुँ सो गई प्रभु अग्या धरि सीस।
उर धरि राम चरन जुग जे बंदत अज ईस।।
अर्थ-
प्रभु की आज्ञा सिर पर धारण कर और श्री रामजी के युगल चरणों को, जिनकी ब्रह्मा और महेश भी वंदना करते हैं, हृदय में धारण कर वह (स्वयंप्रभा) बदरिकाश्रम को चली गई।
आगे की कथा तो आप सभी को ज्ञात है। यह सारा प्रसंग अपने-आप में रोचक तो है ही, साथ ही साथ कहानी का महत्वपूर्ण मोड़ भी है, पर पता नहीं, स्वयंप्रभा जैसा इतना महत्वपूर्ण पात्र उपेक्षित क्यों रह गया |
Dikh jai upban bar sar bigsit bahu kanj.
Temple a beautiful there sitting woman penance beam.
Meaning-
Going inside, he saw a beautiful upvan (garden) and a pond, in which many lotuses were in bloom. There is a beautiful temple there, in which a Tapomurti woman is sitting.
Exhausted, distraught with the fear of not being able to find Sita Mata in due time, give proper guidance to the monkey group, Siddha Tapaswini ‘Swayamprabha’, who told the address of Lanka, could not get any special importance after Valmiki Ramayana. May be, this character’s lack of direct relation with Shri Ram is the reason for this.
Like Shabari, Swayamprabha was also waiting for Shri Ram, living a modest life in a secluded and peaceful environment. But she was a more resolved and accomplished ascetic than Shabri. Their mention comes at the end of Kishkindhakand, when Hanuman, Angad, Jamwant etc. go out in search of Sitaji.
Even after wandering a lot, no clue of Sitaji can be found. The time given by Sugriva also comes to an end. The tired party is in a bad condition due to hunger and thirst. All the people sit down in one place.
Then Hanumanji sees birds with wet wings coming out of a dark cave. From which Hanumanji understands that there is a reservoir inside the cave. The cave was absolutely dark and very scary. All the people enter inside holding each other’s hand. There the hand could not understand the hand.
After walking a long distance suddenly light appears. They all find themselves in a very idyllic, very heavenly place. The whole group stands in astonishment. The greenery spread all around, the trees laden with fruits, the cool water springs, the light breeze removes everyone’s tiredness.
In the meantime, a patient and serious sadhvi, wrapped in light, is seen coming from the front. The one who despite wearing Valkal, Jata etc seems to be filled with spiritual aura. Hanumanji goes ahead and bows down and tells the intention of his arrival, and cannot even hide his curiosity to know about that mysterious world.
Sadhvi, who is Swayamprabha, welcomes everyone with compassion and asks them to quench their hunger and thirst with the ingredients available there. After that she narrates the whole thing while sitting with a calm mind.
This entire garden was built by Maya, the engineer of the gods. On its completion, Maya dedicated it to Devraj Indra.
At his behest, when Maya talked about marrying his beloved Hema to get something in return, Devraj became enraged, because Hema was a goddess and Maya was a demon. Indra expelled Maya, but entrusted the care of the garden to Hema. After Hema, its responsibility fell on Swayamprabha.
After telling this much, on asking the reason for his group of monkeys wandering in the jungles, Hanumanji tells them the whole story of Ram and also tells about the time period that if Sita Mata’s address is not found before the end of one month, then all of us will die. death is certain.
Swayamprabha tells them not to worry, you all have reached your destination. Saying this she asks everyone to close their eyes. The next moment everyone finds themselves on the sea shore. Swayamprabha goes back to her cave after telling about Sitaji being in Lanka.
Badriban, where did you sleep?
Ur Dhari Ram’s feet, the worshiper of all ages.
Meaning-
Keeping the command of the Lord on her head and the couple’s feet of Shri Ramji, whom even Brahma and Mahesh worship, she (Swayamprabha) went to Badrikashram in her heart.
The further story is known to all of you. This whole episode is interesting in itself, as well as an important turning point in the story, but don’t know why such an important character like Swayamprabha remained neglected.