ठाकुर जी के साथ प्रेम सम्बन्ध

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मुझे नही पता था, की जिंदगी को कैसे जिया जाता है, जैसे सब लोग खाना पीना सोना घूमना फिरना ये ही सब था।

नही पता था कि ठाकुर के साथ मे भी कोई संबंध हो सकता है। वो भी प्रेम करते है और जीवन के इस पार भी ओर उस पार भी हमेशा साथ रहते है और अपने संबंध को निभाते हैं।

अगर हम उनको पिता स्वरूप मानते है तो वो पुत्रवत प्रेम करते हैं….अगर माता मानते है तो पुत्रवत स्नेह मिलता है कदम कदम पर जैसे माँ अपने बच्चे का ध्यान रखती है वैसी ही भगवान रखते हैं।

और अगर प्रियतम मानते हैं तो…….
मेरे प्रियतम ….मेरे प्रियतम हर जगह हर समय वही दिखते हैं उनके सिवा कुछ नही सुहाता…

सौंप दिए मन प्राण तुम्ही को सौंप दिए ममता अभिमान
   जब जी चाहे जैसे रखो अपनी वस्तु सर्वथा जान…..

हे नाथ जैसे रखना है रखलो….जिस हाल में रखोगे रह लेंगे किन्तु अब बस आपके बिना रहा नही जाएगा।

सत्संग संतो के संग
हे मेरे प्राणधन जीवन प्यारे माधव! एक एक दिन बीता जा रहा है , जिन साधन भजन से तुमको पाया जाता है बस उनसे विपरीत ही सारे विषय भोगो में  आसक्ति होती जा रही है। सोच रहा था एक दिन ये विषय छूट जाएंगे और तुममे दृढ़ प्रेम बनेगा किन्तु ये विषय तो मगर की तरह अंदर खिंचे ही जा रहे हैं। माधव अपने प्रयास से तो नही समझ आ रहा कि कभी भोग विलास से निकल पाऊंगा।
आप कृपा करेंगे तभी कुछ संभव है। अनेको अधमो को आपने सहारा देके अपना सानिध्य प्रदान किया है।
फिर मेरी बारी देर क्यों कर रहे हो। या जाओ प्राणधन अब देर न करो आ जाओ अब आपके सानिध्य को पाने के विरह में जला जा रहा हु। कृपा करो मेरे सर्वस्व।

सत्संग संतो के संग।
किस्मत से तुम हमको मिले हो.. ये हाथ अब न छोड़ेंगे

हे प्रभु , हे करुनानिधान  आपकी कृपा से संतो के आशीर्वाद से आपकी स्मृति मिली है, आपकी कुछ याद आ जाती है…

कृपा की न होती , जो आदत तुम्हारी…

हा माधव , बिना तुम्हारी कृपा के तुमको पाना तुमसे मिलना असंभव ही है। ठाकुर इस दास का हाथ सदैव थामे रहना कभी छोड़ना नही। माना बहोत कुटिल  हूँ कामी भी हूँ….दम्भ भी करता हूँ…लेकिन केवल आपसे ये जो प्रेम है ना ये सच्चा है। जैसे आपने गीध गणिका सबरी इन सबको अपनी कृपा करुणा से तार दिया…तो मेरे बारे भी कर दीजिए।

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