अध्यात्मवाद (Adhyatmvad)

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परमात्मा नित्य है

भगवान का नाम सिमरन करते हुए विनती और स्तुति करते हुए भगवान के भाव बनने लगते हैं भगवान का प्रेम

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बाहर क्या ढूंढे…

सारे संत महापुरुष एक ही संदेश देते है… वस्तु तेरे भीतर है… सब कुछ तेरे भीतर है… सब कुछ तुझसे

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भाव की गहराई 3

हम भगवान को भजते रहते हैं तब मालिक इस मन को सुधार देते है। भगवान का सिमरण ऐसी पुंजी है

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लग्न का दिपक

जिसने दिल ही दिल में प्रभु प्राण नाथ से बात की है। अपने अन्तर्मन में लग्न का दिपक प्रज्वलित किया

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