
भाव का बनना
भगवान की भक्ति मे भाव बहुत बनते हैं। भक्त भाव से भगवान की वन्दना करता है। भाव में अपने अराध्य
भगवान की भक्ति मे भाव बहुत बनते हैं। भक्त भाव से भगवान की वन्दना करता है। भाव में अपने अराध्य
जो काम करते हुए भजन करते हैं। वे देखने वाले की दृष्टि में काम कर रहे हैं असल में वे
भक्त चार बजे उठता है उठते ही भगवान का चिन्तन मनन दिल ही दिल में करता है भक्त भगवान का
कागज की सभी पढकर मन ही मन खुश होते हैं कि आज मैंने बहुत अच्छे भाव पढे कर के देखने
हमे अंग संग खङे प्रभु भगवान श्री हरि की खोज करनी है। उस ज्योति में समाना है जो हमारे भीतर
हम परम पिता परमात्मा के बनना चाहते हैं। तब सबसे पहले अपने ऊपर से साधक का भक्ति का श्रेष्ठता का
परमात्मा अन्दर बैठा है और हम उसे बाहर ढुढते है हम यह नहीं समझते हैं भक्ति प्रेम श्रद्धा शान्ति तृप्ति
किराए के घर में अपना कुछ भी नहीं है। ये काया और माया यहीं की यहीं रह जाएगी। अ प्राणी
अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है।
नित्य किरया कर्म ज्ञान योग भक्ति मार्ग का निचोड़ एवं प्रभु प्रेम का भाव है। हम कितनी ही बैठे बैठे