
तुम्हारी कारीगरी को न पहचान सकी
हे परम पिता परमात्मा तुमने जगत को रचने में कितनी कारीगरी की है। और मै मतिहीन तुम्हारी कारीगरी को न
हे परम पिता परमात्मा तुमने जगत को रचने में कितनी कारीगरी की है। और मै मतिहीन तुम्हारी कारीगरी को न
तन और मन दोनों भगवान के समर्पित नहीं होंगे। हृदय में मिलन की तङफ जागृत नही होगी। हर क्षण सांवरे
साधक का प्रेम संसार के सम्बन्ध बनाने से संबंधित नहीं है। साधक का प्रेम भगवान नाथ श्री हरी से सम्बन्ध
आत्मा ईश्वर है, ईश्वर आत्मा है अ प्राणी तुने अपने ऊपर मन बुद्धि अंहकार का पर्दा डाल रखा है पंच
परमात्मा जी को हाथ जोड़ कर अन्तर्मन से प्रणाम करता है। नैनो में नीर समा जाता है। वाणी गद गद
हमारे मन से धीरे धीरे संसार छुटने लगता है । हमे परमात्मा के नाम का जब भी समय मिले चिन्तन
अध्यात्मवाद दिल में छुपा हुआ है। ग्रंथ और गुरु हमे मार्ग बताते हैं मार्ग पर हमें स्वयं ही कदम बढ़ाने
साधक परमात्मा से बात करते हुए कहता है कि हे परमात्मा जी ये हाड मास की काया है। मुझे इस