
मन से बात करते हुए
मैं कई बार अपने मन से बात करते हुए कहती हूं कि अ मन देख तु चाहे कितना ही इधर
मैं कई बार अपने मन से बात करते हुए कहती हूं कि अ मन देख तु चाहे कितना ही इधर
. एक ब्राह्मण था जो भगवान को भोग लगाये बिना खुद कभी भी भोजन नहीं करता था। हर दिन
अब ये दिल आनन्द प्राप्त करना नहीं चाहता है एक दिन आनंद का त्याग करना ही पड़ता है खोज कर
हमे इस जग को छोड़ने से पहले भगवान को सांसो में बसाना है। इस कोठरी का उदार जीते जी कर
आत्मा और परमात्मा का महामिलन में न तो काम है, न गोपियों में परस्वार्थ ईर्ष्या है, न कुछ पाने की
हे परम पिता परमात्मा तुमने जगत को रचने में कितनी कारीगरी की है। और मै मतिहीन तुम्हारी कारीगरी को न
तन और मन दोनों भगवान के समर्पित नहीं होंगे। हृदय में मिलन की तङफ जागृत नही होगी। हर क्षण सांवरे
साधक का प्रेम संसार के सम्बन्ध बनाने से संबंधित नहीं है। साधक का प्रेम भगवान नाथ श्री हरी से सम्बन्ध
आत्मा ईश्वर है, ईश्वर आत्मा है अ प्राणी तुने अपने ऊपर मन बुद्धि अंहकार का पर्दा डाल रखा है पंच
परमात्मा जी को हाथ जोड़ कर अन्तर्मन से प्रणाम करता है। नैनो में नीर समा जाता है। वाणी गद गद