चैतन्य का चिन्तन
सृष्टि के विराट चक्र में युगों की यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रही है। सतयुग की निर्मलता,
सृष्टि के विराट चक्र में युगों की यात्रा अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रही है। सतयुग की निर्मलता,
मुक्ति वही है जो जीवित रहते हुए मिले इच्छा के रहते प्राण चले जाए तो मृत्यु है और प्राणों की
राम कंहा है राम कंही बाहर नहीं है राम आपकी पुकार मे है राम को कंहा ढूंढ रे बन्दे, प्राणो
मां पुत्र पुत्री का सम्बंध देखने में एक जैसा लगता है लेकिन जब बारिकी से पढते है तब हर सम्बन्ध
भक्ति केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मा का सबसे कोमल और गहन स्पंदन है। यह कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि जीवन
अन्तर आत्मा की एक ही पुकार भगवान राम के दर्शन कैसे हो। हृदय में भगवान राम के दर्शन कर पाऊं
क्या आपने कभी सोचा है कि लोग जन्म-जन्मांतर तक जप करते रहते हैं, फिर भी ईश्वर उनके समक्ष प्रकट क्यों
भगवान राम के दर्शन कैसे हो। इस दिल में भी भगवान राम के दर्शन कर पाऊं, यह आत्मा की आवाज
हे परमात्मा जी मै कहती। भगवान् देख रहा है। मै जब भीघर में कार्य करती मेरा अन्तर्मन पुकारता भगवान् देखरहा
मोहन शान्त भाव में बैठा हुआ है जगदीश उसमे कैसे विचार डालना चाहता है। जगदीश उसमे विचार की झलक एक