
सृष्टि के कण कण में प्रभु समाए हुए
हम मन्दिर जाते हैं मन्दिर के प्रागणं में शान्ति को महसूस करते हैं। हम शान्ति महसूस इसलिए करते हैं क्योंकि

हम मन्दिर जाते हैं मन्दिर के प्रागणं में शान्ति को महसूस करते हैं। हम शान्ति महसूस इसलिए करते हैं क्योंकि

आज का प्राणी मन के द्वार पर बैठा है। मन मेरा मेरी करता है। उसमें अधिक पाने की इच्छाए है।

आज mobile में भगवान के अनेको रूप दिखाए जा रहे हैं। और हर मन्दिर के रूप की फोटो आने लग

आज का समय ऐसा आया है कि कोई एक दूसरे को खुश देखकर एक दूसरे से बोल कर भी खुश

भगवान प्रेम में समाए हुए है। प्रेम से ही प्रकट होते हैं। कोई भी भक्त भगवान् से, बार बार विनती

परमात्मा के नाम जप को बढाए। परमात्मा के नाम की इच्छा जागृत होने पर भगवान अपने अन्तर्मन मे भाव और

जब जब देश पर विपत्ति आई है माताओं और बहनों ने दिन रात भगवान से प्रार्थना की है कि हे

परमात्मा हममें समाया हुआ है। यह कहने मात्र से बात नहीं बनती है। जब तक हम भगवान को भजेगें नहीं

भगवान की भक्ति मे भाव बहुत बनते हैं। भक्त भाव से भगवान की वन्दना करता है। भाव में अपने अराध्य

ईश्वर एक है लेकिन पांचों ऊगली एक समान नहीं हैं किसी को मां दुर्गा मे ईश्वर दिखाई देते हैं तब