![murti 1129937 6406268734310615675836](https://bhagvanbhakti.com/wp-content/uploads/2022/04/murti-1129937_6406268734310615675836.jpg)
Bhkat aur bhagvan ek rup
जब तक “मै” है तब तक इच्छाएं हैं। ये शरीर मेरा मै भगवान का भक्त हू। भगवान् मेरे है। इन
जब तक “मै” है तब तक इच्छाएं हैं। ये शरीर मेरा मै भगवान का भक्त हू। भगवान् मेरे है। इन
हिन्दुओं में 12 महिने व्रत और त्योहार है। हिन्दू धर्म की संस्कृति ही निराली है। हर त्यौहार पर जब हम
जय श्री राम प्रभु प्राण नाथ को प्रणाम है ।प्रणाम करना हमारी संस्कृति है। प्रणाम साधना है। हम प्रणाम परमात्मा
यदि आप भगवान की खोज में निकलते है। तो गुरु की सरण मे जाओ यह प्रथम चरण है। दूसरे चरण
मेरे प्रभु कब तुम मेरे सामने होंगे ।मै अपने आप को भुल जाऊंगी। शरीर शिथिल पङ जाएगा ।मै तुम्हारे चरणों
ये सुरज और चांद नहीं ये प्रभु का आभामंडल है। भगवान कृष्ण जल में झांकते है मस्तक पर चमकता प्रकाश
भगवान् कहते हैं कि तु मुझे पत्थर की मूर्ति में ढुढेगा तो तेरा दिल पत्थर जैसा कठोर बन जाएगा जङ
भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्मयोग में ज्ञानयोग भक्तीयोग को समझा रहे हैं। कर्म जब भगवान को भजते हुए समर्पित भाव
आत्मा अन्तर्मन का विषय है परमात्मा सब में है।कण-कण में है वह परमात्मा हमारे जल्दी से पकङाई में इसलिए नहीं
हे प्रभु भगवान मैं तुम्हें आंखों में बसा लूं दिल में बिठा लु। तुझसे प्रीत करलु तू मेरा स्वामी है