मन्दिर का महत्व
मन्दिर आत्मा के सम्बंध का केन्द्र है। मुर्ति आत्मा का प्रतिबिंब है। मुर्ति में भगवान हमें उसी रूप में दिखाई
मन्दिर आत्मा के सम्बंध का केन्द्र है। मुर्ति आत्मा का प्रतिबिंब है। मुर्ति में भगवान हमें उसी रूप में दिखाई
जरा सिर को झुकाओ वासुदेव जी,तेरे सिर पे त्रिलौकी नाथ हैं, छुंऊ इनके चरण बङे प्रेम से, आज यमुना की
आरती रघुवर लाला की, सांवरिंया नैन विशाला की।कमल कर धनुष बाण धारे,सैलोने नैना रतनारे, छवि लख कोटी काम हारे,अलक की
प्रभु राम क्या गाऊं कैसे तुम्हें रिझाऊं, प्रभु राम तुम धकङकन में समाये हो दिल के हर कोने से, पुकार
एक भक्त के दिल की तङफ होती है कब मेरे अन्दर वैराग्य आएगा। भक्त सोचता है पुरण वैराग्य आ जाए
क्या गाऊँ प्रभु मेरे तुम धकङकन में समाए दिल के हर कोने में पुकार तुम्हारी आती है फिर भी दिल
अब तो भगवान ही करेगा, भगवान जैसा करेगा वैसे ही ठीक है। आज हम थोङी सी कठीन परिस्थिति आने पर,
जय श्री राम हमे देखना यहीं है हम दिन भर में प्रभु मे कितने खोते हैं। प्रभु प्रेम में खोने
हम सत्संग में परमात्मा को अनेकों भावों से मनाते हैं। परमात्मा की विनती करते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा
मन्दिर में सगुण साकार की पुजा की जाती है हम मन्दिर में जाकर सभी भगवान के सामने धुप दिपक जलाते