[87]”श्रीचैतन्य–चरितावली”
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामशचीमाता का संन्यासी पुत्र के प्रति मातृ-स्नेह शीलानि ते चन्दनशीतलानिश्रुतानि भूमितलविश्रुतानि।तथापि जीर्णों पितरावतस्मिन्विहाय
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामशचीमाता का संन्यासी पुत्र के प्रति मातृ-स्नेह शीलानि ते चन्दनशीतलानिश्रुतानि भूमितलविश्रुतानि।तथापि जीर्णों पितरावतस्मिन्विहाय
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराममाता को संन्यासी पुत्र के दर्शन यस्यास्ति वैष्णव: पुत्र: पुत्रिणी साभिधीयते।अवैष्णवपुत्रशता जननी शूकरीसमा।।
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामशान्तिपुर में अद्वैताचार्य के घर न्यासं विधायोत्प्रणयोऽथ गौरोवृन्दावन गन्तुमना भ्रमाद् य:।राढे़ भ्रमन् शान्तिपुरीमयित्वाललास
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामराढ़-देश में उन्मत्त-भ्रमण एतां समास्थाय परात्मनिष्ठा–मध्यासितां पूर्वतमैर्महर्षिभि: ।अहं तरिष्यामि दुरन्तपारंतमो मुकुन्दाङ्घ्रिनिषेवयैव।। निशा का
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीकृष्ण-चैतन्य वैराग्यविद्यानिजभक्तियोग-शिक्षार्थमेक: पुरुष: पुराण:।श्रीकृष्णचैतन्यशरीरधारीकृपाम्बुधिर्यस्तमहं प्रपद्ये।। संन्यास के मानी हैं अग्निमय जीवन। पिछले जीवन
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामसंन्यास-दीक्षा देहेऽस्थिमांसरुधिरेऽभिमतिं त्यज त्वंजायासुतादिषु सदा ममतां विमुंच।पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगनिष्ठंवैराग्यरागरसिको भव भक्तिनिष्ठ:।। वैराग्य में
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामगौरहरि का संन्यास के लिये आग्रह कुलं च मानं च मनोरमांश्चदारांश्च भक्तान् रूदतीं
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामहाहाकार हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज।दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम्।।
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामविष्णुप्रिया और गौरहरि यस्यानुरागललितस्मितवल्गुमन्त्र-लीलावलोकपरिरम्भणरासगोष्ठ्याम्।नीता: स्म न:क्षणमिव विना तंगोप्य: कथं न्वतितरेम तमो दुरन्तम्।। पितृगृह
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामशचीमाता और गौरहरि अहो विधतस्तव न क्वचिद्दयासंयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिन:।तांश्चाकृतार्थान्वियुनड़्क्ष्यपार्थकंविक्रीडितं तेऽर्भकचेष्टितं यथा।। भक्तों