[42]हनुमान जी की आत्मकथा
(श्री धाम वृन्दावन के लुटेरिया हनुमान) मर्कान भोक्षन्…(श्रीमद्भागवत) ये मेरा कल दोपहर का स्वप्न था… कल दोपहर में भोजन करके…
(श्री धाम वृन्दावन के लुटेरिया हनुमान) मर्कान भोक्षन्…(श्रीमद्भागवत) ये मेरा कल दोपहर का स्वप्न था… कल दोपहर में भोजन करके…
(तब ऋषि ने मुझे श्राप दिया था – हनुमान)भाग-4 सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(श्रीरामचरितमानस) अयोध्या के उस राज उद्यान में, भरत जी
(मैंने रामायण महाकाव्य लिखा था – हनुमान) बुद्धिमतां वरिष्ठम्…(गो. श्री तुलसी दास) आपने रामायण महाकाव्य का भी लेखन किया था
सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर ध्यान थोड़ा रुक गया* । तुलसीदास ने सुन्दर कांड में, जब हनुमान जी
.सन् 1974-75 की बात हैः जयपुर के पास हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हर साल मेला लगता है और
आज के विचार (श्री रामराज्याभिषेक के दिन…)भाग-40 अपने वश करि राखे रामू…(गो. श्रीतुलसी दास) आहा ! मेरे आराध्य की भूमि…
आज के विचार (श्रीसीता राम जी का मिलन)भाग-39 जय रघुबीर कहहिं सब कोई…(रामचरितमानस) हनुमान ! अब मुझे प्रभु के पास
आज के विचार (मेरी माँ मैथिली करुणा की सागर हैं-हनुमान)भाग-38 न कश्चिद् ना पराध्यति…(वाल्मीकि रामायण) भरत भैया ! दशानन का
इस संसार मे हम आये है तो अवश्य ही कोई कर्तव्य हमारा पूरा करना बाकी रह गया है जो पीछे
(सुलोचना अपने पति के साथ सती हुयी…) लाय सजीवनि प्राण उवारे…(गो. तुलसीदास जी) वधू उर्मिला महासती है… रात्रि के प्रथम