
[35]हनुमान जी की आत्मकथा
आज के विचार ( महान रघुकुल…मैंने प्रथम बार देखा था)भाग-35 अहह दैव मैं कत जग जायउँ ..प्रभु के एकहु काज

आज के विचार ( महान रघुकुल…मैंने प्रथम बार देखा था)भाग-35 अहह दैव मैं कत जग जायउँ ..प्रभु के एकहु काज

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे…(श्रीतुलसीदास जी) भरत भैया के साथ आज रघुकुल के कुछ कुमार भी आ गये थे… जिन्हें मेरे

चला इन्द्रजित अतुलित योद्धा…(रामचरितमानस) भरत भैया ! सेतु का कार्य पूरा हुआ… और हम लोग लंका के लिए चल पड़े

आज के विचार (गिरी गोवर्धन को मैंने श्रीकृष्ण दर्शन कराया था – हनुमान)भाग-32 गिरिवरधारी हनुमान, तुम पालक सबके…(गो. श्रीतुलसीदास) मैं

सिन्धु तरे पाषाण…(रामचरितमानस) भरत भैया ! सागर में सेतु बाँधनें का कार्य शुरू हो गया था । सागर पार कैसे

सोई सम्पदा विभीषणहिं सकुच दीन्ह रघुनाथ…(रामचरितमानस) भरत भैया ! लक्ष्मण जी के कहने से… महाराज सुग्रीव ने शीघ्रता दिखाई… और

अनुज समेत गहेहु प्रभु चरनादीन बन्धु प्रणता रति हरना ।(रामचरितमानस) भरत भैया ! मैं महाराज सुग्रीव जामवन्त युवराज अंगद के

एक सम्वाददाता, मैं और श्रीहनुमान जी नाम पहारू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट…(रामचरितमानस) साधकों ! कल चुनाव था… इतनी जिम्मेवारी

देखि विचार त्यागी मद मोहा…(रामचरितमानस) अवध से आने के बाद मैं कुञ्ज में गया था आज… प्रातः के 5 बज

तत्तेनुकम्पाम् सुसमीक्षमाणो…(श्रीमद्भागवत) दुःख बहुत है मेरे जीवन में क्या करूँ ? एक दुःख जाता है… जैसे-तैसे… फिर दूसरा दुःख मुँह