
[30]हनुमान जी की आत्मकथा
सोई सम्पदा विभीषणहिं सकुच दीन्ह रघुनाथ…(रामचरितमानस) भरत भैया ! लक्ष्मण जी के कहने से… महाराज सुग्रीव ने शीघ्रता दिखाई… और
सोई सम्पदा विभीषणहिं सकुच दीन्ह रघुनाथ…(रामचरितमानस) भरत भैया ! लक्ष्मण जी के कहने से… महाराज सुग्रीव ने शीघ्रता दिखाई… और
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरनादीन बन्धु प्रणता रति हरना ।(रामचरितमानस) भरत भैया ! मैं महाराज सुग्रीव जामवन्त युवराज अंगद के
एक सम्वाददाता, मैं और श्रीहनुमान जी नाम पहारू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट…(रामचरितमानस) साधकों ! कल चुनाव था… इतनी जिम्मेवारी
देखि विचार त्यागी मद मोहा…(रामचरितमानस) अवध से आने के बाद मैं कुञ्ज में गया था आज… प्रातः के 5 बज
तत्तेनुकम्पाम् सुसमीक्षमाणो…(श्रीमद्भागवत) दुःख बहुत है मेरे जीवन में क्या करूँ ? एक दुःख जाता है… जैसे-तैसे… फिर दूसरा दुःख मुँह
आज के विचार ( अयोध्या का लक्ष्मण किला ) रघुपति कीरति विमल पताका…(रामचरितमानस) अवध के लक्ष्मण किला में आप कभी
बात ज्यादा पुरानी नहीं है अंग्रेजो के ज़माने में एक दंगा हुआ था श्री राम जन्मभूमि को ले लेकर और
( भक्ति दर्शन का एक विलक्षण दृष्टिकोण ) भक्त्या तुष्यति केवलम्…(पद्यावली) चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी के यहाँ पुत्र हुए… एक
आज के विचार ( हे मेरे प्यारे राम..)भाग-23 राम समान प्रभु नाहीं कहूँ…(रामचरितमानस) मेरे प्यारे राम ! ये क्या लीला
(“जानत प्रिया एकु मन मोरा”- एक अव्यक्त प्रेम )भाग-22 तत्व प्रेम कर मम अरु तोराजानत प्रिया एकु मन मोरा…(रामचरितमानस) हरि