[18]हनुमान जी की आत्मकथा
आज के विचार (अशोक वाटिका में माँ वैदेही के दर्शन…)भाग-18 कृस तनु सीस जटा एक बेनी,जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी…(रामचरितमानस)
आज के विचार (अशोक वाटिका में माँ वैदेही के दर्शन…)भाग-18 कृस तनु सीस जटा एक बेनी,जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी…(रामचरितमानस)
( रावण और माँ वैदेही का सम्वाद – हनुमान ) तेहि अवसर रावण तहँ आवा…(रामचरितमानस) पता नही आज क्यों अयोध्या
(मैंने लंका में माँ सीता को खोजा था – हनुमान) मन्दिर मन्दिर प्रति कर शोधा…(रामचरितमानस) साधकों ! मुझे पता नहीं
आज के विचार ( लंका में मुझे मेरा भाई मिला – हनुमान )भाग-17 तब हनुमन्त कहा सुनु भ्रातादेखी चहहुँ जानकी
आज के विचार (समुद्र को जब मैंने लाँघा – हनुमान)भाग-14 जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,एही भाँति चलेउ हनुमाना !(रामचरितमानस) भरत
(मैंने देखी वो रावण की लंका – हनुमान) गयउ दसानन मंदिर माहीं…(रामचरितमानस) हनुमान जी ! रावण की लंका कैसी थी
ये पत्थर 6 करोड़ साल पुराने है…..हो सकता है ये पत्थर 6 करोड़ साल से अभिशप्त हो और मुक्ति के
आज के विचार ( जामवन्त ने मुझे मेरी शक्ति याद दिलाई – हनुमान )भाग-13 सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(रामचरितमानस) हम सब लोग
(तब ऋषि ने मुझे श्राप दिया था – हनुमान) सुनतहिं भयहुँ पर्वताकारा…(श्रीरामचरितमानस) अयोध्या के उस राज उद्यान में, भरत जी
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ।।भगवान शिव और माता सती देवी की असीम