[84]”श्रीचैतन्य–चरितावली”
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामराढ़-देश में उन्मत्त-भ्रमण एतां समास्थाय परात्मनिष्ठा–मध्यासितां पूर्वतमैर्महर्षिभि: ।अहं तरिष्यामि दुरन्तपारंतमो मुकुन्दाङ्घ्रिनिषेवयैव।। निशा का
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामराढ़-देश में उन्मत्त-भ्रमण एतां समास्थाय परात्मनिष्ठा–मध्यासितां पूर्वतमैर्महर्षिभि: ।अहं तरिष्यामि दुरन्तपारंतमो मुकुन्दाङ्घ्रिनिषेवयैव।। निशा का
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामश्रीकृष्ण-चैतन्य वैराग्यविद्यानिजभक्तियोग-शिक्षार्थमेक: पुरुष: पुराण:।श्रीकृष्णचैतन्यशरीरधारीकृपाम्बुधिर्यस्तमहं प्रपद्ये।। संन्यास के मानी हैं अग्निमय जीवन। पिछले जीवन
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामसंन्यास-दीक्षा देहेऽस्थिमांसरुधिरेऽभिमतिं त्यज त्वंजायासुतादिषु सदा ममतां विमुंच।पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगनिष्ठंवैराग्यरागरसिको भव भक्तिनिष्ठ:।। वैराग्य में
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामगौरहरि का संन्यास के लिये आग्रह कुलं च मानं च मनोरमांश्चदारांश्च भक्तान् रूदतीं
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामहाहाकार हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज।दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम्।।
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामविष्णुप्रिया और गौरहरि यस्यानुरागललितस्मितवल्गुमन्त्र-लीलावलोकपरिरम्भणरासगोष्ठ्याम्।नीता: स्म न:क्षणमिव विना तंगोप्य: कथं न्वतितरेम तमो दुरन्तम्।। पितृगृह
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामशचीमाता और गौरहरि अहो विधतस्तव न क्वचिद्दयासंयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिन:।तांश्चाकृतार्थान्वियुनड़्क्ष्यपार्थकंविक्रीडितं तेऽर्भकचेष्टितं यथा।। भक्तों
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामभक्तवृन्द और गौरहरि निवारयाम: समुपेत्य माधवंकिं नोऽकरिष्यन् कुलवृद्धबान्धवा:।मुकुन्दसंगान्निमिषार्धदुस्त्यजाद्दैवेन विध्वंसितदीनचेतसाम्।। महाप्रभु का वैराग्य दिनों
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामसंन्यास से पूर्व तत् साधु मन्येऽसुरवर्य देहिनांसदा समुद्विग्नधियामसद्ग्रहात्।हित्वाऽऽत्मपातं गृहमन्धकूपंवनं गतो यद्धरिमाश्रयेत।। महाप्रभु का
।। श्रीहरि:।। [भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेरामनवानुराग और गोपी-भाव क्वचिदुत्पुलकस्तूष्णीमास्ते संस्पर्शनिर्वृत:।अस्पन्दप्रणयानन्दसलिलामीलितेक्षण:।।आसीन: पर्यटन्नश्नञ्शयान: प्रपिबन् ब्रुवन्।नानुसंधत्त एतानि गोविन्दपरिरम्भित:।। महाप्रभु जब से