
ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम
जलते भी गए, कहते भी गए, आज़ादी के परवाने, जीना तो उसी का जीना है जो मारना वतन पे जाने
जलते भी गए, कहते भी गए, आज़ादी के परवाने, जीना तो उसी का जीना है जो मारना वतन पे जाने
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है । करता नहीं क्यों
जहा हुए बलिदान मुखर्जी जी वो कश्मीर हमारा है, नहीं थोड़ा काम और ज्यादा वो सारा सारा हमारा है, तिरंगा
मैं धनुष बाण श्री राम से लेकर चक्र कनैया से लूंगा, अब सीमा पर जाकर मैं दुश्मन से टक्कर लूंगा,
जागो तो एक बार हिंदु जागो तो जागे थे प्रताप शिवाजी मार भगाये मुल्ला काझी मच गयी हा हा कार
चूम कर फाँसी के फंदे को, कह गए अमर वाणी, इंकलाब जिन्दाबाद की, लिख गए अमर कहानी, वतन के वास्ते
तेरी आरती उतारू रूप तेरा निहारु, तेरे चरणों की धूल मेरा चन्दन है, आया १५ अगस्त दिन ये पावन माँ